Saturday, 26 October 2013 2:30 PM सरा रा रा - TopicsExpress



          

Saturday, 26 October 2013 2:30 PM सरा रा रा डाँडियों में कन कुयेड़ि छैगे addressed to सदस्य, म्यर उत्तराखंड, धुमाकोट नैनीडांडा तथा इंटरनेट पर उपलब्ध दूसरे उत्तराखंडी ग्रुप कोचियार लाइब्रेरी में इस समय खाल्योंडांडा चिंतन हो रहा है इस चिंतन में कुछ लोग रूचि ले रहे हैं. खालयोंडांडा तो एक स्थान का नाम हैं. इस जगह को फेस बुक का CHOKHAT GROUP (MAIRA, BHOPATI, PARKHANDAI, DHNGALGAON) अच्छी तरह जानता होगा. बरसों तक एक बस रूट का अंतिम पडाव था. सड़कों का फैलाव हुआ तो बस रूट आगे बढ़ता गया. खाल्योंडांडा अपना इतिहास होगा. शायद ढंगलगांव इस जगह के करीब है. ग्रुप के अनुसार ढंगलगांव उत्तराखंड के आदर्श गाँवों की सूची में मौजूद है अपोला भी एक जाना पहचाना गांव है. वहाँ का मेला और बद्रीनाथ मंदिर प्रसिद्ध हैं. अपोला में हाई स्कूल है और खाल्योंडांडा में इंटर कालेज. दोनों जगहों पर हाल ही में न्यूज़ संस्था ने प्रोग्राम किये थे. पर इन के चित्र उपलब्ध नहीं कराये जा सके कारण टेक्नीकी बताये गए. खाल्योंडांडा इंटर कालेज का फेस बुक अकाउंट भी नहीं है.पता नहीं कितने हाई स्कूलों के फेस बुक अकाउंट. पर नैनीडांडा क्षेत्र के जिन कालेजों के अकाउंट फेस बुक पर है उन में भी न्यूज़ के कार्यक्रम पर चर्चा नहीं हुई न्यूज़ का मुद्दा तो क्षेत्र के शिक्षा स्तर के दायरे का जायजा लेना था. काम को हाथ में लेने से संस्था का संगठन तंत्र मजबूत बनाया जा सकता था. न्यूज़ को सफलता मिली. शिक्षा स्तर की कमियों का पता चल गया. ब्लाक के शिक्षा तंत्र से परिचय हो गया. पर इस समय देश में चुनाव का कोहरा छाता जा रहा है. उत्तराखंड में कोहरे को कुयेड़ि कहते है कोहरे के साथ नरेन्द्र सिंह नेगी का वह गाना सामने आ जाता है जिस पर गुमोद परिक्रमा में चर्चा होती थी. तब तिवारी जी नौछमी नारायण नहीं बने थे. उनका नया नया व्याह हुआ था. वह उत्तराखंड के मुख्य मंत्री बने थे आज के चुनाओं में तो पञ्च और सांसद चुने जायेंगे. इस लिए किसी भी राजनेता को देवता बनने का मौका नहीं मिलेगा. आज के देवता लोगों के लिए छत तो ठीक कर सकते हैं और छातों का प्रबंध भी कर सकते हैं. समस्या नेगी के उस गाने की पहली दो पंक्तियाँ है गरा रा रा ऐगे रे बरखा झुकि ऐगे -- गरा रा रा ऐगे रे बरखा झुकि ऐगे सरा रा रा डाण्यूं में कन कुयेड़ि छैगे -- सरा रा रा डाण्यूं में कन कुयेड़ि छैगे चुनाव तो पहले भी होते रहे हैं. पर आज फेस बुक और इन्टरनेट का ज़माना. चल चित्र व्यवस्था बहुत पुरानी हो चुकी है. उत्तराखंड में में चल चित्र बनते रहे है. पर यह सब आम वोटरों पर असर नहीं पा पाए. ऐसा कुछ नहीं हुआ जैसे अमेरिका में उस समय हुआ जब जॉन केनेडी अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए. एक प्रकार की क्रांति हो गयी थी. फिर इन्टरनेट का जमाना आया तो ओबामा क्रांति आई. भारत के चुनावों में इन्टरनेट और फेस बुक का प्रभाव पूरे देश पर तो नहीं पर पार्टियों पर ज़रूर पडा है. मोदी भाजपा के नेता बन गए हैं कांग्रेस भी अपनी तरह की कोशिश कर रही होगी. पता नहीं इन्टरनेट और फेस बुक का प्रभाव नैनीडांडा क्षेत्र पर क्या पड़ता है. पर नैनीडांडा विकास संघ की कमजोरी तो साफ़ दिखाई दे रही. बिना किसी सीधे टकराव के ही न्यूज़ सामने आ गया है. वह भी ट्नौर्ड को वही सपोर्ट दे रहा जो कभी उसे नैनीडांडा विकास संघ से मिली थी. तब ट्नौर्ड अपना काम अंग्रेजी में कर रहा था. साथ में गुमोद परिक्रमा थी जिसके आधार पर प्यारा उत्तराखंड साप्ताहिक का कालम उस के संपादक द्वारा गुमोद परिक्रमाओं के आधार पर तैयार किया जाता था. इन्टरनेट और फेस बुक के उपलब्ध हो जाने के कारण ट्नौर्ड का काम कोचियार लाइब्रेरी के रूप में समेटा जा सका और ट्नौर्ड