Radha Ashtami 2013 यह व्रत हिन्दु - TopicsExpress



          

Radha Ashtami 2013 यह व्रत हिन्दु कैलेण्डर के अनुसार प्रतिवर्ष भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है. इस वर्ष यह 13 सितम्बर 2013, दिन शनिवार को मनाया जाएगा. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से 15 दिन बाद अष्टमी के ही दिन राधाष्टमी मनाई जाती है. राधाजी का जन्म उत्तर प्रदेश के बरसाना नामक स्थान पर हुआ था. बरसाना स्थान मथुरा से 50 किलोमीटर दूर है और गोवर्धन से 21 किलोमीटर दूर स्थित है. बरसाना पर्वत के ढलान वाले हिस्से में बसा हुआ है. जिस पर्वत पर यह स्थित है उस पर्वत को ब्रह्मा पर्वत के नाम से जाना जाता है. राधाष्टमी के दिन श्रद्धालु बरसाना की ऊँची पहाडी़ पर पर स्थित गहवर वन की परिक्रमा करते हैं. इस दिन रात-दिन बरसाना में बहुत रौनक रहती है. विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. धार्मिक गीतों तथा कीर्तन के साथ उत्सव का आरम्भ होता है. जै श्री राधे जै श्री कृष्ण । राधा अष्टमी की शुभकामना _____________________________ राधा जी का जन्म – Birth of Radha JI राधाजी, वृषभानु गोप की पुत्री थी. राधाजी की माता का नाम कीर्ति था. इनकी माता के लिए “वृषभानु पत्नी” शब्द का प्रयोग किया जाता है. राधाजी की को श्रीकृष्ण की प्रेमिका माना जाता है. किसी-किसी ग्रंथ में पत्नी भी माना गया है. पद्मपुराण में राधाजी को राजा वृषभानु की पुत्री बताया गया है. इस ग्रंथ के अनुसार जब राजा यज्ञ के लिए भूमि साफ कर रहे थे तब भूमि कन्या के रुप में इन्हें राधाजी मिली थी. राजा ने इस कन्या को अपनी पुत्री मानकर इसका लालन-पालन किया. इसके साथ ही यह कथा भी मिलती है कि भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार में जन्म लेते समय अपने परिवार के अन्य सदस्यों से पृथ्वी पर अवतार लेने के लिए कहा था. तब विष्णु जी की पत्नी लक्ष्मी जी, राधा के रुप में पृथ्वी पर आई थी. ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार राधाजी, श्रीकृष्ण की सखी थी. लेकिन उनका विवाह रापाण या रायाण नाम के व्यक्ति के साथ सम्पन्न हुआ था. ऎसा कहा जाता है कि राधाजी अपने जन्म के समय ही वयस्क हो गई थी. राधाष्टमी के दिन पूजा विधि – Radha Ashtami Puja इस दिन सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. व्रत का पालन शुद्ध मन से करें. पूजा आरम्भ करते हुए सबसे पहले राधाजी की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएँ. स्नान कराने के बाद उनका श्रृंगार करें. शरीर को शुद्ध करके मण्डप के अंदर मण्डल बनाकर उसके मध्य में मिट्टी अथवा ताँबें का बर्तन रखकर उस पर दो वस्त्रों से ढकी हुई राधा जी की सोने या किसी अन्य धातु से बनी हुई सुंदर मूर्ति स्थापित करनी चाहिए. इसके पश्चात मध्यान्ह के समय श्रद्धा तथा भक्ति से राधाजी की आराधना करनी चाहिए. धूप-दीप आदि से आरती करनी चाहिए. अंत में भोग लगाना चाहिए. जो व्यक्ति व्रत करने के इच्छुक हैं वह इस दिन व्रत भी रख सकते हैं. व्रत रखने के अगले दिन सुयोग्य स्त्रियों को भोजन कराना चाहिए. जिस मूर्ति की स्थापना की गई थी, उसे दान में दे देना चाहिए. अंत में स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए. जो व्यक्ति इस व्रत को विधिवत तरीके से करते हैं वह सभी पापों से मुक्ति पाते हैं. कई ग्रंथों में राधाष्टमी के दिन राधा-कृष्ण की संयुक्त रुप से पूजा की बात कही गई है. इसके अनुसार सबसे पहले राधाजी को पंचामृत से स्नान कराना चाहिए और उनका विधिवत रुप से श्रृंगार करना चाहिए. इस दिन मंदिरों में 27 पेड़ों की पत्तियों और 27 ही कुंओं का जल इकठ्ठा करना चाहिए. सवा मन दूध, दही, शुद्ध घी तथा बूरा और औषधियों से मूल शांति करानी चाहिए. अंत में कई मन पंचामृत से वैदिक मम्त्रों के साथ “श्यामाश्याम” का अभिषेक किया जाता है. __________________________________________________________ Appearance day of Shree Radha rani ji Raas Raaseshwari Shri Radhey appeared in Brij Mandal as the lovely daughter of Shri Vrishbhanuji in Barsana on Bhadrapad Shukla Ashtami i.e. eighth day of bright fortnight of the Bhadrapad month. Her village Barsana is located between Goverdhan and Nandgaon. The entire area is agricultural in nature and land beyond fields is densely forested. These forests are inhabited by large colonies of monkeys and peacocks apart from other wild animals. Peacocks entering inside the populated area and dancing on the rooftops is a common site here. Similarly monkeys entering into houses and running away with food items or anything that they may fancy about are a frequent occurrence. Brijvasi, as the residents of these areas are known, are a kind hearted lot. They do not get angered and hurt the monkeys rather they just scare them away. The area is dotted with a large numbers of natural springs and ponds which are called as Kunds. So this beautiful land has the distinction of being the playground of Radha and Krishna. In this beautiful land of Brij, Radha’s birthday is celebrated with the same joy and zeal as Krishna’s. Again the temples are decorated, special prayers are offered and devotional songs congratulating Sh Vrishbhanu on birth of a daughter are sung in chorus. Devi Radha, the mother eternal, is very kind hearted and loving. She is the driving force behind all of the Krishna’Leelas . The spirit of Brij Bhakti is Raasleela, where Radha is supreme. Lord Krishna seeks her permission and it is at her pleasure that the Leela is continued. As ordinary mortal beings, we all know it is much easier to gain favors from mother. Mother gives us birth, mother nourishes us, mother protects us, mother educates us, mother gives us character and virtues, mother gives us everything and in difficult times we call back her for overcoming our own weakness. So, on this occasion pray to universal mother:
Posted on: Fri, 13 Sep 2013 16:25:42 +0000

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