Friday, 9 August 2013 10:22 AM टोलियाशाही - TopicsExpress



          

Friday, 9 August 2013 10:22 AM टोलियाशाही का खाल्योंडांडियन चिंतन addressed to सदस्य,म्यरउत्तराखंड,धुमाकोटनैनीडांडातथाइंटरनेटपरउपलब्धदूसरेउत्तराखंडीग्रुप कोचियार लाइब्रेरी विचारकों को अपोला खाल्योंडांडा पर्यटन ट्रैक पर ले आई है और उत्तराखंड के पहाड़ी हिस्से के औद्योगिककरण की चर्चा कर रही है. फेस बुक है. उस पर नैनीडांडा विकास संघ एक ग्रुप है, धुमाकोट नैनीडांडा दूसरा ग्रुप है. चार गांवों का चौख़ट ग्रुप है, मेरा धुमाकोट और आवाज़ नए ग्रुप है. धर्म जी का नैनीडांडा डिस्कशन ग्रुप भी है जिस पर वह उत्तराखंड सरकार के लिंकों की विकास टोकरी सजाये हुए है. कल की मेलThursday,8August2013 9:35AMउत्तराखंड स्थापना का खाल्योंडांडा चिंतन पर उन्होंने अपने विचार इस प्रकार रखे: उत्तर प्रदेश सरकार ने श्रीनगर में क्षेत्रीय विकास केंद्र खोल दिया था. उस नेTNORDको संकेतामक आर्थिक सहायता भी दी ताकि जड़ाऊखान्द में ऑफिस खुल जाये. उस सहायता से जड़ाऊखान्द में दलीप सिंह रावत नेTNORDके व्यवस्था ट्रेनी के रूप में काम किया. ग्रांट समाप्त हुई तो दिलीप जी को ऑफिस और काम दोनों को ही बंद करना पडा. यह दूसरा प्रयोग था. पहला प्रयोग भोला दत्त नौगाईं उत्तराखंड औद्योगिक सहकारी समिति बना कर किया था. उत्तर प्रदेश सरकार की पहल से यह किया गया. फिर उत्तराखंड बना. और उत्तराखंड सरकार ने उत्तराखंड क्षेत्र के औद्योगिकीकरण के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित केंद्र मिटा दिया. लेकिन फाइल को कचरे के डिब्बे में नहीं डाल पाई . . .क्योंकि फाइल तो उत्तर प्रदेश सरकार के पास ही होगी? टेक्नोलॉजिकल नर्सरी का कांसेप्ट भी कोई क्या समझेगा?जब उसकी रूप-रेखा वाली फाइल ही मौजूद नहीं होगी... !! ठीक इसी तरह का कचरा मेरी विकास की टोकरी में भी है जी . . .जो विभिन्न साईट के लिंक द्वारा प्रकाश में आता है... (जो जरुरत उनके पास आई....उन्होंने उनको उपलब्ध करवा दिया,जिनको जरुरत ही नहीं हैं. . उनके पास उनकी मांगे नहीं हैं. . इसीलिए कुछ आगे नहीं कर पाई होगी टोलियाशाही. . .वैसे भी सरकार काम हैं जी. .फ़ालतू-फंड में काम धाम को हाथ नहीं लगाते हैं वे लोग ) लेकिन जैसा डॉ. रावत जी ने बताया कि सारा प्रयास अनुसूचित श्रेणी के लिए ही हो रहा है,घर बना कर स्वरोजगार आ जाने के सपने सरकार देख रही है हुनर प्रशिक्षण के और बिना यथोचित संसाधनों के ), जिनके खेत ही नहीं हैं,उनको लघु सिंचाई के लिए सहायता दे रही है. गोबर गैस के लिए अनुदान छोटे साइजों पर है और शर्त है की ९ -१० बड़े मवेशी ( इनके छोटे भी तो साथ में होंगे ) होने की। कितनो के पास हैं इतने अधिक मवेशी? अब वह ५-६ ब्वारियो वाले संयुक्त परिवार कहाँ हैं जो इतने मवेशियों के लिए घास काट सकें,फिर पहाड़ों में खूंटे से बांध कर जानवरों की खिलाई पिलाई नहीं हो सकती तो घर में केवल रात का ही गोबर मिलेगा,संयंत्र लगाने की जगह कहाँ होगी,रोज जो ३-४०० लिटर स्लरी बाहर निकलेगी उसको कैसे सम्हालेंगे। बायो गैस का क्या होगा? , इसी तरह,हर जगह,बिना मंथन के चिंतन हो रहा है. तो सुई वही पर अटकी किरर्र खचाक्क्क किर्र्रर्रर खछाक्क्क्क्क कर रही है. उत्तराखंड के तीन जिले टिहरी(सबसे पहले),चम्पावत और चमोली देश के सबे पिछड़े जिलों में से एक हैं (मतलब २३%) उत्तराखंड के 95 ब्लाक में से 74 पिछड़े हुए हैं (मतलब 78%) इसीलिए सारा प्रयास अनुसूचित श्रेणी के लिए ही हो रहा है. . . मांग क्या है....? हमें क्या चाहिए? (ब्लाक स्तर पर ) किसके लिए चाहिए? (जिसको जरूरत है. . . वोह कहाँ हैं ) मांग कि रूप-रेखा होगी तो योजना भी तभी पास होगी . . .