जड़ाऊखांद के नाम से एक अकाउंट फेस बुक पर खोला जा सका. पर ट्नौर्ड तो बहुत ही दूरगामी योजना है. अपने ढंग की योजना है और उत्तराखंड के पहाडी क्षेत्र के औद्योगिकीकरण की प्रतीक बन चुकी है. पर कोचियार लाइब्रेरी द्वारा प्रस्तुत मर्चूला जड़ाऊखान्द रथुआढाब पर्यटन सर्किट तात्कालिक योजना बन सकती है अगर स्थानीय बुद्धिजीवी और राजनेता क्षेत्र के ऐतिहासिक, भौगोलिक और पौराणिक जानकारी संकलित करने में अपना योगदान दें. ऐसा ही कुछ राजुली चलचित्र के सन्दर्भ में हुआ है. सुनील नेगी इस चल चित्र को देखने के बाद अपनी पोस्टिंग में कहते है The script of the film is primarily based on the 700 years old real happening, love story of famous Rajula Malushahi during the Katyuri rule in Kumaon Division of Uttarakhand when the Prince from the Royal family falls in love with a simple, modest and poor girl . The story runs parallel to the present day love story of the hero and heroine of the film who proposes to make a documentary on Rajula Malushahi and while researching his project falls in love with the heroine of the film on the same pattern and inspired by the 700 years old love story. ऐसा ही प्रयोग शायद कोचियार लाइब्रेरी में भी हो रहा है. कल का फल आज देखा और परखा जा रहा है. समय की दूरियां ही नहीं स्थानीय दूरियों को भी पाटा जा रहा. ऐसे प्रयास सफल भी हो रहे हैं. दक्षिण भारतीय एक्टर धनुष के चलचित्र राँझना और उत्तर भारतीय एक्टर शाह रुख खान के चलचित्र चेन्नई एक्सप्रेस की सफलताएं ज़माने का रुख समझाने का उदाहरण पेश कर रहे हैं. शायद कोचियार मेलें भी कुछ हद तक प्रभाव शाली बनने लगी हैं. Bhishma Kukreti ने Friday, 25 October 2013 9:11 AM, चिंपांज़ी बुद्धिजीवियों और राजनेताओं को विकास बंधन की लगाम चाहिए के सन्दर्भ में Akhil Bhartiya Uttarakhand Mahasabha ग्रुप पर कहा धर्मं सिंह बुटोला जी से हार्दिक प्रार्थना ! आपसे आग्रह है कि इन लेखों के मन्तव्य को खड़ी बोली या सरल गढवाली -कुमाउंनी भाषा में भी समझाएं प्लीज ! साथ साथ में हर वक्त चिम्पाजी , खोली डाडा , पता नी क्या क्या शब्दों के परिभाषाएं भी दे। नैनीडांडा क्षेत्र में इग्नाइटेड माईन्ड्स तैयार होते जा रहे हैं. वैसे फेस बुक पर इग्नाइटेड माईन्ड्स ऑफ़ उत्तराखंड नाम का एक ग्रुप है ही. यह ग्रुप अपने बारे में बता रहा है Ignited Minds of Uttarakhand is a group for the people of uttarakhand who have burning ideas in their mind for development of devbhoomi. This group is a platform for sharing ideas related to our Uttarakhand and sharing the information about the development of U.K. All people who belong to Uttarakhand and have a constructive ideology are invited to share their ideas regarding the problems of Devbhoomi n their possible solutions.. The sole purpose of this group is to unite the Uttarakhandis and to develop a healthy environment among facebook users of Uttarakhand... Jai Hind...Jai Uttarakhand..... कोचियार लाइब्रेरी का क्षेत्र बहुत सीमित है. अपोला खाल्योंडांडा पर्यटन ट्रैक की बात कर उसे और संकीर्ण बना दिया गया. अपोला गहराई में बसा हुआ गांव है और खाल्योंडांडा ऊँचाई पर स्थित बस्ती है पर्यटक अपोला में उतर कर खाल्योंडांडा पहुँच कर वाहन की सुविधा पा सकते हैं. रास्ता और रुकने के स्थान अपोला हाई स्कूल तथा अन्द्रोली और खाल्योंडांडा इंटर कालेजों के अध्यापक विचार विमर्श कर निश्चित कर सकते है. न्यूज़ और नैनीडांडा विकास संघ इस काम के लिए केटेलिस्ट का काम कर सकते है. अगर पर्यटक बरसात के दिनों में आते हैं तो नरेंद्र सिंह