काम से बड़ा कोई धर्म नहीं - TopicsExpress



          

काम से बड़ा कोई धर्म नहीं होता : शाहरूख खान =================== plz follow this page & become a member ------------------------- - क्‍या आप को अपने प्रशंसकों से मिलना अच्‍छा लगता है ? 0 उम्र बढऩे के साथ मुझे अपने प्रशंसकों से मिलने में ज्यादा लुत्फ और मजा आता है। मुझे बहुत अच्छा लगता है। पब्लिक के बीच जाने का मौका कम मिलता है। यहां सामने समुद्रतट पर जाता हूं तो भीड़ लग जाती है। ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ की वाई और मुन्नार में शूटिंग कर रहा था तो काफी लोगों से मिला। वहां भीड़ नियंत्रित रहती है। वे आपकी बात भी सुन लेते हैं। मुन्नार में चाय बागान में शूटिंग कर रहा था। वहां ढेर सारी बुजुर्ग औरतों से बात करने का मौका मिला। वे जिस तरह से लाज और खुशी के साथ मुझ से बातें कर रही थीं उससे बहुत खुशी हुई। मैंने उन्‍हें अपनी फिल्मों के संवाद सुनाए। वे उन सवांदों के मतलब तो नहीं समझ पाए मगर खूब हंसे। मुन्नार के शूटिंग के दौरान यूनिट में तीन-चार सौ लोग थे। वे हिंदी नहीं समझते थे और मैं उनकी भाषा नहीं समझता था। फिर भी हम साथ में काम कर रहे थे। ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ ऐसी ही स्थितियों की फिल्म है। अपने ही देश में एक आदमी ऐसी जगह पहुंच जाए जहां उसकी भाषा कोई न समझे। -अपने ही देश में एलियन हो जाए ? 0 हां,एक तरह से अपने ही देश में वह जादू हो जाए। फिर भी प्यार की भाषा से सब कुछ जीत सकते हैं। चेन्‍न्‍ई एक्‍सप्रेस में एक गाना भी है ‘कश्मीर तू मैं कन्या कुमारी’। इतने अलग हैं हीरो-हीरोइन। यह एक सफर है,जिसमें नायक की भाषा कोई नहीं समझता और वह किसी की भी भाषा नहीं समझता। मेरे लिए यह बड़ी फिल्म है। केरल में मेरे बहुत प्रशंसक हैं। शायद मुस्लिम बहुल राज्य होने की वजह से ऐसा होगा। उम्रदराज औरतें मेरी खास दर्शक हैं। मुझे एक-दो बार ही केरल जाने का मौका मिला है। एक बार मामूटी और मोहनलाल ने बुलाया था। -फिल्‍में देखने और पसंद करने के लिए भाषा समझना जरूरी है क्‍या ? 0 खूबसूरती यह है कि अनेक दर्शक हिंदी नहीं समझते, लेकिन मेरी फिल्म जरूर देखते हैं। मुंबई से बाहर अहिंदीभाषी सूदुर इलाकों में जाने पर मुझे ऐसे दर्शक मिलते हैं। इंग्लैंड में भी यही अनुभव होता है। मुझे आश्चर्य होता है कि तीसरी पीढ़ी के लोग जो हिंदी नहीं बोल सकते वे भी मेरी फिल्में देखते और समझते हैं। कहीं न कहीं मैं उनकी जिंदगी को छूता हूं। मैं ऐसे दर्शकों से मिलना चाहता हूं। ऐसे दर्शक जो दिन-रात मीडिया के टच में नहीं रहते हैं। उनसे मिलने पर सही रिएक्शन मिलते हैं। वे आज भी उसी तल्लीनता और प्रेम से फिल्में देखते हैं,जैसे हम अपने बचपन और किशोरावस्था में देखते थे। - क्या आप अपने प्रशंसकों से मिलने की कोशिश करते हैं? 