बस मामूली सी इच्छा थी बेहद मामूली सपने थे एक ईमानदार दिल श्रम के मूल्यों वाला दिन और तुम्हारी बांह भर रात इस एक मामूली इच्छा के खिलाफ उफ्फ तुमने रचे कितने संविधान
Posted on: Sun, 04 Aug 2013 20:36:26 +0000
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