लालू प्रसाद यादव भारतीय राजनीति एक लालटेन नुमा चमकने वाला चेहरा शायद ही कोई नही जानता हो। काँग्रेस के संकटमोचन, काँग्रेस का मुँह, काँग्रेस का लठौत, काँग्रेस का हमसफर आज अपनी करनी का फल भोग रहें हैं। वैसे राजनीति में ऐसे लालूओं की कोई कमी नहीं है जो सत्ता के नशे में चूर होने के बाद जनता की गाढ़ी कमाई को भ्रष्टाचार और घोटालों के जरिए अपनी तिजोरियों को भरने में जरा भी नहीं शर्माते हैं। उन्हें शर्म नहीं आती जनता के उस विश्वास को ठेस पहुंचाने में, जो इस उम्मीद के साथ उन्हें वोट देकर लोकतंत्र के मंदिर तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करते हैं कि वे न सिर्फ उनकी समस्याओं का समाधान करेंगे बल्कि विकास का दूत बनकर काम करेंगे। लेकिन अफसोस लालू प्रसाद यादव जैसे राजनेता इस कसौटी पर खरे नहीं उतरते और सत्ता के नशे में मदहोश होकर जनता की गाढ़ी कमाई को उड़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। लालू प्रसाद यादव के इस हश्र से ये तो नहीं कहा जा सकता कि इससे भारत में भ्रष्टाचार का अंत हो जाएगा और सत्ता के नशे में चूर राजनेता अब कोई भ्रष्टाचार या घोटाले को अंजाम नहीं देंगे लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि दागियों पर 10 जुलाई का सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और लालू जैसे राजनेता का हश्र भ्रष्टाचारियों में एक भय का माहौल बनाने में अहम भूमिका जरुर निभाएगा। ऐसे में जनता की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है कि वे अब भी अपने मत का इस्तेमाल जाति और धर्म के आधार पर करेंगे या फिर उम्मीदवार की योग्यता और ईमानदारी को ध्यान में रखकर करेंगे। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने 10 जुलाई के फैसले से चुनाव सुधार की दिशा में अपना काम तो कर दिया है, लेकिन ये अंजाम तक तभी पहुंच पाएगा जब देश की जनता चुनाव में दागियों को सबक सिखाएगी और सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले का असली मतलब अपनी वोट की ताकत से दागी नेताओं को समझाएगी।
Posted on: Tue, 01 Oct 2013 05:16:25 +0000