आज हिन्दुओ का एक पर्व है - TopicsExpress



          

आज हिन्दुओ का एक पर्व है जिसे "जितिया" अथवा "जियुतिया" भी कहते है , ज़रूरी नहीं की आपको इसके बारे में पता हो क्यूकी ये पर्व कुछ क्षेत्रो में ही मनाया जाता है . पर मै आपको इसके बारे में कुछ जानकारी देना चाहूँगा . ये पर्व एक माँ अपनी संतान की लम्बी उम्र के लिए करती है . इस दिन माएं अन्न अथवा जल की एक बूँद भी अपने मुख में नहीं जाने देती अर्थात निर्जला व्रत करती हैं . इस पर्व की शुरुआत कैसे हुई इस बारे में कई कथाये प्रचलित है जिनमे से एक के बारे में मै कुछ बताना चाहूँगा . "एक बार पार्वती जी ने एक स्त्री को रोते हुए देखा , इससे व्यथित होकर उन्होंने भगवान शिव शंकर जी से पूछा की ये महिला क्यों विलाप कर रही है ? यह सुनकर भगवन शंकर ने बताया की उस स्त्री का पुत्र कम आयु में ही चल बसा था. यह सुनकर माँ पार्वती ने भोलेनाथ से पूछा की "हे स्वामी एक माँ द्वारा अपने पुत्र की मृत्यु देखना सबसे कष्टकर स्थिति है. आप कृपा कर कोई ऐसा तरीका बताये जिससे माँ अपने पुत्रो की लम्बी आयु देख सके. यह सुनकर भगवान् शिव शंकर ने बताया की जो माँ जितिया का व्रत करेगी उसका पुत्र दीर्घायु होगा . इस प्रकार सभी माएं जितिया का व्रत करने लगी " ऐसा नहीं की ये एकमात्र कथा है . इसके अलावा "चूली सियार" , "भगवान् जियुत" आदि की कथाये भी है . हिन्दुओ के पर्वो की यह भी एक विशेषता है की किसी पर्व का इतिहास खोजने जाओ तो कई कहानियां मिलेंगी , आप स्वतंत्र होकर किसी एक को मान सकते है या फिर निर्बोध भाव से बस उस पर्व त्यौहार का मज़ा ले सकते है . खैर मै बात कर रहा था जितिया पर्व के बारे में . मुझे यह देख एक मिश्रित अनुभव होता है जिसमे एक तरफ तो एक माँ द्वारा अपनी संतानों के लिए दिन भर निर्जल व्रत करने की बात पर मुझे आश्चर्य होता है तो दूसरी तरफ यह देख मन हर माँ के लिए आदर से भर उठता है. बात यह नहीं की आप दिनभर कुछ खाते पीते नहीं इसलिए बल्कि इसके पीछे के छुपे ममता भरे भाव देख मन भाव विभोर हो उठता है . और यह बात सिर्फ किसी एक धर्म से जुडी नहीं बल्कि मेरी नज़र जहां तक जाती है हर धर्म में माँ को इश्वर तुल्य स्थान दिया गया है . कहते भी है की भगवान् सब जगह नहीं हो सकते थे इसीलिए उन्होंने माँ बनायीं. माँ वो है जो निः स्वार्थ प्रेम की सरिता है , माँ वो है जो हमे भगवान् के हर रूप से मिला सकती है . अगर हमारी गलतियों पर हमे डाटती है तो उसके पीछे भी यही भाव होता है की हम सही पथ से भटके नहीं और गलत राह जाकर दुःख के भागी ना बने. हमे वो इस दुनिया का पहला परिचय देती है. डांट कर या प्यार से हमे सदा सही राह दिखाती है. हमारे दुःख के क्षणों में भागी और सुख के क्षणों में सहभागी बनकर हर कदम हमारा साथ निभाती है. वो हमसे हमारे लिए ही लड़ती भी है . "सचमुच माँ ,माँ होतीहै " और यही देख मुझे "नीदा फाजली" का एक बड़ा मशहूर शेर याद आता है जिसके साथ मै आज की बाते ख़त्म करना चाहूंगा जो माँ और बेटे के बीच के अनूठे बंधन को दर्शाता है: "मै रोया परदेस में , भीगा माँ का प्यार दिल ने दिल से बात की बिन चिट्ठी बिन तार" ............................................................. "उम्मीद ____________________________ Friend Like & Tag and Share and also Do Comments If U Can Real Hindu : - https://facebook/AdhyatmikaBharataNirmana
Posted on: Fri, 27 Sep 2013 06:35:55 +0000

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