0 मुंबई में रहा तो शनिवार- रविवार को बाहर जाता हूं, लेकिन धक्का-मुक्की होने लगती है। एक-एक कर मिले तो सभी से मिल लूं। अगर वे आराम से खड़े रहें तो कोई दिक्कत न हो। न्यूयॉर्क में करण जौहर की फिल्म ‘कभी अलविदा ना कहना’ की शूटिंग के समय मैं रात भर स्टेशन पर शूटिंग करता था। सुबह के समय 500-700 लोग स्टेशन के बाहर बर्फबारी में भी खड़े मिलते थे। उनकी नाकों पर बर्फ जमी रहती थी। मैं सुबह पांच बजे पैकअप होने पर सभी से मिलता था। रानी और करण होटल चले जाते थे। डेढ़ घंटे तक यह मुलाकात चलती थी। मेरा मानना है ये वैसे लोग होते हैं,जिनकी जिंदगी फिल्मों से प्रेरित होती है या मेरे मिलने से उनकी जिंदगी में खुशी आती है। उनकी एकरस और उबाऊ जिंदगी में हम रंग भरते हैं। - दर्शकों से नियमित मेल-जोल रखने का कोई तरीका विकसित किया है आपने? 0 पहले मैं ट्वीट करता था, लेकिन उसके अंदर लोग ढेर सारी उलटी-सीधी बातें करते हैं। मैं उन बातों को पर्सनली ले लेता हूं और दुखी हो जाता हूं। मैं प्रोफेशनली कोई काम नहीं कर सकता। यह मेरी अच्छाई भी है और बुराई भी है। मैं कोई ट्विट करूं और मीडिया उसे उस दिन की किसी घटना से जोड़ दे तो मुझे तकलीफ होती है। अगर मैंने लिख दिया कि आज अकेले में मैंने पुराना गाना सुना ‘अभी न जाओ छोड़ कर’ । इस गाने को वे किसी और बात से जोड़ कर कोई और मानी निकाल लेंगे। एक बार ‘जब तक है जान’ की शूटिंग के समय मैं लंदन पहुंचा और शूटिंग कैंसिल हो गई। मैं भी थका हुआ था। शूटिंग कैंसिल होने की खबर से खुशी हुई। मैंने कॉफी मंगवाई और लंदन की बारिश का मजा लेने लगा। मैंने ट्विट किया - इन इंग्लैंड टू हैप्पी एंड थ्रिल्ड सेलेब्रिटिंग। उस दिन भारत इंग्लैंड से एक मैच हार गया था। लोगों ने लिखना शुरू किया कि मैं इंग्लैंड की जीत की खुशी मना रहा हूं। वे मुझे पाकिस्तानी और न जाने क्या-क्‍या कहने लगे। उस दिन मेरे पास कोई काम नहीं था। ऐसे मौके बहुत कम मिलते हैं। मैं बारिश और कॉफी का मजा ले रहा था। लेकिन मीडिया ने सब बेमजा कर दिया। ऐसी बातों से दुखी होकर ही मैंने टि्वट बंद कर दिया। मुझे लगता था कि ट्विट मेरा पर्सनल फोरम है। सच कहूं तो आईपीएल मैच के दौरान दर्शकों से मेरी मुलाकात होती है। एक्टर का काम मुल्ला की दौड़ जैसी होती है। घर से स्टूडियो तक। काम खत्म करने के बाद घर लौटिए तो दस-ग्यारह बज जाते हैं। बच्चों के साथ थोड़ी देर बैठे। बीवी से बात की। पब्लिक फंक्शन में लोगों को हम से दूर ही रखा जाता है। मैं ऐसा कोई सिस्टम नहीं बना सका हूं कि अपने प्रशंसकों के टच में रहूं। अब मैं साइट बनाने की सोच रहा हूं। यह इंट्रेक्टिव होगा। ऐसी कोशिश कर रहा हूं कि मेरे लिखे को मेरी अनुमति के बगैर आप इस्तेमाल नहीं कर सकें। मैं उसे अपनी डायरी बनाऊंगा। अब जैसे यह इंटरव्यू कर रहा हूं तो इसे भी रिकॉर्ड कर अपने साइट पर डालना चाहूंगा। मैं जल्दी ही अपनी सारी चीजें रिकॉर्ड करना और रखना शुरू करूंगा। पिछले दिनों फिल्मफेअर के कवर के शूट के समय हम लोग दिलीप साहब के यहां जमा थे। अचानक मैंने देखा कि कोई वीडियो शूट कर रहा है और स्टिल भी ले रहा है। मुझे लगा कि दिलीप साहब को बुरा लगेगा। फिर मैंने अमित जी से पूछा कि सर ये कौन लोग हैं? उन्होंने कहा, ये हमारे लोग हैं। मुझे लगा कि खास उस दिन के लिए बुलाया होगा। अमित जी का अच्छा आयडिया है। मैं भी ऐसा कुछ सोचता हूं। - क्या आपको नहीं लगता कि आपने अपने दर्शकों को बढ़ाने की कभी कोशिश नहीं की? आपके दर्शक मुख्य रूप से महानगरों और आप्रवासी भारतीयों तक सीमित रहे। 