story padho or muth maro बात उन दिनों की - TopicsExpress



          

story padho or muth maro बात उन दिनों की है जब मैं बारहवीं क्लास से पास होकर अपनेरतलाम के घर में गर्मी की छुट्टियाँ बिता रहा था। मेरी मौसी पास के ही एक कस्बे में रहती हैं, उनकी एक बेटी मोना है उस पर बहुत जल्द ही जवानी की भरपूर नियामतें बरस गई थीं, भगवान् ने पूरा वक्त लेकर मोना को तराशा था, चाहने वालों की तो जैसे उसके लिए कतार ही लगी रहती थी... कबड्डी की राज्य स्तरीय खिलाड़ी, बेडमिन्टन की माहिर खिलाड़ी, नाचने गाने में सबसे आगे, मोना बहिर्मुखी प्रतिभा कीधनी और खुली हुई लड़की थी...चूँकि मोना और मैं एक ही उम्र केहैं, मैं कभी कभी मोना को लाइन भी मारता था पर उसने कभी मुझे भाव नहीं दिया, शायद उसे इस बात का बहुत घमंड था कि वो बला की सुन्दर है !!मैं यह जरूर बता दूँ कि जाने अनजाने हम दोनों एक दूसरे से आतंरिक रूप से जुड़े हुए थे क्योंकि बचपन में मम्मी-पापा के खेल में हम हमेशा चिपक कर सो जाने का नाटक किया करते थे, और उस खेल की यादें आज भी हम दोनों के मन मस्तिष्क पर ताज़ी थीं, और तो और बड़े होने पर भी जब हम गर्मियों में छत पर सब के साथ में सोते थे तब मैंने कई बार रातके अँधेरे में उठकर मोना के होंठों को चूमा था और उसके गद्देदार वक्ष उभारों को दबाया था, और शायद मुझे यह लगता है कि वो जाग कर भी सोने का नाटक करती थी।खैर हम बड़े हुए, पर मोना को तो जैसे पंख लग गए थे, उसके एक इश्कमिजाज लड़के के साथ इश्क के चर्चे पूरे कस्बे में फैलने लगे, इससे डरे हुए मेरे मौसाजी ने अपना तबादला हमारे शहर रतलामकरवा लिया !अब मामला थोड़ा ठंडा हुआ, मोना नेभी रतलाम के कॉलेज में एडमिशन ले लिया !! कुछ महीनों बाद हम सबने घूमने फिरने का कार्यक्रम बनाया, टूअर अच्छा लम्बा था और पूरा राजस्थान घूमने का था, इसलिए दोनों परिवारों के हिसाब से टेम्पो ट्रेक्स कर ली गई। मैं इस ट्रिप से बहुत उत्साह में था क्योंकि मुझे मोना के साथ इतने दिन बिताने को मिलेंगेऔर मन इसी बात से हिलौरें खा रहाथा कि ना जाने कब किस्मत खुल जाये और मैं मोना को पटा लूँ !!पटना-पटाना तो एक बहाना था पर युवा-मन तो बस एक ही चीज़ मांग रहा था और मोना के इश्क के चर्चेसुन मन में विश्वास हो गया था किउसके अन्दर का दाना भी जबरदस्त फड़क रहा था !खैर सफ़र शुरू हुआ, मैं, मोना, मेरी छोटी बहन और दीदी सबसे पीछे वाली सीटों पर बैठे थे, मोना मेरे ठीक सामने बैठी थी, मैं उसको पास देख कर ख़ुशी से फुला नहीं समां रहा था, पप्पू भीअन्दर से फड़फड़ कर रहा था, उसकी नशीली आँखों में जैसे मेरे लिए कोई भावना ही नहीं थी, उसके मदमस्त उरोज गाड़ी के स्पीड ब्रेकर पर उछलते ही बाहर आने को होते थे !! बीच बीच में मैं जानबूझकर अपने पैरों से उसके पैरों को छू रहा था, वो सब जानबूझ कर भी उसे अनदेखा कर रही थी, पर ऐसा करते करते मेरी हिम्मत बढ़ने लगी थी।जैसे जैसे हम कोटा के रास्ते पर आगे बढ़े, रात का अँधेरा बढ़ने लगा, दीदी और छोटी तो गहरी नींद में सो गई थी पर न जाने क्यों मुझे और उसे नींद ही नहीं आ रही थी, कई बार ऐसा हुआ कि मैंने उसको मुझे देखते हुए पकड़ लिया, ऐसा लगा मानो उसके दिल में भी कोई तूफ़ान आ रहा हो जिसे दबाने की पूरी कोशिश वो कर रही थी !