नेगी के गाने का मजा ले सकते हैं. मेल यहीं समाप्त की जा रही है और साथ ही डाक्टर बलबीर सिंह रावत की वह प्रतिक्रिया चर्चा में लाई जा रही है जो Friday, 25 October 2013 9:11 AM, चिंपांज़ी बुद्धिजीवियों और राजनेताओं को विकास बंधन की के सन्दर्भ में उन से प्राप्त हुई. उनकी पोस्टिंग है BSR 0288 KL 25Of चिम्पांजी बुद्धिजीवियों और राजनेताओं को विकास बंधन के लगाम चाहिए चिम्पांजी को प्रेर्रित करती है उसकी जीने की और वन्श वृद्धि की भावना:- जो फिट है, वही हिट है. जब बुद्धिजीवी , राजनेता और प्रशासक केवल आराम से जीने और बंश ब्रिधि/समृद्धि को ही अपना उद्द्येश्य बना लेते हैं तब वे चिम्पान्जी बन जाते है. वे विकास इसलिए करते हैं की उन्हें अधिकार और संसाधन दिए जाते हैं की वे विकास के काम करें। वे अपने हित का विकास करते रहते हैं। जब वे चिम्पांजी हो जाते हैं तो वे केवल स्वार्थ सिद्धिवाले विकास ही करते है. तब , ऐसी स्तिथि में , आम जन , जिनके विकास के लिए लोकतांत्रिक पद्धति को लागू किया गया है, ठगी जाती है , नाम से उनके ही विकास के काम होते हैं, लेकिन उनकी प्रगति और उन्नति में कई विकार आ जाते हैं, क्यों की संचालक स्वार्थी और निर्मम हो गए है. आज के एक दैनिक जनवाणी के पेज १ में समाचार है की उत्तराखंड में , नौकरशाही के एक उच्च अधिकारी को तानाशाही अधिकार दे दिए गए हैं, वही नीति निर्धारण कर रहा है, वही सनचालन. अखबार लिखता है : प्रदेश में एक व्यक्ति के हाथों सिस्टम के जाने का नतीजा यह हुआ कि बाकी नौकरशाहों ने शासन के साथ असहयोग करना शुरू कर दिया है। बहरहाल सचिवालय में ऊपर से नीचे तक रसपूतिन रूपी इस व्यवस्था का विरोध शुरू हो गया है (रास्पुटिन रूस की जारनी का विश्वास पात्र साधू था जिसने साम्रांग्यी के विरोधियों को एक एक कर के मार दिया था ) यानी चिम्पंजी उत्तराखंड के सचिवालय में आ गया है , और यह कोरी कल्पना नहीं है, यथार्थ बन कर हावी हो गया है। किसने इसे तानाशाही अधिकार दिए, क्यों दिए? देने वाले का विश्वास, या नाकामी? कि जो खुद करना था वोह अगले से करवाया जा रहा है ? क्या यह शासन एक-वादी ( महाराजा/ तानाशाह ) है ? या सामूहिक उत्तर्दायित्व वाला (मंत्री मंडल से मंत्रणा लेने वाला )? अगर एक अकेले नौकरशाह का एक छत्र राज हो गया है, तो मंत्रिमंडल की जरूरत ही नहीं है। क्यों इतने सारे खर्चे किये जा रहे हैं ? अगर जरूरत है तो चिम्पान्जियों पर लगाम क्यों नहीं लग रही है ? क्या सब के सब एक ही विरादरी के हो गए हैं ? बुद्धिजीवी तीन दलों में बंटे हैं, एक चिम्पान्जियों के समर्थक चिम्पांजी, और दूसरा इनको बेदखल करके खुद सता में काबिज हो क्र ऐसा ही करने वालों के समर्थक चिम्पांजी और तीसरा , इनके द्वारा किये गए तहश नहश पर रोने वाला , और लगाम लगाने को उत्सुक, पर लाचार। विकास बंधन की लगाम क्या होती है ? उत्तराखंड की स्थापना किस उद्द्येश्य की पूर्ती के लिए हुई ? क्या आज के विकास के काम इस उद्दयेश को पूरा कर रहे है ? क्या वे पलायन रोकना तो दूर, कम ही कर पाए हैं? क्या इस विकास से व्यक्ति, परिवार, गाँव, क्षेत्र खुशहाल हुए हैं ? (उन्नति तभी होती है जब रहन में बढ़ोतरी की सुविधाओं के साथ साथ खुशहाली भी आती है ) इस सर्वत्र खुशहाली युक्त विकास के कौन से बंधन कैसे बाँधने है, किसने किस पर बांधने है ? यही यक्ष प्रश्न है जिसका जबाब देने के लिए सारी प्रदेश की जनता को एक मत हो कर आने वाले पंचायत और संसद चुनावों में देना है और तीसरे प्रकार के बुद्धिजीवियों ने जन मत तैयार करना है. की बहुत हुआ यह चिम्पांजी विकास, अब खुशहाली विकास के बंधन लगेंगे। तो कूदने के लिए तैयार रहिये, एक कर, सब के सब। BSR राम प्रसाद
Posted on: Sat, 26 Oct 2013 09:42:02 +0000

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