0 मैं अपनी बात कहूंगा। दूसरों की बात अलग हो सकती है। वे ज्यादा अच्छे एक्टर हो सकते हैं। हो सकता है उन्हें ज्यादा बिजनेस की समझ हो। फिर भी मुझे लगता है कि हर एक्टर जब फिल्म चुनता है तो वह अपनी पर्सनैलिटी के हिसाब से चुनता है। हीरोइनों के मामले में बात थोड़ी अलग हो जाती है। उन्हें चुनने का मौका नहीं मिलता है। हिंदी के पुराने एक्टर या हॉलीवुड के एक्टर ... सभी में यही समानता है कि उन्होंने अपनी जिंदगी के यकीन और विश्वास के अनुसार फिल्में चुनी हैं। यह पसंद की बात है। आप शर्ट खरीदने जाते हैं तो अपनी पसंद की ही शर्ट खरीदते हैं। वैसे ही जब मैं फिल्में चुनता हूं तो अपनी पसंद की चुनता हूं। इसमें डायरेक्टर के छोटे-बड़े होने से फर्क नहीं पड़ता। मैंने बड़े डायरेक्टर की भी फिल्में छोड़ी हैं। मुझे लगता है कि कोई चीज भा गई तो कर लो। मैं ज्यादातर भद्र, सुसंस्कृत और हाई क्लास के किरदार चुनता रहा हूं। जब आया था तो मैंने एक्शन फिल्में भी की थीं। मैं खिलाड़ी रहा था। अच्छी छलांग मार सकता था। एक्शन कर सकता था। लेकिन वैसी फिल्में मुझे नहीं मिलीं। तब मैं चुनने की स्थिति में नहीं था। वैसे मुझे दो-चार एक्शन फिल्मों का ऑफर मिला था। मैं उन्हें नहीं कर पाया। अभी याद आता है कि गुड्डू धनोवा वाली फिल्म मैंने क्यों नहीं की? उन दिनों मैंने कुंदन शाह की ‘कभी हां कभी ना’ जैसी फिल्में की थी। संक्षेप में चुनाव करने की स्थिति में आने के बाद आप जो फिल्में चुनते हैं वे वास्तव में आपके व्यक्तित्व का ही विस्तार होती है। सात-आठ साल पहले मुझसे हमेशा पूछा जाता था कि आप तो वही फिल्में करते हैं जो ओवरसीज में चलती हैं। मुझे तब भी नहीं पता था और अब भी नहीं पता है कि मेरी फिल्में कहां चलती हैं। मैं आठ-नौ फिल्में प्रोड्यूस कर चुका हूं, लेकिन मुझे अपने वितरकों के भी नाम तक नहीं मालूम। मैं क्या मीटिंग करूं? फिल्म चलेगी तो सभी को फायदा होगा। नहीं चलेगी तो उनके पैसे वापस कर देंगे। -रोहित शेट्टी का साथ कैसे बना ? 0 रोहित शेट्टी मेरे पास ‘अंगूर’ फिल्म लेकर आए थे। आने के पहले मैंने उनसे कह दिया था कि मैं तेरी फिल्म कर रहा हूं। यूटीवी वालों ने कहा था कि पहले सुन तो लो उसकी फिल्म। ‘अंगूर’मेरी मां की और मेरी फेवरिट पिक्चर थी। हम वीसीआर पर देखते थे। मैं मां के पैर दबाता था और देखता था। मुझे अभी तक याद है। संजीव कुमार जो कहते हैं - गैंग। उन्‍हें लगता है कि गैंग उनके पीछे पड़ गया है। वे पैरोनॉयड हो जाते हैं। देवेन वर्मा का रोल मजेदार था। खुदकुशी करने के लिए रस्सी खरीदने जाते हैं तो उस से मोल-तोल करने लगते हैं। तब हमारे पास खरीदी हुई वीसीआर थी। उन दिनों किराए पर ज्यादा चलता था।