(1) सत्य की खोज - TopicsExpress



          

(1) सत्य की खोज करें ============= क्षमा कीजिएगा यदि हम आप से कहें कि आप किसकी पूजा करते हैं तो आप हमें अवश्य किसी धरती पर पाए जाने वाले पूज्य का नाम बताएंगे। उदाहरण-स्वरुप आप कहेंगे राम जी की, अथवा कृश्रण,विष्णु या जो आपके पूज्य होंगे उनका नाम लेगें। आप सुबह करते हैं तो उनका नाम चपते हैं, शाम करते हैं तो उनका नाम जपते हैं। क्योंकि पूजा की जो भावना आपकी प्रकृति में डाल दी गई है यह उसी का व्यवहारिक रूप है। पर जरा दिल पर हाथ रखें। मन को टटोलें और बुद्धि लगायें तो शायद आपको यह समझ में आएगा कि वह तो मानव थे ना। हमारे जैसे ही जन्म लिया था, हमारे जैसे ही उनको खानपान की आवश्यकता पड़ती थी। उन्हें नींद और ऊंघ भी आती थी। उन्होंने अपना सारा जीवन एक मानव के समान बिताया। स्वयं आज उनकी मूर्तियाँ इस पर प्रमाण हैं। अब प्रश्न यह है कि जब वह हमारे पूज्य ठहरे तो उनके पूज्य कौन थे? उनके भी तो कोई पूज्य रहे होंगे ना। उनकी रचना किसने की थी ? हालांकि वह तो एक इंसान थे ना। (2) सत्य की खोज करें ============= शायद आपके मन में यह संदेह आया होगा। आप उसका उत्तर यह देंगेकि यार! वह तो ईश्वर के रूप में आए थे, उनकी पूजा ईश्वर की पूजा है। पर हमें कहने दिया जाए कि क्या यह भावना ईश्वर की महिमा को तुच्छ सिद्ध नहीं करता। जो ईश्वर सारे संसार का सृष्टा, पालनपर्ता और स्वामी है उसके सम्बन्ध में यह कैसे सोचा जा सकता है कि वह मानव मार्गदर्शन हेतु वह स्वयं किसी मानव का वीर्य बने, किसी महिला के गर्भ से जन्म ले, फिर लोग ऐसी स्थिति में उन्हें मानव ही ना समझेंगे ? उनके साथ मानव जैसा ही ना व्यवहार करेंगे? सत्य यह है कि यह सब काल्पनिक बातें हैं वास्तविकता यह है कि यह धार्मिक गुरुओं पर बहुत बड़ा अत्याचार हुआ है जिन्होंने मानव मार्गदर्शन का काम किया था आज लोग उन्हीं की पूजा कर रहे हैं। (3) सत्य की खोज करें ============= ईश्वर जिसने राम, कृश्रण, विष्णु सब की रचना की, उसी का उपकार है कि हम इस धरती पर चल रहे हैं, उसी ने हमारी रचना की जब कि हम तुच्छ वीर्य थे अपने से कुछ कर नहीं सकते थे, वह माँ जिसके गर्भ में हम थे हमारी रचना करने का अधिकार उसको भी नहीं था । जिसने हमें इतना अच्छा रूप दिया है उसी ईश्वर की पूजा होनी चाहिए , उसका भागीदार नहीं होना चाहिए। यह संदेश यदि किसी धर्म ने दिया है तो वह है इस्लाम। सत्य जहाँ भी मिले उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। वह व्यक्ति सत्य को कदापि नहीं पा सकता जो सत्य के रास्ते में पूर्वजों के रीति रेवाज की ओर देखता हो । तो आइए विशाल हृदय से अपने ईश्वर के संदेश को जानने का प्रयास करें। Admin 02
Posted on: Sun, 07 Jul 2013 15:44:30 +0000

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