तोलियाशाही भी तो तभी काम करेगी जब ग्राम-सभाएं अपनी जरूरतों को(एकजुट होकर) ब्लाक स्तर के पटल पर रखेंगी ग्राम वासियों को भी तो अपने नव युवकों के बारे में कुछ सोचना होगा (खाली पंच-प्रधान बन के रोजगार के नाम पर मनरेगा में दिहाड़ी बांटने से काम नहीं चलेगा ) और जब कोई दिहाड़ी कमा के ही खुश है....तो कोई क्या कर सकता है..? स्किल डेवलपमेंट सेण्टर लगने हैं ...बल... उत्तराखंड में ...(2010 में बन गया था उत्तराखंड डेवलपमेंट मिशन). . .आज तक तो कुछ नहीं हो पाया ...अब सैद सि आपदा का बहाना हो गया उनके पास . . . जगाते रहो. . .कभी तो जागेगा उत्तराखंड राज्य योजना आयोग का चेयरमैन . . . म्य्लोर्ड भैजी... धर्म जी ने उत्तराखंड के पिछड़े जिलों की बात की है. इसं पिछड़े जिलों में चम्पावत भी है. कभी इन मेलों में गुमोद परिक्रमा की चर्चा होती थी. काम लगभग ऐसा ही होता था जैसा आज अपोला खाल्योंडांडा पर्यटन ट्रैक के बारे में इस समय किया जा रहा है. मेलThu Aug3,2006 1:28pm WUA Re: Ad Agencyके अनुसार I have two columns: Phatte ki Sarkar in Pyara Uttarakhand and Vikas Parikrama in Parvatiya Times. Both these columns are based on Gumod Parikrama – a hand written daily. Gumod is a village in District Champawat in Uttaranchal. Gumod Parikrama discusses the problems of school drop outs. The hero of Gumod Parikrama is Ramesh Chandra Sharma who has risen to the position of Graphic Designer from a very humble beginning. Ramesh is in printing industry for the time being. He feels that he will have a better future in ad industry इन्टरनेट पर हिंदी की सुविधा मिल जाने पर गुमोद परिक्रमा का विलय इन मेलों में हो गया. इस समय ध्यान अपोला खाल्योंडांडा पर्यटन ट्रैक पर है. ऐसा ही काम हर ब्लाक में किया जा सकता है. उत्तराखंड के सन्दर्भ में उत्तरप्रदेश सरकार याद की जा रही है है तो मंत्री बलदेव सिंह आर्य को भी याद किया जाना चाहिए. उत्तर प्रदेश सरकार ने हिल डेवेलप डिपार्टमेंट बनाया था. इस डिपार्टमेंट के पहले मंत्री बलदेव सिंह आर्य थे. इस डिपार्टमेंट ने लेंस नर्सरी प्रोजेक्ट को महत्व दिया. इस डिपार्टमेंट के द्वारा योजना सी एस आई आर के पास डिटेल्ड प्रोजेक्ट एंड फीजिबिलिटी रिपोर्ट तैयार करने के लिए भेजी गयी. से एस आई आर ने काम एन पी एल को सौंपा. एन पी एल ने काम शुरू किया.पर समय लगा एन पी एल को हिल डेवेलप मेंट डिपार्टमेंट का सहयोग चाहिए था. तब तक उत्तर प्रदेश में सरकार बदल गयी मंत्री बदल गए. सचिव बदल गए. टोलिया हिल डेवेलपमेंट डिपार्टमेंट के सचिव थे. मंत्री जी सहयोग देना चाहते थे पर अपने आप को उत्तराखंड का धुरंधर विद्वान मानने वाले डाक्टर टोलिया ने योजना को अव्यावहारिक घोषित कर दिया आपदा थी चली गयी,केदारनाथ आपदा आई और चली गई. केदारनाथ मिटा नहीं. इसी प्रकार लेंस प्रोजेक्ट चलता रहा. राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाळा का सिम्पोजियम कम वर्कशॉप का उद्घाटन उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री नारायण दत्त तिवारी ने किया. अपने साथ वह राज्य के सभी सम्बंधित सचिवों के लाये. सब ठीक चल रहा था की आफत आ गयी उत्तराखंड बन गया. असली ताकत टोलिया जी को मिल गयी. सरकारी अफसरों की संस्था उत्तरायणी भी टोलिया जी पर कोई असर न डाल सकी. पर बात आज की है. उत्तरायणी आज उतनी महत्वपूर्ण नहीं रही है. उसके एक सदस्य ने मेलTuesday,6August2013 11:43AMशिक्षक का राजनीतिक महत्व है पर शिक्षण तो विकास की जड़ हैके सन्दर्भ मेंH.G. Upretiकहते है There is need for an activity mapping to define the activities to be undertaken at the level of the Govt, three tiers of Panchayats (with due regard to73rd amendment of the Constituion) in so far