‘अंगूर’ का मेरा चुनाव इसलिए नहीं है कि बिहार में चलेगी या लंदन में चलेगी कि यूपी में चलेगी? मेरी मां की फेवरिट फिल्म थी। ‘देवदास’ तो मेरी मम्मी-डैडी की फेवरिट फिल्म थी। मां मुझे दिलीप कुमार ही समझती थी। कहती थीं,देखो। सच कहूं तो जवानी में ‘देवदास’ हमारी दिलचस्पी की फिल्म नहीं थी। हम अमिताभ बच्चन, ऋषि कपूर और विनोद खन्ना की पिक्चर देखते थे। हमें लगता था कि क्या ‘देवदास’, शराब पीकर घूता किरदार और वह भी ब्लैक एंड ह्वाइट में... वह हमारी जेनरेशन की फिल्म नहीं थी। जब संजय लीला भंसाली ने कहा कि मैं देवदास कर रहा हूं। तू करेगा? उस समय मुझे सब ने मना किया। किसी का नाम नहीं लूंगा। सभी का कहना थ - पागल मत बन। तू मत करना। बेवकूफी मत करना। टच भी मत करना। करिअर खराब हो जाएगा। संजय ने कहा कि तेरी आंखें ‘देवदास’ जैसी है। मैं तेरे साथ ही करूंगा। नहीं तो नहीं करूंगा। वहां जूही चावला और अजीज मिर्जा भी थे। मैंने अजीज से पूछा। अजीज उसी स्कूल के हैं। वे बोले हिमाकत तो है, लेकिन अच्छी हिमाकत है। मेरा तो कोई कंपीटिशन भाव नहीं था। अगर शराबी का कोई रोल करना है तो ‘देवदास’ क्यों नहीं? कोच का रोल एक ही बार मिलता है। अंधे का कभी-कभी मिलता है। हम सभी एक्टर अपने करिअर में ऐसे रोल करना चाहते हैं। मेरी हर फिल्म ‘चक दे’ नहीं हो सकती। अभी मैंने मां-पिता के उदाहरण दिए। मां-पिता के अलावा जिंदगी की शिक्षाएं भी स्वभाव में आ जाती है। ‘यस बॉस’ एक मूड में कर ली थी। मुझे फन फिल्में अच्छी लगती हैं। मुझे नहीं लगता कि मैं उतना रोमांटिक हूं,जितना फिल्मों में दिखाई पड़ता है। मुझे लोगों के साथ मिलने-जुलने में मजा आता है। मैं अभी तक फिल्म को धंधे के तौर पर नहीं ले पाता। मुझे जो अच्छे लगते हैं मैं उन्हीं के साथ फिल्में करता हूं। किसी जमाने में वे सभी नए थे। अभी परिवार के सदस्य लगने लगे हैं। उन्हीं के साथ मैं फिल्में करता रहा हूं। एक आदि की, एक करण की तो एक फराह खान की। बाहर जाने की जरूरत ही नहीं पड़ी। इन सभी के साथ मेरा मिजाज मिलता है। मुझे कुछ लोगों ने ऐसी फिल्में भी बताई-सुनाई है जो बिहार या देश के अंदरुनी इलाके में चल सकती हैं। उन फिल्मों के लिए हां नहीं कर सका। हो सकता है कि मैं उतना अच्छा एक्टर न होऊं। कई बार खुद समझ में नहीं आता कि मैं ऐसी फिल्में क्यों नहीं कर रहा हूं? हो सकता है कि मेरी परवरिश अलग किस्म की रही हो। पढ़ाई-लिखाई, समझ और अनुभव का भी असर रहा होगा। मैं ऐसी ही फिल्में चुनता हूं। मेरे ख्याल में एक्टिंग वास्तव में अनुभवों का विस्तार है। जिंदगी के अनुभवों को ही हम परदे पर उतार देते हैं। -ऐसा क्‍यों ? 0 एक किस्सा बताता हूं। ‘सर्कस’ के दिनों में केएन सिंह के बेटे पुष्‍कर उस सीरियल के चीफ असिस्टेंट थे। उनके साथ केएन सिंह से मिलने गया था। तब वे देख नहीं सकते थे। उन्होंने पास बुलाया और मेरे चेहरे को उंगलियों से टटोला। उन्होंने एक ही बात कही ऑबजर्व एंड एबजर्व एंड टेक इट आउट ऑफ योर सिस्टम ह्वेन कॉल्ड अपॉन टू डू सो। उनकी बात मुझे बहुत आयरोनिक लगी थी। लेकिन मैं वही करता रहा हूं। डायरेक्टर के एक्शन बोलते ही अपने अनुभव उड़ेल देता हूं। मुझे आम दर्शकों को पसंद आने वाली फार्मूला फिल्में भी अच्छी लगती है, लेकिन मैं खुद को उन फिल्मों में नहीं देख पाता हूं। हो सकता है कि मैं उनकी तरह छलांग मार लूं और डायलॉगबाजी भी कर लूं, लेकिन मेरा स्वभाव उन फिल्मों से नहीं मिलता। मैं वही फिल्में करता हूं जिन में मजा ले सकूं। अगर मुझे खुशी नहीं मिलेगी तो मैं फिल्म नहीं करूंगा। मेरी एक फिल्म थी। ‘हम तुम्हारे हैं सनम’ माधुरी दीक्षित के कहने पर