Compelled to share... Excellently written ------------------------------------------------ आखिर इतना तुष्टीकरण क्यों? भटकल पकड़ा जाता है तो कहते हो कि यह मुस्लिमों के खिलाफ साजिश है और उसे बचाने के लिए हज़ार तकरीरें सुनाते हो, हज़ार तरकीबें बुनते हो। तुम महज समाजवादी पार्टी के एक नेता नहीं हो, तुम जदयू की बिहार इकाई भी हो और तुम हीं बाएँ चलते लोगों का एक जत्था हो। और तुम सब की पूँछें कांग्रेस के आलाकमान के हाथों में है। तुम्हारे कई चेहरें हैं और हर चेहरे में बस एक हीं ब्लू-प्रिंट मौजूद है... कोई माने या न माने। तुम्हारी हिंदू विचारधारा (या तुम्हारे शब्दों में हिन्दुत्व) से चिढ या नफ़रत समझ आती है, तुम हिंदू उत्सवों पर देवताओं और बने बनाए मानकों और अवतारों पर कीचड़ उछालते हो, उन्हें गरियाते हो... सत्तर करोड़ देशवासी यह भी सह जाते हैं... लेकिन एक खास मजहब के लोगों के प्रति तुम्हारा अगाढ स्नेह और दूसरे धर्म के लोगों पर आँखें तरेरने की तुम्हारी यह दुहरी नीति अंग्रेजों से भी आगे जाती है। अंग्रेज तो हिन्दुस्तान के न थे... तुम हो या नहीं? हाँ भूल गया... तुम्हें तो हिन्दुस्तान नाम से भी नफ़रत है... भारत से भी.. क्योंकि इन नामों में हिन्दू है, भरत है। कोई और नाम ईजाद कर लो या फिर उन्हीं के सर्वेसर्वा से पूछ लो जिनके मजहब का शासन ५०-५५ देशों में चल रहा है। तुम कहते हो कि आई बी इन्हें फ्रेम कर रही है और तुम्हें हर घटना (चाहे वह बोधगया हीं क्यों न हो) में हिन्दुओं का हीं हाथ दिखता है। सही बात है, आई बी हिन्दुओं की बपौती है और पाप हिन्दुओं का जन्म सिद्ध अधिकार। पीसना इन्हीं का काम है और चुप-चाप पिसे जाना उनका। (आप प्रभु हैं... मेरी आँखें अभी तक बंद थी.. आपने खोल दीं... आपका किन शब्दों में शुक्रिया अदा करूँ) तुमपर अपने अंदर का उबाल उड़ेल रहा हूँ, जानता हूँ कि गलत कर रहा हूँ, फिर भी आजकल जो हुआ है, जो हो रहा है, वह न सुनाऊँ तो अंदर हीं अंदर घुटता रहूँगा। मुझे तुम्हारे तुष्टीकरण से दिक्कत है, उनसे और उनके मजहब से नहीं। और जब यह तुष्टीकरण बलात्कार जैसे जघन्य कुकृत्यों में खुलकर सामने आता है तो खून खौल उठता है। मासूम निर्भया दिसंबर में छह दरिंदों का शिकार हुई। सबने एक वहशी का नाम पहले दिन से हीं जान लिया। नाम था ’राम सिंह’। इस राम के नाम में उस ’राम’ के नाम को डुबोया गया खूब। बाकी बचे पाँच। इनमें से चार की खूब चर्चा हुई और पाँचवाँ पहले दिन से हीं नाबालिग कहा गया और नाम बताया गया राजू। न पूरा नाम, न पता। हाँ यह सुनने को ज़रुर मिला कि परिवार गरीब है, रोजी-रोटी भी नसीब में नहीं। माहौल ऐसा बनाया गया कि सहानुभूति-वश देश की निरीह और भोली-भाली जनता इसे बेचारा मानकर मुआफ़ कर दे। नाबालिग तो कानून ने साबित कर भी दिया। क्या मालूम, ’बोन टेस्ट’ हुआ भी या नहीं। अब तीन साल बाद यह नाबालिग व्यस्क बनकर निकलेगा और फिर किसी निर्भया को भभोड़ेगा मन भर। राजू खुश! राजू को बचाने वाले खुश! बचाने वाले यानि कि तुम... और तुम इसलिए खुश क्योंकि राजू ’राम’ नहीं बल्कि ’मोहब्बद अफ़रोज़’ है। अब इससे बड़ी तुष्टीकरण की नीति क्या होगी कि नाम तक सामने आने न दिया। asansolnews.wordpress/2013/01/10/muslim-rapist-who-raped-damini-being-defended-by-double-standard-secular-media-and-administration/ मैं अब इससे ज्यादा क्या कहूँ। खुद पर गुस्सा भी आ रहा है कि कल तक मजहबी एकता की बात करने वाला और इन मुद्दों को भूलकर भी तूल न देने वाला मैं, आज इस तरह सोचने और लिखने पर मजबूर हो चला हूँ। तुम्हारे ’दोमुँहेपन’ ने यह कारनामा भी कर दिया। अब खुश ना? मैं फिर से नॉर्मल (और तुम्हारी भाषा में सेक्युलर) हो भी जाऊँ, तुम कब सही मायनों में सेक्युलर होओगे, बताओ। (तुम्हारी संतुष्टि के लिए यह भी कह दूँ कि मुझे आसाराम का कृत्य भी घिनौना लगता है। अगर दोष साबित होता है तो उसे भी कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए... और उसे बचाने वालों को भी)
Posted on: Sat, 31 Aug 2013 15:46:56 +0000
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