रात के इस हसीं सफ़र में मुझसे रहा नहीं जा रहा था, मैंने अब अपनी हिम्मत बढ़ाई और अपना एक पैर पूरा का पूरा उसके पैर पर रखदिया और आँखें बंद कर ली !! मुझे यह एहसास जिंदगी भर नहीं भूलेगाकि कैसे उसने अनजान बनते हुए अपना पैर हटाने की असफल कोशिश की और फिर वो अपना पैर वैसे के वैसे ही छोड़ सोने का नाटक करने लगी। जिस दिन का मुझे इतने सालों से इंतज़ार था वो दिन शायद आ गया था, दिलों दिमाग में भूचाल सा आ गया, हाथ कांपने लगे, शरीर में सिहरन होने लगी क्योंकि ऐसा एहसास मुझे पहली बार किसी ने दिया था !रात की ठंडी ठंडी हवा हमें और पागल कर रही थी, अब मैंने हिम्मतकरके अपने पैर के अंगूठे को उसके पैर पर घुमाना शुरू किया और उसके चेहरे के हाव-भाव देखने लगा, उसने अपनी आँखें मींच ली थीऔर ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरी बाहों में आने को बेताब हो रही हो।बस फिर क्या था, मेरी हिम्मत खुलती चली गई और मैंने अपने पैरों से ही उसको प्यार करना शुरू किया, अपने अंगूठे को मैं उसके सलवार के अन्दर ले जाने की कोशिश करने लगा। लेकिन यह क्या, वो जाग गई और मुझे गुस्से और आश्चर्य की अजीब सी नज़र से एकटक देखने लगी। मेरे तो जैसे पसीने ही छूट गए, मैंने तभी अपना पैर पीछे कर लिया और एक अंगड़ाई लेकर ऐसे दिखाने लगा मानो सब कुछ नींद में हुआ हो और सोने की कोशिश करने लगा !यह देख उसके होंठों पर हल्की की मुस्कराहट आ गई और उसने अपनी आँखें फिर बंद कर लीं !जब मैंने उसे फिर देखा तब भी वो मंद मंद मुस्कुरा रही थी लेकिन आँखें बंद किये हुए !अँधेरे में उसका जिस्म जैसे तपते हुए सोने सा निखरा हुआ लग रहा था !मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा और इसी जोश में मैंने नीचे से कुछ उठाने के बहाने अपने हाथ से उसका पैर छू लिया जिस पर उसने कुछ नहीं कहा... इशारा साफ़ था.. आगदोनों और भयंकर लगी हुई थी !मैंने आगे झुक कर सोने के बहाने उसके घुटनों को छूने की कोशिश की और अपने हाथ वहीं टिका दिए, मेरे हाथ को पीछे हटाने आये उसके हाथों की उँगलियों को भी मैंने पकड़ लिया। अब वो डर चुकी थी और मुझसे हाथ अलग करने को कसमसा रही थी। अचानक पता चला कि गाड़ी की गति धीमी हो रही थी.. शायद ड्राइवर ने चाय के लिए गाड़ी को किसी ढाबे पर रोका था।मैं सीधा होकर बैठ गया और गाड़ी से उतरने से पहले अपने पप्पू को शांत करने की कोशिश करने लगा नहीं तो मेरा भांडा फोड़ वहीं हो जाता।चाय पीने रुके तो मैंने उससे नज़र मिलाने की कोशिश भी नहीं की,मैं नहीं चाहता था कि इतने हसीं सफ़र में शर्मिंदगी का कोई लम्हा भी आये, पर वो खुद मेरे पास आई और बोली- तुम्हें नींद नहीं आती क्या?इतना बोल कर वो चुप हो गई थी और अपने चेहरे पर गंभीरता औढ़े थी..मैं डर गया था कि तभी तपाक से बोली- मैं तो सोचती थी कि तुम मेरे सबसे अच्छे भाई हो !ऐसा कहते ही वो वहाँ से चली गई और मेरी दीदी जोकि अब तक जाग चुकी थी के पास गाड़ी में जाकर बैठ गई। मेरे पैरों तले से ज़मीन खिसक चुकी थी, मुझे लगा किबस अब मोना सारी बात मेरी दीदी को बता देगी और मेरी वाट लग जाएगी !!खैर डरते डरते मैं फिर से गाड़ी में बैठा और सफ़र फिर शुरू हुआ। मेरे हाथ-पैर तो वैसे ही ठण्डे पड़ चुके थे इसलिए मैंने चुपचाप सोने में ही बेहतरी समझी और अपने भगवान् का शुक्रिया अदा किया कि अच्छा हुआ उसने यह बात मेरी दीदी को नहीं बताई !!