Land Acquisition Act -एक अंग्रेज आया - TopicsExpress



          

Land Acquisition Act -एक अंग्रेज आया इस देश में उसका नाम था डलहौजी|ब्रिटिश पार्लियामेंट ने उसे एक ही काम के लिए भारत भेजा था कि तुम जाओ और भारत के किसानों के पास जितनी जमीन है उसे छिनकर अंग्रेजों के हवाले करो|डलहौजी ने इस "जमीन को हड़पने के कानून" को भारत में लागू करवाया,इस कानून को लागू कर के किसानों से जमीने छिनी गयी|जो जमीन किसानों की थी वो ईस्ट इंडिया कंपनी की हो गयी|डलहौजी ने अपनी डायरी में लिखा है कि " मैं गाँव गाँव जाता था और अदालतें लगवाता था और लोगों से जमीन के कागज मांगता था"|और आप जानते हैं कि हमारे यहाँ किसी के पास उस समय जमीन के कागज नहीं होते थे क्योंकि ये हमारे यहाँ परंपरा से चला आ रहा था या आज भी है कि पिता की जमीन या जायदाद बेटे की हो जाती है,बेटे की जमीन उसके बेटे की हो जाती है|सब जबानीहोता था,जबान की कीमत होती थी या आज भी है आप देखते होंगे कि हमारे यहाँजो शादियाँ होती हैं वो सिर्फ और सिर्फ जबानी समझौते से होती है कोई लिखित समझौता नहीं होता है,एक दिन /तारीख तय होजाती है और लड़की और लड़का दोनों पक्ष शादी की तैयारी में लग जाते है लड़के वाले निर्धारित तिथि को बारात ले के लड़की वालों के यहाँपहुँच जाते है,शादी हो जाती है|तो कागज तो किसी के पास था नहीं इसलिए सब की जमीनें उस अत्याचारी डलहौजी ने हड़प ली|एक दिन में पच्चीस-पच्चीस हजार किसानों से जमीनें छिनी गयी|परिणाम क्या हुआ कि इस देश के करोड़ों किसान भूमिहीन हो गए|डलहौजी के आने के पहले इस देश का किसान भूमिहीन नहीं था,एक-एक किसान के पास कम से कम 10 एकड़ जमीन थी,ये अंग्रेजों के रिकॉर्ड बताते हैं|डलहौजी ने आकर इस देश के 20 करोड़ किसानों को भूमिहीन बना दिया और वो जमीने अंग्रेजी सरकार की हो गयीं|1947 की आजादी के बाद ये कानून ख़त्म होना चाहिए थालेकिन नहीं,इस देश में ये कानून आज भी चल रहा है|हम आज भी अपनी खुद की जमीन पर मात्र किरायेदार हैं,अगर सरकार का मन हुआ कि आपके जमीन से हो के रोड निकाला जाये तो आपको एक नोटिस दी जाएगी और आपको कुछ पैसा दे के आपकी घर और जमीन ले ली जाएगी|आज भी इस देश में किसानों की जमीन छिनी जा रही है बस अंतर इतना ही है कि पहले जो काम अंग्रेज सरकार करती थी वो काम आज भारत सरकार करती है|पहले जमीन छीन कर अंग्रेजों के अधिकारी अंग्रेज सरकार को वो जमीनें भेंट करते थे,अब भारत सरकार वो जमीनें छिनकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भेंट कररही है और Special Economic Zoneउन्हीं जमीनों पर बनाये जा रहे हैं और ये जमीन बहुत बेदर्दी से लिए जा रहे हैं|भारतीय या बहुराष्ट्रीय कंपनी को कोई जमीन पसंद आ गयी तो सरकार एक नोटिस देकर वो जमीन किसानों से ले लेती है और वही जमीन वो कंपनी वाले महंगेदाम पर दूसरों को बेचते हैं|जिसकी जमीन है उसके हाँ या ना का प्रश्न ही नहीं है,जमीन की कीमत और मुआवजा सरकार तय करती है,जमीन वाले नहीं|एक पार्टी की सरकार वहां पर है तो दूसरी पार्टी का नेता वहांपहुँच के घडियाली आंसू बहाता है और दूसरी पार्टी की सरकार है तो पहले वाला पहुँच के घडियाली आंसू बहाता है लेकिन दोनों पार्टियाँ मिल के इसकानून को ख़त्म करनेकी कवायद नहीं करते और 1894 का ये अंग्रेजों का कानून बिना किसी परेशानी के इस देश में आज भी चल रहा है|इसी देश में नंदीग्राम होते हैं,इसी देश में सिंगुर होते हैं और अब नोएडा हो रहा है|जहाँ लोग नहीं चाहतेकि हम हमारी जमीन छोड़े,वहां लाठियांचलती हैं,गोलियां चलती है|आपको लगता है कि ये देश आजाद हो गया है?मुझे तो नहींलगता|
Posted on: Sat, 24 Aug 2013 12:55:08 +0000

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