मैंने वह फिल्म कर ली थी। बताते हैं कि वह फिल्म बिहार में खूब चली थी। फार्मूला मालूम होता तो हर दिशा और देश के लिए फिल्म कर लेता। - रोहित शेट्टी के साथ ‘अंगूर’ की बात चल रही थी तो यह ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ कहां से आ गई? 0 रोहित ने ही मुझे यह कहानी भी सुनाई। उसने कहा कि चार-पांच साल पहले यह कहानी लिखी थी। एक बार आप सुन लें। सच यह है कि रोहित ने ‘अंगूर’ किसी और के लिए लिखी थी। उसने मुझ से कहा था कि अगर आप करोगे तो मुझे लिखने में एक हफ्ता लगेगा। मैं इसे थोड़े बड़े स्केल पर लिखूंगा। अभी मैंने छोटी सी सोची थी। फिर उसने कहा।एक कहानी है। प्लीज सुनो रिएक्ट करो। तीन घंटे चाहिए मुझे। मैंने सोचा कि यह पिक्चर मैं कर भी नहीं रहा हूं और तीन घंटे चाहिए इसे।बहरहाल, जब आया तो रायटर-वायटर लेकर पूरी टीम के साथ आया। उन्होंने मुझे कहानी सुनानी शुरू की। उसमें तमिल में डायलॉग थे, फिर भी मुझे समझ में आ रहे थे। इतनी फनी थी पिक्चर ... हो सकता है कि उस दिन मैं कुछ ऐसे मूड रहा होऊं कि हंसते-हंसते लोट-पोट हो गया। कभी-कभी ऐसा होता है। आप रात में दुखी रहे हों तो दिन में हंसने की कोशिश करते हैं। मैंने इसके पहले कभी किसी फिल्म की कहानी दूसरों को नहीं सुनवाई। पहली बार मैंने रोहित से कहा कि मैं दो-चार लोगों को यह सुनवाना चाहता हूं। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि फिल्म सचमुच इतनी मजेदार है कि केवल मैं हंस रहा हूं। फिर मैंने अपने ऑफिस के लोगों को बुलवाया। वे मुझसे भी ज्यादा हंसे। तथ्य यही है कि फिल्म शुरू होने के पहले ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ की स्क्रिप्ट यूनिट के सभी सदस्यों ने सुनी। यूनिट के चालीस-पचास लोगों को बुला कर ऑफिस नैरेशन दिया। सभी ने यही कहा कि सुनकर मजा आया। रोहित ने सभी के रिएक्शन देख कर आग्रह किया कि आप ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ करोगे तो मैं बड़े स्केल पर कर लूंगा। यह फिल्म थोड़ी बड़ी है। यह सब चल ही रहा था तभी मेरी ‘डॉन’ आ गई। मैं उसकी मार्केटिंग कर दुबई से लौट रहा था तो रोनी स्क्रूवाला मिल गए। उन्होंने पूछा कि ‘अंगूर’ का क्या हो रहा है? मैंने यही कहा कि अभी ‘अंगूर’ नहीं हो रही है। कुछ और हो गया है। तुम जा कर पता कर लो। फिर ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ की बात आगे बढ़ी। मुझे इसकी यही खासियत अच्छी लगी कि भाषा नहीं समझने पर भी फिल्म समझ में आती है। - ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ है क्या? 0 यह एक सफर है। एक व्यक्ति अपने दादा की अस्थियां रामेश्वरम में बहाने जा रहा है। दादा जी की 99 साल की उम्र में मृत्यु हुई है। उनका पोता चालीस साल का है,जिसकी अभी तक शादी नहीं हुई है। उसके मां-बाप नहीं हैं। दादा ने ही पाला-पोसा था। दादा की आखिरी इच्छा थी कि उनकी आधी अस्थियां हरिद्वार में और आधी रामेश्वरम में बहा दी जाएं। उस सफर में उसके साथ कुछ घटनाएं घटती हैं। वह मुंबई से चला है। उसने अपनी दादी से झूठ बोला है। उसके मन में है कि रामेश्वर जाने के बजाए वह गोवा चला जाएगा। अस्थियां तो कहीं भी बह