ये सारा माज़रा, ये सारे मसलहे हैं क्या ?? ? इन्हें समझने की हमारी शक्ति कहाँ खो गई है ??? जिन्हें बिमारी का कुछ पता नहीं, वे बिमारी का इलाज कर रहे हैं और रोग को और बढ़ा देरहे है !! -- देश की बिमारी को समझने और सुलझाने की शक्ति यदि पार्टियों को होती, तो देश की आज इतनी दुर्दशा क्यों होती ??? -- 'राईट टू रिजेक्ट' के प्रश्न को यू पी सी एल ने ९ साल पहले सुप्रीम कोर्ट में उठाया था, जिसका फैसला आज आगया है ; -- और सारा देश आज इस फैसले से बहुत खुश है ; इस काम को एक सामजिक संगठन ने किया है, -- जब की पार्टियों ने इसे पिछले ९ सालों से उलझा रखा था ...................... राजनितिक पार्टियाँ नागरिकों की समस्यावों का समाधान करने की बजाय और बढ़ा देती हैं जिसे हम पिछले ६५ सालों से झेल रहे हैं ; कितने गिनाऊं ??? आप खुद भी गिन सकते हैं !! समाधान के लिए अपने अपने निर्वाचन छेत्रों में 'नागरिक संगठन' बनाइये, अपने मसलहो पर एक मत बनाइये, और आवाज एक आवाज उठाइये ; सरकार और उनको समर्थन देने वाली पार्टियों को कानून के दायरे में बाँध कर रखिये ; इसके लिए अपने मौलिक अधिकारों को सुप्रीम कोर्ट से लागू करवाइए !! इलाज अब सुप्रीम कोर्ट ने आप के हाथ में देदिया है ; राईट टू रिजेक्ट के अधिकार को इस्तेमाल कीजिये , 'उपरोक्त में कोई नहीं' का बटन दबाइए और पार्टियों को बाहर कीजिये ; यही एक मात्र विकल्प है इसे समझिये और इसे खुद कार्यान्वित कीजिये = ईश्वर आप को जिम्मेदारी निभाने की शक्ति दे !!!
Posted on: Sun, 29 Sep 2013 04:46:08 +0000