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agoodplace4all/?cat=3 ARCHIVES FOR ताजमहल या हिन्दू मन्दिर क्या सन् 1630 में ताज महल के निर्माण आरम्भ होना सम्भव था?जी.के. अवधिया 17/01/2011125 Comments इलियट व डौसन का इतिहास, भाग 7, पृष्ठ 19-25, के अनुसार शाहजहां का शाही इतिहासकार मुल्ला हमीद लाहौरी सन् 1630 का, अर्थात् ताज महल के निर्माण आरम्भ होने वाले वर्ष का विवरण इस प्रकार से देता हैः “वर्तमान वर्ष में भी सीमान्त प्रदेशों में अभाव रहा खास तौर पर दक्षिण और गुजरात में तो पूर्ण अभाव रहा। दोनों ही प्रदेशों के निवासी नितान्त भुखमरी के शिकार बने। रोटी के टुकड़े के लिए लोग खुद को बेचने के लिए भी तैयार थे किन्तु खरीदने वाला कोई नहीं था। समृद्ध लोग भी भोजन के लिए मारे-मारे फिरते थे। जो हाथ सदा देते रहे थे वे ही आज भोजन की भीख पाने के लिए उठने लगे थे। जिन्होंने कभी घर से बाहर पग भी नहीं रखा था वे आहार के लिए दर-दर भटकने लगे थे। लंबे समय तक कुत्ते का मांस बकरे के मांस के रूप में बेचा जाने लगा था और हड्डियों को पीसकर आटे में मिला कर बेचा जाने लगा था। जब इसकी जानकारी हुई तो बेचने वालों को न्याय के हवाले किया जाने लगा, अन्त में अभाव इस सीमा तक पहुँच गया कि मनुष्य एक-दूसरे का मांस खाने को लालयित रहे लगे और पुत्र के प्यार से अधिक उसका मांस प्रिय हो गया। मरनेवालों की संख्या इतनी अधिक हो गई कि उनके कारण सड़कों पर चलना कठिन हो गया था, और जो चलने-फिरने लायक थे वे भोजन की खोज में दूसरे प्रदेशों और नगरों में भटकते फिरते थे। वह भूमि जो अपने उपजाऊपने के लिए विख्यात थी वहाँ कहीं उपज का चिह्न तक नहीं था…। बादशाह ने अपने अधिकारियों को आज्ञा देकर बुरहानपुर, अहमदाबाद और सूरत के प्रदेशों में निःशुल्क भोजनालयों की व्यवस्था करवाई।” सीधी सी बात है कि जब बकरे के मांस के नाम पर कुत्ते का मांस और आटे के स्थान पर पिसी हड्डियाँ बेची जा रही हों तथा मनुष्य मनुष्य का मांस भक्षण कर रहा हो तो ऐसी स्थिति में बीमारियों का भी भयंकर प्रकोप भी हुआ ही होगा और अनगिनत लोग भूख से मरने के साथ ही साथ बीमारियों से भी मरे होंगे। उपरोक्त विवरण “वर्तमान वर्ष में भी…” से शुरू होता है इसका स्पष्ट अर्थ है कि शाहजहाँ के शासनकाल में जब-तब अकाल पड़ते ही रहते थे। ऐसे भीषण दुर्भिक्ष की स्थिति में ताज महल का निर्माण करने के लिए मजदूर कहाँ से आ गए? क्या सन् 1630 में ताज महल के निर्माण आरम्भ होना सम्भव था? इतिहास (History), ताजमहल या हिन्दू मन्दिरताज महल, ताजमहल, taj mahal, tajmahal ताज महल (Taj Mahal) – मकबरा या मन्दिर -चित्रावली-6जी.के. अवधिया 15/01/201129 Comments बादशाहनामा के पृष्ठ402-403 के लाइन 21 से 41 तक के निम्न चित्र में ताज महल को शाहजहाँ के द्वारा राज जयसिंह से प्राप्त करने का वर्णन है” बादशाहनामा के पृष्ठ402-403 के लाइन 21 से 41 तक का हिन्दी अनुवादः शुक्रवार 15 जमा-दि-उल-अव्वल को, पवित्रता के राज्य के यात्री, हज़रत मुताज़ुल ज़मान, जिसे कि अस्थाई रूप से दफना दिया गया था, के पवित्र शव को, शाहजादा मोहम्मदशाह, शुजा बहादुर, वज़ीर खां और सातुन्निसा खानम – जो मृतक की