PLEASE HALP TO NARENDRA MODI..AS A YOU CITZEN OF INDIA....Five of - TopicsExpress



          

PLEASE HALP TO NARENDRA MODI..AS A YOU CITZEN OF INDIA....Five of the biggest tasks: Five challenges for Modis new government 1. DELIVERING A BUDGET THAT LIMITS THE DEFICIT 2. NARROWING THE CURRENT ACCOUNT DEFICIT 3. DEALING WITH RBI AND EL NINO 4. REVIVING PRIVATE INVESTMENT 5. RECAPITALISING STATE-RUN BANKS and......... भारत के 16वें आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जीत अप्रत्याशित और अभूतपूर्व है. इस जीत में हिंदुत्व का एक छिपा हुआ प्रभाव रहा क्योंकि नरेंद्र मोदी की पहले से हिंदू हृदय सम्राट की छवि थी और इसलिए उन्हें अपनी इस छवि को दोबारा उजागर करने की ज़रूरत नहीं थी. भाजपा ने चुनावी कैंपेन विकास के नारे पर किया. अपने घोषणापत्र में उन्होंने विकास की ज़्यादा दावेदारी की. लेकिन यह बात सही है कि भाजपा ने 1980 के दशक में अपने शुरुआती दिनों में चंद विवादित मुद्दे उठाए थ ये मुद्दे हिंदुत्व के एजेंडे से सीधे जुड़े हुए थे. उस समय उनके तीन बड़े मुद्दे थे. एक, अयोध्या में राम मंदिर बनाना, दूसरा, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 ख़त्म करना और तीसरा, भारत में एक कॉमन सिविल कोड बनाना. भाजपा और उसके मातृ-संघटन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडे पर हमेशा से ये मुद्दे रहे हैं. 1996 में जब पहली बार भाजपा की सरकार बनी थी और 13 दिनों में गिर गई थी. उस समय प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी ने पत्रकारों से कहा था कि हम इन तीनों मुद्दों को अभी किनारे रख रहे हैं. वाजपेयी ने कहा था कि हमारी गठबंधन की सरकार है इसलिए जब भाजपा कभी अपने दम पर सत्ता में आई, तब हम इन मुद्दों को देखेंगे. या फिर जब सभी गठबंधन दलों की एक राय बन जाएगी तब हम इसे दोबारा उठाएंगे. गठबंधन का बहाना नहीं चलेगा अटल बिहारी वाजपेयी अटल बिहारी वाजपेयी के ही नेतृत्व में भाजपा 1998 में 13 महीनों के लिए और 1999 में लगभग पांच साल तक सत्ता में रही, लेकिन दोनों बार उसकी गठबंधन सरकार ही थी. लेकिन अब पहली बार भाजपा पूर्ण बहुमत से केंद्र में आई है. ऐसा बहुमत पिछले 30 साल में किसी पार्टी को नहीं मिला था. ऐसे में सवाल यह है कि अब क्या भाजपा इन सभी मुद्दों को सामने लेकर आएगी. भारत के 15-20 करोड़ मुसलमानों में कॉमन सिविल कोड को लेकर संशय है. वहीं अनुच्छेद 370 का मामला बहुत पेचीदा है. पिछले क़रीब 25 साल से कश्मीर में भारतीय सेना जमा है. भारतीय उपमहाद्वीप में चैन-अमन नहीं क़ायम होने के पीछे एक बड़ा कारण कश्मीर का मुद्दा है, जो भारत और पाकिस्तान के बीच फंसा हुआ है. तीसरा, मुद्दा है अयोध्या में राम मंदिर बनाने का. यह मुद्दा राजनीतिक रूप से तक़रीबन ख़त्म हो चुका था लेकिन अब सवाल है क्या भारत की नई सरकार रामजन्म भूमि पर मंदिर बनाएगी. विकास पुरुष बनाम हिंदू हृदय सम्राट नरेंद्र मोदी नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व को जितना मैं समझ पाया हूं उसके आधार पर कह सकता हूं कि इस समय नरेंद्र मोदी जो तय कर देंगे, वह हो जाएगा. इस समय उनकी पौ बारह है. सही मायने में राजीव गांधी भी नरेंद्र मोदी जैसे नेता नहीं थे क्योंकि उनकी मां की हत्या हुई थी और उसी सद्भावना के बल पर वह सत्ता में आए थे. मोदी की तुलना इंदिरा गांधी से की जा सकती है. वह भी 1980 वाली इंदिरा गांधी नहीं जो हार के बाद आई थीं बल्कि 1971 वाली इंदिरा गांधी, जो लगातार जीतती रही थीं. जिन्होंने 1966 में प्रधानमंत्री बनने के बाद 1967 का चुनाव जीता. राष्ट्रपति अपनी मर्ज़ी का बनाया, कांग्रेस पार्टी को तोड़ा, फिर 1971 का चुनाव जीता. उसके बाद इंदिरा वास्तव में तानाशाह हो गई थीं लेकिन उस घटना को अब 43-44 साल बीत चुका है. आज का दौर अलग है. अब उस तरह का