आज ये सब लिखते वक़्त मुझे बुरा लग रहा है, और अफ़सोस हो रहा है कि क्यूँ मैं एक स्त्री होकर स्त्री के ख़िलाफ़ लिख रही हूँ.... लेकिन फिर भी चाहती हूँ कि अपने स्त्री रूप को कुछ पल के लिए ख़ुद से अलग कर सिर्फ एक इंसान की तरह सोचूं !! वज़ह है कि आज की स्त्री ने सिर्फ सफ़लता के पीछे भागना नहीं सीखा बल्कि धन के पीछे भागना भी सीख लिया है और जिसके परिणाम स्वरूप हमारे आस-पास हर रोज़ दर्ज़ होने वाले 50% से ज़्यादा बलात्कार के मामले झूठे निकल रहे हैं ! जब भी कभी स्त्री के ऊपर अत्याचार की बात आती है तो हम सभी उसे पहले से ही अबला और कमज़ोर समझकर उसके ऊपर अत्याचार करने वालों को राक्षस की नज़र से देखने लगते हैं, और ऐसे में अगर अत्याचार शारीरिक रूप से किये गए हों तो हम शायद आरोपी की दलीलें भी सुनना पसंद नहीं करते.... वज़ह है कि हम सभी आज भी यही मानकर चलते हैं कि कोई भी स्त्री अपने ऊपर झूठे शारीरिक अत्याचार के आरोप नहीं लगा सकती क्योंकि उसे अपनी आबरू सबसे ज़्यादा अहम् होती है और उस पर वह मज़ाक बनते हुए या गॉसिप होते हुए नहीं देख सकती !! लेकिन, ऐसे में हमसब ये भूल जाते हैं कि "स्त्री, को मायाचारी का प्रतिबिम्ब कहा है"... मेरे पिता, मध्य भारत ग्रामीण बैंक में ब्रांच मेनेजर के पद पर हैं, जिससे उनके तबादले बहुत छोटे-छोटे गावों में होते थे, उन्हीं गावों में पलने बढ़ने के बाद जब मैं पहली बार WIPRO में मेरी 6 माह की इंटर्नशिप करने के लिए दिल्ली गयी तो PG में रहने पर लड़कियों के कई ऐसे रूप देखे जिन्हें देखने/सुनने पर मेरा मुंह हमेशा खुला रह जाता था ! क्या सच में कोई लड़की ऐसा भी कर सकती है, मन में बस यही ख़याल आता था... लेकिन विश्वास करना पड़ता था, क्योंकि सच सामने था ! जब घर पर माँ को सारी बातें बताती थी, वो बहुत डरती थीं कि कहीं मेरे साथ कुछ ग़लत ना हो जाये और फिर इसी डर से मैं दिल्ली से गुडगाँव अपने भैया के पास रहने चली गयी ! लेकिन मन में उसके बाद हर लड़की को अच्छा ही मानने वाली भावना ख़त्म हो गयी ! फिर कई और भी ऐसे किस्से देखने को मिले जिससे लगता था कि आखिर क्यों?? क्या बड़ी गाड़ी होना, बहुत बड़ा बंगला होना, बहुत सारे नौकर चाकर होना किसी स्त्री की इज्ज़त से ज़्यादा मायने रखता है, जिसे पाने के लालच में वह सही ग़लत भूल जाती है ?? अभी कुछ दिन पहले एक दोस्त अंकुर (बदला हुआ नाम) ने आँखों देखा हाल बताया कि, जिसमें उनके कुछ दोस्तों ने वीकएंड पर पार्टी रखी थी, रात को उसके दोस्त मणिक (बदला हुआ नाम) ने कहा कि किसी को लेने जा रहा हूँ तुझे कोई दिक्कत तो नहीं तो अंकुर ने कहा कि मैं घर निकलता हूँ तुझे जो करना है करते रहना, बस जाते वक़्त मुझे घर ड्राप कर देना ! मणिक ने हामी भर दी, लेकिन जिस लड़की को वो