मनोदशा से घनिष्ठ रूप से सुपरिचित और उस बेगमों की बेगम के विचारों को भलीभाँति जानने वाली थी – के साथ राजधानी अकबराबाद (आगरा) लाया गया और उसी दिन फकीरों तथा जरूरतमंदों को मुद्राएँ बाँटे जाने का आदेश दिया गया। विशाल नगर (आगरा) के दक्षिण के में स्थित भव्य, सुन्दर हरित उद्यानों से घिरे, केन्द्रीय भवन – जिसे कि राजा मानसिंह के प्रासाद के नाम से जाना जाता था जो अब उत्तराधिकार के रूप में राजा मानसिंह के पौत्र जयसिंह के अधिकार में था – को जन्नतनशीन बेगम को दफनाने के चुना गया था। यद्यपि राजा जयसिंह अपने पूर्वजों के उत्तराधिकार तथा सम्पदा को बहुमूल्य मानता था, तथापि वह उस सम्पदा को बादशाह शाहजहाँ को बिना किसी मूल्य के देने के लिए सहमत था फिर भी धार्मिक शुद्धता तथा सतर्कता को ध्यान में रखते हुए उसे (जयसिंह को) उस भव्य प्रासाद (आली मंज़िल) के बदले में शरिफाबाद दिया गया। महानगरी (आगरा) में शव के पहुँचने के बाद अगले वर्ष शाही फरमान के अनुसार अधिकारियों द्वारा जन्नतनशीन बेगम के सुन्दर शरीर को दफना दिया गया। उस धर्मनिष्ठ महिला का शरीर संसार की आँखों से ओझल हो गया और वह गुम्बदयुक्त भव्य भवन (इमारत-ए-आलीशान वा गुम्बद) एक शानदार गगनचुम्बी मकबरे में बदल गया। अंग्रेजी अनुवादः “Friday, 15th Jamadiulawal, the sacred dead body of the traveller to the kingdom of holiness Hazrat Mumtazul Zamani, who was temporarily buried, was brought, accompanied by Prince Mohammad Shah, Suja bahadur, Wazir Khan and Satiunnesa Khanam, who knew the temperament of the deceased intimately and was well versed in view of that Queen of the Queens used to hold, was brought to the capital Akbarabad (Agra) and an order was issued that very day coins be distributed among the beggers and fakirs. The site covered with a majestic garden, to the south of the great city (of Agra) and amidst which the building known as the palace of Raja Man Singh, at present owned by Raja Jai asingh, grandson of Man Singh, was selected for the burial of the Queen, whose abode is in heaven. Although Raja Jai Singh valued it greatly as his ancestral heritage and property, yet he agreed to part with it gratis for Emperor Shahjahan, still out of sheer scrupulousness and religious sanctity, he (Jai Singh) was granted Sharifabad in exchange of that grand palace (Ali Manzil). After the arrival of the deadbody in that great city (of Agra), next year that illustrious body of the Queen was laid to rest and the officials of the capital, according to royal order, hid the body of that pious lady from the eyes of the world and the palace so majestic (imarat-e-alishan) and capped with a dome (wa gumbaje) was turned into a sky-high lofty mausoleum”. (अंग्रेजी अनुवाद तथा चित्रः veda.wikidot/taj-mahal के सौजन्य से)
Posted on: Thu, 04 Jul 2013 11:47:54 +0000

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