तानाशाह भारत में नहीं हो सकता है. अभी इस सरकार का साल-छह महीने हनीमून पीरियड चलेगा. उसके बाद नरेंद्र मोदी को असली चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. अभी मोदी जो चाहेंगे, वह करेंगे लेकिन मुझे नहीं लगता कि मोदी इन विवादस्पद मुद्दों को हाथ लगाएंगे. गुजरात का ही उदाहरण लें. बताया जाता है कि गुजरात में सड़कें चौड़ी करने के लिए मोदी ने कई मंदिर गिरवा दिए थे और किसी ने चूं तक नहीं की क्योंकि मोदी ही विकास पुरुष हैं, मोदी ही हिंदू हृदय सम्राट हैं. विकास पुरुष जब चाहे तब हिंदू हृदय सम्राट पर हावी हो जाएगा. नकली मुद्दों की राजनीति नरेंद्र मोदी मुझे आशंका है कि जब विकास पुरुष का क़द छोटा होने लगेगा, तो उस पर हिंदू हृदय सम्राट हावी होने लगेगा. नेता लोग अपने असल मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए नकली मुद्दे उठाते हैं. कॉमन सिविल कोड, अनुच्छेद 370 और राम जन्मभूमि जैसे मुद्दे नकली मुद्दे हैं. ये भावनाएं भड़काने वाले मुद्दे हैं. इन मुद्दों की तब ज़रूरत होती है, जब आपकी राजनीति गर्त में जा रही हो. जब लोग आपकी नीति और शासन को पसंद न कर रहे हों और फिलहाल भाजपा की ऐसी कोई स्थिति दिखती नहीं है. मोदी के ऊपर अपने घोषणापत्र में किए गए आर्थिक वादों को पूरा करने का भी बड़ा दबाव होगा. वह अटल बिहारी वाजपेयी या कांग्रेस की तरह गठबंधन की मजबूरी का बहाना नहीं बना सकेंगे. उन्होंने जिस तरह से दबंग किस्म की राजनीति दिखाई है, उसके बाद जहां कुछ गड़बड़ हुई लोग पूछेंगे कि मोदी जी, आपका 56 इंच का सीना कहां गया. ऐसे में उन्हें आर्थिक मोर्चे पर प्रदर्शन करके दिखाना होगा. वैश्विक मंदी की चुनौती नरेंद्र मोदी आज दुनिया की आर्थिक परिस्थिति ऐसी नहीं है कि किसी मुल्क की आर्थिक स्थिति में नाटकीय बदलाव लाया जा सके. उदाहरण के लिए मोदी ने पार्टी घोषणापत्र में और अपने कैंपेन के दौरान कहा कि वो भारत को मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना चाहते हैं. मैन्यूफैक्चरिंग के लिए तकनीक और निवेश की ज़रूरत होती है. निवेश तब आता है जब निवेशक को यह लगता है कि मैं जो माल बनाऊंगा, वह बिकेगा. मैन्यूफैक्चरिंग दो तरह की होती है, प्रिसीज़न मैन्यूफैक्चरिंग और कंज्यूमर गुड्स मैन्यूफैक्चरिंग. प्रिसीज़न मैन्यफैक्चरिंग में यूरोप और अमरीका बहुत आगे हैं. इसके लिए बहुत उच्चस्तर की तकनीक चाहिए होती है, जिसमें भारत पीछे है. कंज्यूमर गुड्स मैन्यूफैक्चरिंग में चीन, वियतनाम, कंबोडिया और थाईलैंड जैसे देश आगे हैं. लेकिन ऐसी मैन्यूफैक्चरिंग का माल यूरोप के बाज़ारों में खपता है क्योंकि वो अमीर देश हैं. लेकिन इस समय वहां मंदी है. यूरोप में मंदी के कारण इस समय चीन का माल नहीं ख़रीदा जा रहा है. चीन की कंपनियां भी इस समय कम काम कर पा रही हैं. ऐसे में मोदी भारत को मैन्यूफैक्चरिंग हब कैसे बना पाएंगे? सवाल और भी हैं प्याज मोदी के सामने महंगाई का सवाल भी खड़ा है, और मुझे समझ नहीं आता कि महंगाई जिस हाल में है, उसका मोदी कैसे उद्धार करेंगे ? एक और बड़ा सवाल देश की आर्थिक विकास की दर का है. इस समय अर्थव्यवस्था की दर करीब साढ़े चार प्रतिशत है. इसे मोदी कितना बढ़ा पाएंगे, वो इसे पांच प्रतिशत या छह प्रतिशत, आख़िर कितना कर पाएंगे. मान लीजिए कि एक साल वो कहेंगे कि मुझे अर्थव्यवस्था बहुत बुरी हालत में मिली थी लेकिन लोग इतना इंतज़ार करने के मूड में नहीं होते. लोगों को चट मंगनी-पट ब्याह चाहिए. आज की पीढ़ी को अपनी समस्याओं से फौरन निजात चाहिए. मोदी के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती होने जा रही है. इसके अलावा भी कई आपद परिस्थितियां ऐसी सामने आ सकती हैं, जो मोदी की मज़बूत नेता की छवि के लिए चुनौती बनेंगी और उन्हें ख़ुद को साबित करना होगा.
Posted on: Sun, 18 May 2014 06:37:00 +0000

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