"Within you there are not only weaknesses, helplessness and - TopicsExpress



          

"Within you there are not only weaknesses, helplessness and misconceptions in abundance. Infinite capability, infinite wisdom and boundless joy are also present." "आजकल जड रूप में प्रत्येक मानव एक आदर्श घर की प्रसांगिता की बात करते हुए दृष्टिगोचर हो रहे हैं और जिन घर-परिवार की चर्चा करते हैं, उन्हें घर-परिवार कहने में एक बार सोचना पडता है, आखिर kyon?" "यह आवश्यक नहीं कि घर पहुंचकर माँ-बाप, पत्नी या फिर बच्चों के ही दर्शन होते हों, सब अपने-अपने जड कर्मों में इतने उलझे हुए हैं कि एक दूसरे के लिए उन्हें न तो समय मिलता है और न ही वह निकालने की आवश्यकता समझते हैं, लेकिन इतना व्यस्त रहने की वजह से आज व्यक्ति अकेला ही होता जा रहा है । जडयुक्त महत्वाकांक्षाओं और एक दूसरे से आगे बढने की आधारहीन होड में लोग खुद से ही कहीं पीछे छूटते जा रहे हैं । " "मित्र मण्डली, दफ्तर, कामकाज, हंसी-ठहाका और केवल स्वार्थ के लिए संबंध बनाने की होड में आज लोग चारों ओर से तनावों से घिरे हुए हैं । सहनशक्ति नाम मात्र भी नहीं है ।" " लोगों के जीवन में जरा झांककर देखें तो पाएंगे कि घर के रिश्ते निभाना उनके लिए दुष्कर होते जा रहे हैं । बच्चे कई-कई घंटे अकेले चार दीवारी में ही बिताते हैं ।" " माँ-बाप के घर लौटने पर भी जरूरी नहीं कि बच्चे उनसे सकारात्मक संवाद भी कर पाएं । थके-मांदे माता-पिता अगले दिन की तैयारी के बीच वक्त नहीं निकाल पाते, बल्कि उलटे झल्लाहट में घर की शांति ही भंग होती रहती है ।" " यदि घर में कोई बुजुर्ग है, तो उससे उपेक्षा की जाती है कि खुद अपनी देखभाल तो करे ही घर के कामकाज और बच्चों में भी दिलचस्पी ले । इस तरह आज हम अकेले होते जाने के साथ-साथ पारिवारिक रिश्ते को भी भुलाते जा रहे हैं ।" " हर रिश्ते के साथ जो अहमियत जुडी है । उसे बडे ही कामचलाऊ ढंग से (जडयुक्त) निभा रहे हैं । आज व्यक्ति का मशीन सा जीवन उसे बार-बार कुदेरता है, झकझॊरता है और अपनों के बीच वापस लौटने को मोडता है ।" " यही वजह है कि लोग संयुक्त परिवारों की आवश्यकता पर चैतन्य विचार करने को बाध्य होते जा रहे हैं । प्रत्येक पति-पत्नी अपनी भावी-पीढी को लेकर अन्दर-बाहर से चिंतित हैं और सोचने लगे हैं कि वह कैसे संस्कार युक्त चैतन्ययुक्त बनें ।" " लोग एक भरे-पूरे परिवार की कल्पना करने लगे हैं । जहां वह कभी अकेले न पडे, यही सार्थक-तथ्य हमें आज से ५०-६० वर्ष पहले की चैतन्य दुनिया में लौटाती है, जब संयुक्त परिवार में रहना एक आम तथ्य था ।"
Posted on: Sun, 22 Sep 2013 05:48:46 +0000

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