as actitives relating to primary, secondary and higher education is concerned. This mapping may take into account the need for vocational and technical education.We may draw lessons from Kerala, Tamil Nadu, Karnataka, Maharashtra etc where PRIs have played there role significantly in this area. The activites of PRIs may be subject to audit at Gram Sabha level and any corrupt activity should be got rectified instanteneously उप्रेती जी का सुझाव महत्वपूर्ण हो सकता है. पर बात तो अपोला खाल्योंडांडा पर्यटन ट्रैक पर हो रही है. चर्चा हो रही है तभी तो क्षेत्र शिक्षा विभाग की कमजोरियों पर ध्यान गया है. सुविधाएँ हैं पर छात्र छात्राएं नहीं है. पर काम भी तो है. नैनीडांडा के ऐतिहसिक और भौगोलिक जानकारी की जरूरत है. मर्चूला जडाऊखान्द रथुआढाब पर्यटन सर्किट के बारे में जानकारी चाहिए. यह जानकारी जमीनी स्तर से प्राप्त की जानी है. यह काम नैनीडांडा क्षेत्र के स्कूलों और कालेजों के अध्यापक कर सकते हैं. इस दिशा में प्रधान आचार्यों की जिम्मेदारी है. डिग्री कालेज की जिम्मेदारी है. उसके प्रधानाचार्य की जिम्मेदारी है ग्राम पंचायते और क्षेत्रीय राजनीति तभी चेतेगी जब की क्षेत्र के शिक्षा केंद्र सचेत हों. फिल हाल यह मेल यहीं समाप्त की जा रही है. इस के साथ ही वह प्रतिक्रिया चर्चा में लाई जा रही है जो डाक्टर बलबीर सिंह रावत ने कल की मेलThursday,8August2013 9:35AMउत्तराखंड स्थापना का खाल्योंडांडा चिंतनपर की है. उनकी पोस्टिंग है BSR0210KL08At उत्तराखंड स्थापना,और खाल्योंडांडा किस्म का चिंतन . कई प्रकार के प्राचीन,पुराने,आज के चिन्तनों में एक और प्रकार के "खाल्योंडांडा चिन्तन को जोड़ पाना उतनी ही बड़ी उपलब्धि है,जितनी उत्तराखंड क्रांति दल को,उत्तरप्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों की दुर्दशा के चिंतन से उत्पन्न आन्दोलन को मूर्त रूप देने की है . लेकिन लक्ष्य प्राप्ति के बाद क्या हुआ?अपनी चरम में पहुची यह पार्टी आज कहाँ है?तीन टुकड़ों में कटी हुई (बंटी हुई नहीं,काटी गई ),एक होने को तड़फड़ा भी रही है और हो भी नहीं रही है. ठीक इसी प्रकार उत्तराखंड का एक टुकड़ा,खाल्योंडांडा,भी चिंतन कर रहा है की कैसे पूरे उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व करे और अपने मॉडल से उसका विकास करने का मार्ग दर्शन करे. लेकिन अभी स्तिथि चिंतन के प्रारम्भिक दौर से ही जूझ रही है,की क्या शिक्षा से विकास हो सकता है?क्या शिक्षको द्वारा स्थानीय इतिहास भूगोल की जानकारी एकत्रित करने से विकास हो सकता है?क्या एक एकल स्थानीय पर्यटन सर्किट की स्थापना से विकास हो सकता है?क्या कोचियार लाइब्रेरी की मेलों को पढ़ कर विकास हो सकता है? इस बात के लिए कोई समय तय नहीं है की चिंतन कब पूरा कर लिया जाना चाहिए,और कब सारे के सारे चिन्तक अपने अपने सुझाओं को एक मचं पर,मनन के लिए लायेंगे और एक मत हो कर विकास का सही मार्ग प्रस्तुत कर पायेंगे. लगता है कि इस बात की चिंता किसी को नहीं है की समय तो अविरल गतिमान होता है,जब तक चिन्तक लोग चिंतन पूरा करेंगे तब तक उत्तराखंड का विकास,अपनी आज की राह पर चलते चलतेpointऑफ़ नोreturnको पार कर चुका होगा,और तब सारा चिन्तन बेकार साबित होगा,इतिहास दोहरा दिया गया होगा,ठीक उक्रांद की तरह जो तब हथोडा नहीं चला पाया जब "लोहा गरम" था,और अब ठन्डे लोहे को,तीनो टुकड़ों के,तीन तीन महारथियों के द्वारा पिटा पिटा भी कुछ नहीं कर पा रहा है. लोहे को तो अन्य बड़े दल अब कभी गरम नहीं होने देंगे,तो फिर कैसा चिंतन होना चाहिए?मनन कीजिये।BSR राम प्रसाद
Posted on: Fri, 09 Aug 2013 05:19:54 +0000

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