जाएंगी। गोवा में उसके कुछ दोस्त हैं। लड़कियां वगैरह हैं। उसने सोच रखा है कि थोड़ी मौज-मस्ती कर के लौट आएगा। स्टेशन पर दादी से झूठ बोल कर वह दक्षिण भारत जा रही एक ट्रेन में चढ़ जाता है कि कल्याण में उतर कर वह कोई और ट्रेन ले लेगा। कुछ ऐसा होता है कि वह उस ट्रेन से उतर नहीं पाता है। ट्रेन की उस गलत जर्नी ने उसे जिंदगी का सही रास्ता दिखा दिया। दार्शनिक स्तर पर यह थीम है। दूसरी परत यह है कि अपने ही देश में हम एक-दूसरे की भाषा नहीं समझते। मैं बंगाल आता-जाता रहता हूं। वहां के लोग मुझे बहुत प्यार करते हैं, लेकिन मैं बंगाली नहीं समझता। मुंबई में रहता हूं। मराठी नहीं समझता। यह लिखने पर कुछ लोगों को तकलीफ भी हो जाए। मेरे बच्चे मराठी बोलते हैं। मेरी मां कन्नड़ बोलती थीं। मेरे पिता पश्तो और फारसी बोलते थे। मैं वह भी नहीं समझता था। फिर भी हम एक साथ रहते थे। कोई यह कहे कि भाषा नहीं समझने से उनके बीच प्यार नहीं होगा तो अजीब सी बात होगी। फिल्म में मेरी और दीपिका की जोड़ी देश की बात करती है। उनका दिल हिंदुस्तानी है। भाषा, खाना-पीना, रहन-सहन, संस्कृति सबकुछ में इतनी भिन्नता है, लेकिन यह देश एक है। ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ बताती है कि यह देश क्यों एक है? अगर प्रांतों के बीच गलतफहमियां हो जाती हैं तो कोई बड़ी बात नहीं। - फिल्म के जो भी दृश्य आपने दिखाए उनसे यह लगता है कि शाहरुख खान की सिनेमाई छवि और रोहित शेट्टी की खास स्टाइल का इसमें मनोरंजक मेल हुआ है। 0 वास्तव में यह बड़ा अजीब हुआ। मैं हमेशा डायरेक्टर की बात मानता हूं। दूसरे स्टारों की तरह हस्तक्षेप नहीं करता और न ही सलाह देता हूं। कहानी सुनने के बाद मैं आठ-दस पेज का नोट लिखता हूं। उसमें फिल्म के बारे में अपनी राय रखता हूं। सारे संदेह जाहिर करता हूं। डायरेक्टर से पूछता भी हूं कि अमुक सीन क्यों रखना है? यह नोट मैं डायरेक्टर को भेज देता हूं। जो डायरेक्टर दोस्त हैं, वे कह देते हैं भाई पढ़ लिया। फिल्म बनने लगती है। फिल्म पूरी होने के बाद मैं डायरेक्टर को बीस पेज का नोट भेजता हूं कि जो सीन मुझे अच्छे नहीं लग रहे थे वे अब अच्छे लग रहे हैं और जो अच्छे लग रहे थे वे नहीं लग रहे हैं। दो-चार बार डायरेक्टर बताते हैं कि आपके कहे अनुसार चीजें बदल दी हैं। मैं आश्वस्त हो जाता हूं। रोहित के साथ काम करने की एक और वजह थी। मैंने बच्चों के साथ ‘गोलमाल 3’ देखी। मैं फिलमिस्तान में करीना कपूर के साथ ‘रा. वन’ की शूटिंग कर रहा था। मैंने उनसे रोहित को बताने के लिए कहा कि उनकी फिल्म अच्छी है। अजय तक भी संदेश भिजवाया। अरशद को भी मैंने बधाई भेजी। करीना ने बताया कि रोहित यहीं शूटिंग कर रहे हैं,मिल लो। मैंने रोहित से स्पष्ट कहा कि मैंने तुम्हारी पहले की फिल्में नहीं देखी हैं, लेकिन यह फिल्म बहुत अच्छी लगी। मुझे उस फिल्म का पागलपन अच्छा लगा। कुंदन शाह के पागलपन को अनियंत्रित कर दें तो ऐसा हो जाएगा। फिल्म पूरी होने के बाद रोहित ने भी यही बात कही कि इसमें आपका व्यक्तित्व भी आ गया है। मेरी फिल्म में रोमांस थोड़ा ज्यादा हो गया है। कभी ऐसा था नहीं। इस फिल्म में गाने-वाने भी अच्छे बने हैं। इस