लेने जा रहा था उसका होस्टल अंकुर के घर से पहले पड़ता था, इसलिए मणिक ने पहले उस लड़की को लिया और फिर अंकुर को घर ड्राप किया ! जब वो लड़की कार में आई तो अंकुर उसे देखकर हैरान था, क्योंकि वो लड़की उसके स्कूल टाइम की क्लास मेट थी, अंकुर को बहुत शर्म महसूस हो रही थी, लेकिन उस लड़की के चेहरे पर कोई शर्म नहीं थी ! अंकुर ने अगले दिन उससे फ़ोन करके पूछा कि तुम ये सब क्यों करती हो, तो उसने सिर्फ यही कहा किस्टैण्डर्ड मेन्टेन करने के लिए करना पड़ता है, लेकिन तुम इस मामले में मत पड़ो और बेहतर होगा कि अनदेखा कर दो ! आज वही लड़की अच्छे समाज में अच्छाई का चोला ओढ़े है ! और अगर कहीं किसी लड़की पर अत्याचार की बातें सुनेगी तो पुरुषों के खिलाफ बोलने से पीछे भी नहीं हटेगी, अगर कोई लड़का उसके चरित्र के बारे में कुछ कहेगा तो उसे बुरा/बत्तमीज़ कहने से पीछे नहीं हटेगी ?? लेकिन अपनी आबरू को चंद रुपयों और स्टैण्डर्ड की खातिर बेचने वाली लड़की को ये अधिकार है ?? क्या पैसे के नशे मेंचूर ये लडकियाँ एक अन्य सामान्य और अच्छी लड़की को दुनिया के नज़रोंमें नहीं गिरा रही हैं ? क्या स्त्री को रूप को छेदित नहीं कर रही हैं ? आज भी इसी सवाल में उलझी हूँ .... दूसरा केस एक बैंक कर्मचारी के साथ हुआ, जब वह एक गाँव में बसूली (बैंक के लोन के पैसे लेने) करने गया तो, उसे घर के बाहर इंतज़ार करने को कहा, वह घर के बाहर पड़ी खटिया पर बैठ गया, थोड़ी देर बार उसघर का मालिक पुलिस के साथ आया और बोला यही है वह आरोपी जिसमें मेरी औरत के साथ बलात्कार करने की कोशिश की ! वह बैंक कर्मचारी समझ ही नहीं पाया कि यह सब हो क्या रहाहै ! पुलिस ने भी उसकी बात नहीं मानी क्योंकि जब औरत अपने ऊपर बलात्कार का आरोप बताती है तो पुलिस आरोपी की नहीं सुनता ! उस बैंक कर्मचारी पर केस चला, वो उसकी कितनी जग हंसाई हुई ये आप-सब भली भांति जानते होंगे ! क्योंकि सच सुने और जाने बिना बातें बनाना हम सभी बखूबी जानते हैं ! लेकिन फिर एक सवाल कि आखिर क्यों स्त्रीअपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल कर रही है ? हम (स्त्री और पुरुष दोनों) इतनी तेज़ गति से पैसे के पीछे भाग रहे हैं कि हम अपने संस्कारों, माता-पिता, समाज सबको अनदेखा कर रहे हैं.... पैसे के लिए अपना सुकून तो कब का स्वाहा कर चुके हैं... लेकिन बस इतनी दुआ है कि समय रहते चेत जाएँ और अपने वज़ूद को स्वाहा होने से बचा लें ! मेरी बस इतनी ही गुज़ारिश है कि किसी भी अपराध में अपराधी को उसके अपराध से परखें ना कि उसके लिंग से !! अंत में एक फिल्म जो इस पर बनी है ज़रूर देखिएगा "Undertrial" .. !! मेरा दिल दुःख रहा था इसे देखते वक़्त !! अंकिता जैन जी की कलम से...
Posted on: Wed, 26 Jun 2013 09:20:55 +0000