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This is the poem written by Prasoon Joshi appealing to help the flood victims of Uttarankhand and do our best for them... बह गया वो घर बह गयीं घर में रखी तसवीरें तस्वीरों में मुस्कुराते चेहरे बह गए परिवार बह गए, सैकड़ों, हज़ारों बह गयी वो प्रार्थना श्रद्धा में झुके शीश बह गए सुना है एक माँ का जब एक बच्चा बहा माँ देख उसे कूद पड़ी नदिया में.. बह गयीं लोरियां बच्चों की किलकारियां पिता बह गए, सैकड़ों, हज़ारों बहे करोड़ों आंसू हिन्दुस्तान के करोड़ों आंसू है, लेकिन करोड़ों हम भी हैं चलो पूछें इन्हें दोस्त बनें, बच्चे बनें किसी के माँ बनें, पिता बनें परिवार बनें किसी के सूरज उगायें, उम्मीद जगाएं चलो, एक सुबह बनाएं किसी की...
Posted on: Fri, 16 Aug 2013 08:01:08 +0000

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