फिल्म में थोड़ी सी लव स्टोरी है। रोहित ने कभी लव स्टोरी नहीं बनाई है। इस फिल्म की शुरुआत ‘दिलवाले दुल्‍हनिया ले जाएंगे’ से होती है। मेरे घर वालों ने भी कहा कि इसमें दोनों की पर्सनैलिटी है। हालांकि हर फिल्म में डायरेक्टर की पर्सनैलिटी ही ज्यादा रहती है। इस फिल्म में थोड़ी सी मेरी भी आ गई है। अपनी आखिरी रोमांटिक फिल्म ‘ओम शांति ओम’ में मैंने जन्म-जन्मांतर का प्यार किया था। शायद उसका असर रहा हो। - फिल्म ट्रेड में चर्चा जोरों पर है कि ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ नहीं चली तो शाहरुख खान का क्या होगा? 0 क्या होगा? सब कुछ बेच कर चला जाऊंगा। परचून की दुकान खोल लूंगा। ऐसे सवालों पर मुझे तेज हंसी आती है। मैं किसी तरह का दबाव महसूस नहीं करता। मुझ पर बीस साल से ऐसे ही दबाव डाले जाते हैं। हमेशा यह सवाल मंडराता रहता है। हमेशा मेरी ही चिंता क्यों की जाती है। नया आता है तो मैं खत्म हो जाता हूं। पुराना आगे बढ़ता है तो मेरे खत्म होने की बात की जाती है। मैं खुद को यही समझाता हूं कि मैं लोगों की नजरों में रहता हूं,इसलिए वे मेरी परवाह करते हैं। पिछले बीस सालों से हर साल एक-दो बातें ऐसी हो ही जाती है जहां मेरे खत्म होने की बात चलने लगती है। पहले कहते थे कि फ्लूक है। फिर कहने लगे कि ओवरसीज का हीरो है। फिर ये बात चली कि एक्शन का जमाना आ गया है। ये जो तीन नए हीरो आए हैं,इसे उड़ा देंगे। फिर अमित जी से तुलना होने लगी। वह बहुत ही शर्मिंदगी की बात थी। कुछ सालों तक यही चलता रहा कि केबीसी कर ली। ‘डॉन’ कर लिया। अपने आप को क्या समझता है? इस बीच ढेर सारे न्यू कमर आए। वे अच्छा भी कर रहे हैं। मुझे याद है जब रितिक आए थे तो इंडिया टुडे का कवरर था कि अब तो शाहरुख खत्म हो गया है। मैं साल की दो-ढाई फिल्में करता हूं। हर बार यह बात होती है। यही मानता हूं कि लोग मुझे बहुत प्यार करते हैं और चूंकि प्यार करते हैं इसलिए उन्हें दूसरों का आना या चमकना अखड़ता है। मुझे यह सब सुन कर अच्छा नहीं लगता। बच्चे बड़े हो गए हैं। वे पढ़ते हैं तो उन्हें भी बुरा लगता है। हर फिल्म में एक परीक्षा होती है। मैं बहुत कम फिल्में करता हूं। जो करता हूं उन्हें बहुत यकीन से करता हूं। इतना वादा करता हूं कि अपनी दुकान चलाता रहूंगा। क्या होता है फ्रायडे को... क्या नहीं होता है? जब ‘रा. वन’ आई थी तो सभी ने कहा कि अच्छी नहीं है। फिर भी मुझे इस बात का यकीन है कि अगले दो-तीन सालों में वह वीएफएक्स का मानदंड होगी। वह पिक्चर उसके लिए थी। मुझे बच्चों के लिए वह फिल्म बनानी थी। मुझे सुपरहीरो प्ले करना था। और क्यों न करूं? हक है। 22 सालों से फिल्में कर रहा हूं। मेरा चुनाव है। अपना पैसा लगाया है। अपनी खुशी से बनाई। जब हम ने उसकी मार्केटिंग रिसर्च की थी तो चलने वाली फिल्मों में उसकी रैंकिंग दसवीं पर थी। भारत में सुपरहीरो और साइंस फिक्शन की फिल्में नहीं चलती हैं। मुझे सभी ने बताया। मैंने यही कहा कि मैं तो बना रहा हूं। नहीं चलेगी तो नहीं चलेगी। हमारी मेहनत से रैंकिंग नौ हो जाए फिर कोई कोशिश करे तो आठ हो जाए। पांच सालों के बाद लोग कहें कि कमाल की फिल्‍म थी। -ऐसी जिद्द क्‍यों? 