आधा घन्टा बीता होगा, नींद तो मुझे आ नहीं रही थी, पप्पू बेचारा शांत होकर सो गया था, अचानक मेरे पैरों में हलचल हुई, किसी के कोमल पैर मुझसे टकरा रहे थे, टकरा ही नहीं बल्कि मुझसे चिपकने की कोशिश करने लगेथे, अँधेरे मैं मैंने मोना को देखा तो लगा मानो आँखों ही आँखों में वो कुछ कह रही थी मुझे..!! एक मुरझाये हुए फूल को जैसे नया जीवन मिल गया था, पूरे शरीर में हज़ार वाट के झटके लगे थे मानो, दिल फिर से स्फूर्त हो गयाथा !! एक कमसिन जवान लड़की मेरी होचुकी थी !! पैरों का खेल जोर शोर से शुरू हो गया, आगे झुक कर कई बार मैंने उसके हाथ का चुम्बन भी ले डाला !! प्यार की जितनी भी सीमाएँ हम गाड़ी के अन्दर सबकी नज़रों से बचते हुए पार कर सकते थे, हमने कीं !!इशारों ही इशारों में यह तय हुआ कि मोना मेरे पास आकर बैठेगी, करीब 12 बजे एक ढाबे पर खाना खाकर मोना मेरे बगल में आकर बैठ गई ! जैसे ही सबकी नींद लगी मैंने अपना हाथ उसके कन्धों के पीछे डाल लिया, कन्धों से आगे बढ़ते हुए मैंने अपने हाथ को उसके सीने पर ले जाना शुरू किया,इतने नाजुक पर भरे हुए बूब्स को छूकर मैं तो जैसे पागल सा हो उठा, मोना शांत थी और आँखें बंद करके शायद उस लम्हे का आनन्द ले रही थी।पहले मैंने बाहर से ही उसके स्तनों को दबाया पर हिम्मत बढ़तेही कमीज़ के अन्दर हाथ डाल दिया,ब्रा में कसे हुए पूरे गोल मटोल बूब्स मेरे हाथों के कब्जे में थे... मैंने अपने हाथ को उसके निप्पल तक बढ़ाया तो मोना भी पागल हो उठी, अपने हाथ से मेरी पैंट को कसकर पकड़ने लगी और अपने सर को मेरे कंधे से चिपका लिया...ऐसा लगा मानो हम दो जिस्म एक जानहो गये थे... हमें किसी का डर नहीं लग रहा था क्योंकि वो लम्हा किसी किस्मत वाले को ही मिल सकता था !!उसके निप्पल सख्त नहीं थे बल्किबिल्कुल रुई के फुए जैसे थे.. यह सोचकर की शायद वो अभी भी कुंवारी ही थी, मन खूबसूरत कल्पनाओं में खोने लगा !!इस बीच मौका देखकर मैंने मोना के हाथ को अपने पप्पू महाराज के ऊपर रख दिया, मोना शर्म से पानी पानी हो गई और मेरे कन्धों में अपना सर छुपा लिया.. मैंने उसे सिर्फ हाथ रखने को कहा था पर वो एक कदम आगे निकल गई, जब जब भी मैंउसके बूब्स या निप्पल को दबाता वो मेरे पप्पू को जम कर भींच लेती, पप्पू भी अब आदमकद हो गया था और धीरे धीरे चल रहे इस खेल से गीला हो चला था।इसी से मुझे याद आया कि मोना की चिकनी चमेली का हाल क्या है, यह भी तो जानना चाहिए !बस फिर क्या था, मैंने अपना हाथ उसकी कमीज़ से निकाला और अँधेरेका फायदा उठाते हुए धीरे से उसकी फूल सी कोमल कली पर रख दिया, मोना ने थोड़ा विरोध किया पर वो मान गई !!अब मैं ऊपर से ही इस उस प्यारी सी राजकुमारी को सहलाने लगा, मोना तो जैसे बहकने की चरम पर पहुँच चुकी थी !! यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।मेरे बचपने की हद तब हुई जब मैंने देखा कि इस दीवानगी में मोना ने अपने दोनों पैर चौड़े कर दिए थे और मेरे हाथ अभी भी ऊपर वाले हिस्से को ही सहला रहे थे... मुझ बेचारे को पता ही नहीं था कि असली चिकनी चमेली तो दोनों जाँघों के बीच में होती है !!खैर मुझे समझते देर ना लगी और मैंने अपने हाथ धीरे धीरे करके वहाँ बढ़ाये, ख़ुशी और आश्चर्य में डूबा हुआ मैं मानो सातवें आसमान में था, और इस सातवें आसमान में तो जैसे घनघोर बारिश हो रही थी, मोना की पूरी सलवार और उसकी पेंटी पूरी तरीके से ग
Posted on: Thu, 28 Nov 2013 19:58:55 +0000

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