|| ब्रम्ह सत्यं - TopicsExpress



          

|| ब्रम्ह सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रम्हैव नापरः || - भगवत्पाद जगद्गुरू शंकराचार्य इस अद्वैत सूत्र पर जितना लिखेंगे , जितनी समीक्षा करेंगे उतना कम ही पड़ेगा | आज समाज मे ऐसा भी समूह दिखता है जिसने अद्वैतवाद का किंचित मात्र भी अध्ययन नहीं किया और मात्र इस सूत्र को सुनने के आधार पर है और अपनी बुद्धि मे कुछ शंका कुशंका लिए हुए हैं | मै इस सूत्र के पीछे के तर्क को प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ | » जड़वादी (materialist) को ब्रम्ह कहीं पे दिखता ही नहीं है केवल जगत ही जगत दिखता है इसलिए उनको उपरोक्त सूत्र ही उल्टा दिखता है जगत सत्यम् ब्रम्ह मिथ्या | कारण जड़वादी प्रत्यक्ष प्रमाण वादी होते हैं उन्हें वही सत्य लगता है जो प्रत्यक्ष दिखाई दे ,,ब्रम्ह को ना देख पाने के कारण वे ब्रम्ह को सत्य और जगत को मिथ्या कैसे मान सकते हैं ? अतः नहीं मानते | >>>>>>>>> परन्तु इन् लोगों का यह तर्क पूर्णतया खंडनीय है,,इनका खंडन तो हमारे संस्कृति कि यह कहावत ही कर देती है पश्यति इति पशु | जो दिखाई दे उसे ही स्वीकारना यही तो पशुत्व है ,,,जिसमे बुद्धि का किंचित मात्र भी स्पर्श नहीं है | हमें जो यह विश्व दिख रहा है उसका ज्ञान हमें हमारी इन्द्रियां कराती हैं ,,,तो मूलभूत प्रश्न यह है कि क्या इन्द्रियों द्वारा प्राप्त हुआ ज्ञान सत्य होगा ? जब हम पेन्सिल को पानी मे रखते हैं तो वह वक्राकार दिखती है | रण प्रदेश मे मृगमरीचिका का ज्ञान होना ऐसा ही है | ऐसे अनेकानेक उदाहरण हैं जिसमे हमें भौतिक विज्ञान ( Physics) का ज्ञान ना हो तो हम केवल इन्द्रियों के द्वारा प्राप्त हुए ज्ञान से धोखा खा जाते हैं | हमारे सामने हरे रंग का वृक्ष है पर क्या उसका पदार्थ हरे रंग का है ? नहीं , भौतिक विज्ञान कहता है कि प्रकाश के सात रंगों मे से वहाँ पर केवल हरा रंग परावर्तित (reflect) होता है इस कारण हमें पदार्थ हरे रंग का दिखाई पड़ता है | हम लोगों जैसे प्राणी जो दृश्य प्रकाश का उपयोग देखने के लिए करते हैं उन्हें यहाँ पर उपरोक्त रंग दिखता है उसी प्रकार जो अन्य प्राणी इन्फ्रारेड तरंगों का उपयोग करते हैं उन्हें वहाँ पर वही पदार्थ कुछ और रंग का दिखेगा |अंतिमतः हम कह सकते हैं कि our sense deceive us ( हमारी इन्द्रियां हमें धोखा देती हैं )| यदि जो दिखता है केवल हम उन्हें ही सत्य मानेंगे तो जगत मे ऐसी कितनी ही तरंगे हैं जो हमारी इन्द्रियों के लिए ग्राह्य नहीं हैं पर वे हैं और अल्ट्रासानिक तरंग जैसे खोजों के बाद मानवीय हित मे उपयोग मे भी आ रही हैं | अतः प्रत्यक्षवादियों को तो विज्ञान ही सरलता से समझा देता है कि जिसे तुम सत्य माने हुए हो वह सत्य नहीं है | » कुछ समूह विशेष ऐसा भी है जो कहता है कि यदि आप जगत को मिथ्या मानोगे तो जगत मे जो व्यवहार करते हो धर्म , वर्णव्यवस्था , शिक्षा आदि वह सभी भी तो मिथ्या हो जाएगा ? >>>>>>>>>>>>>>>>> हाँ , निश्चित रूप से मिथ्या है ,,जब जगत ही मिथ्या है तो जगत का व्यवहार भी मिथ्या ही है | पर आप लोग सत्य और मिथ्या किसे कहते हो ? हर विषय कि अपनी एक परिभाषा ( terminology ) होती है आप अपने concept को किसी गंभीर विषय पर बलात् थोप के उसे समझने का प्रयास करेंगे तो ऐसी ही समस्या आयेगी जैसी इन लोगों के समक्ष आती है | वेदांत की परिभाषा मे सत्य क्या और मिथ्या क्या है ? कोई भी कार्य के अंतिम कारण को ही एक मात्र सत्य और स्वरुप से उस कार्य को मिथ्या कहा जाता है | इसे समझने के लिए एक सरल उदाहरण देता हूँ ... जब कुम्भकार घड़ा बनाता है तब उसका उपादान कारण ( जिस पदार्थ से कोई वस्तु बनती है उसे उपादान कारण कहते हैं ) मिटटी को वेदांत की भाषा मे सत्य और घड़े को मिथ्या कहा जायेगा |( हम जिस प्रकार मिथ्या कहते हैं उस प्रकार नहीं !) अब यह मिटटी भी अलग अलग खनिजों (mineral ) से बनी है तो जो अणु (molecule) हैं मिटटी मे वे मिटटी का उपादान हैं ,,इसलिए वेदांत की भाषा मे अणु सत्य है मिटटी मिथ्या है | अब आज का विज्ञान कहता है कि ९२ प्रकार के परमाणुओं ( atoms ) से अणु बना है ,,,तो वेदांत की परिभाषा मे परमाणु ही सत्य हैं और अणु मिथ्या | ये ९२ परमाणु भी अधिकतर समान उपादान से बने हैं जैसे कि सोडियम मे ११ इलेक्ट्रान हैं , मैगनीशियम मे १२ पर सभी परमाणु इलेक्ट्रान , प्रोटान आदि माइक्रो कण से मिल कर बने हुए हैं ...इस क्रम मे जब हम आगे चलते जायेंगे तो जगत का अंतिम उपादान जो होगा उसे वेदांत ब्रम्ह कहता है |और उसकी परिभाषानुसार यह प्रथम और अंतिम कारण ही सत्य है उससे बने हुए सभी कार्य मिथ्या हैं | वेदांत मे मिथ्या शब्द इसी प्रकार के अर्थ मे प्रयुक्त होता है तो हमें उसकी terminology के अनुसार ही अर्थ करना चाहिए | अब रही बात जगत के व्यवहार , धर्म , वर्ण वगैरह को मिथ्या मानने की तो अब बुद्धिवादियों (Rationalists ) को कोई आपत्ति नहीं आनी चाहिए | —
Posted on: Wed, 06 Nov 2013 05:02:24 +0000

Trending Topics



Recently Viewed Topics




© 2015