मत सोचो शिलाओं में यहाँ मै, सोचता हूँ क्या, मेरी रगों में भी तुम्ही सा खून बेहता है। किलकारियाँ गूंज उठती हैं मेरे नींदों में बच्चे की, है सुकून दिल में वतन सोया तो रेहता है। मानता हूँ मै वो भी किसी के लाल ही हैंगे,... पर अपनी माँ के खूनी को भला यूं कौन बख़्शता है। डर उसे भी लगता है डर मुझे भी लगता है, गर मै नहीं मारु मुझे वो मार सकता है। मै भी तुम्ही सा हूँ कसक मुझमे भी होती है, वर्दी तन पे चढ़ने पर फर्ज़ बस याद रहता है। कितने रोज़ मरते हैं किसी को कौन पूछता है, शहीदों की चिताओं पर तो मेला रोज़ लगता है। ATUL MISHRA (INDIAN ARMY )
Posted on: Thu, 03 Oct 2013 02:01:58 +0000