इस वक़्त सच बोलना हमेशा से ज़्यादा ख़तरनाक है। अगर सच बोल के बाबरी मस्जिद को बाबरी मस्जिद कहेंगे तो यक़ीनन यहां के कथित सेकुलर लोगों की कानों को तकलीफ होगी, नतीजतन वो अपनी नाक और भौं सिकोड़ के आंखें तरेरने लगेंगे । अगर इशरत जहां को बेकुसूर कहोगे तो पोटा के हक़दार हो जाओगे। अगर ख़ालिद मुजाहिद के क़त्ल पर उन्गली उठाओगे तो हाथ काटने की धमकियां मिलेंगे। मगर डरने का नहीं...ख़ौफ खाने की ज़रूरत नहीं.... जो हक़ समझता हूँ, वही बोलने का आदी हूँ...! मैं अपने शहर का सब से बड़ा फसादी हूँ .....!! Salman Zafar की कलम से Admin - 10
Posted on: Sat, 27 Jul 2013 19:22:43 +0000
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