0 मेरा एक नजरिया है कि जब भी कोई फिल्म करता हूं तो उससे एक कदम आगे बढ़ूं। पीछे न हटूं। मैं अपने प्रोडक्शन में तो इसका खयाल रखता हूं। बाहर की फिल्मों में भी यही मेरh पसंद होती है। मेरे खयाल में ‘डॉन’ में एक स्टाइल था। वह किसी भी विदेशी फिल्म से कम नहीं थी। एक ही तरह की फिल्म करो तो दोष मढ़ते हैं कि वही करता रहता है, लव स्टोरी। थोड़ी अलग करो तो अरे यार क्‍या कर रहा है? मैंने ‘अशोका’ की। नहीं चली। सभी ने कहा कि मुझे लव स्टोरी ही करनी चाहिए। सभी ने यही लिखा। आप ही बताओ न कि क्यों नहीं करूं? कल-परसों की बात है। दीपिका आई थी मिलने। वह फिल्मफेअर अवार्ड देख रही थी। मेरे पास 14-15 हैं। हम देख रहे थे तो वह अलग-अलग फिल्मों के लिए है। ‘चक दे’ है। ‘माय नेम इज खान’ है। ‘दिलवाले दल्‍हनिया ले जाएंगे़’ का भी है। अलग फिल्में की हैं मैंने। उसकी खुशी होती है। अभी मैं देखता हूं कि मेरी तुलना नए-पुराने सभी एक्टरों से की जाती है। -कितना प्रेशर है। 0 यह चलता रहेगा। हम ने फिल्मों को छिछोरा कर दिया। नंबर की बात कर सभी चीजों को पैसों में तब्दील कर दिया। आप कहें कि गुलाब खूबसूरत है। ढाई सौ रुपए का है। आप ने गुलाब को कीमत दे दी। उसकी खूबसूरती तो गई। मैं आप को सही बता रहा हूं कि मैं कवि मिजाज का हूं। मेरे दोस्तों ने यह शुरू किया था। वे जब अहम ओहदों पर नहीं थे तो उनके दिए आंकड़ों से यही लगता था कि वे खुद को साबित करना चाहते हैं। शनिवार को आ जाता था सुपरहिट। बाद में बड़े लोगों ने वही करना शुरू कर दिया। वहीं गलती हो गई। मुझे याद है ‘बंटी बबली’ का आया था - 46 करोड़। मैंने आदित्य चोपड़ा से कहा भी कि आंकड़े मत दो। उसने कहा, नहीं शाह। बिजनेश है। अभी कारपोरेट आ गए हैं। वे आंकड़ों की बातें करते हैं। सच कहूं तो आंकड़े देते ही फिल्मों का रहस्य और जादू खत्म हो जाता है। एक उदाहरण देता हूं। एक फिल्म चल गयी। अब अगर अगले हफ्ते बिल्कुल अलग जोनर की फिल्म चल गई तो क्या वह बेहतर हो जाएगी? तुलना कैसे करेंगे। अब कीमत के आधार पर पसंद बदलने लगे तो अच्छी बात नहीं होगी। गानों की बात करें...‘छम्मक छल्लो’ लगा दो और ‘अभी न जाओ कर’ आधे डॉलर में बिकता है। क्या ‘छम्मक छल्लो’ को बेहतर गाना मान लेंगे। उसकी औकात भी नहीं है ‘अभी ना जाओ ’ के आगे खड़े होने की। अब मेरा बेटा यह मान ले कि एक डॉलर का ‘छम्मक छल्लो’ बेहतर है और आधे डॉलर का ‘अभी ना जाओ’ उतना अच्छा नहीं है तो यह उसकी नादानी है। वह अनजान है। आप कैसे सभी चीजों की कीमत लगा सकते हैं। विचार की कीमत न लगाओ। मेरी कंपनी में नियम है कि हम कभी नहीं लिखेंगे। नौ फिल्में हैं मेरी। उनमें से चार-पांच चली हैं। हमने कभी नहीं लिखा है। ‘ओम शांति ओम’ अपने समय की सबसे बड़ी हिट थी। हमने उसका कलेक्शन नहीं लिखा। - लेकिन आंकड़ों की ट्रैप में तो आप भी आए? ‘रा. वन’ के समय कयास लगाया जाता रहा कि 100 करोड़ होगा कि नहीं? 0 मैंने कभी नहीं बोला। बाकी लोग चिंता करते रहे कि 100 होगा कि नहीं? बुरा मत मानिएगा। इतने सालों से काम किया है तो 100 तो हो ही जाएगा। मैं तो हजार करोड़ के बारे में सोचता हूं। ख्वाब ही देखना है तो छोटा क्यों देखूं। जेम्स कैमरून ने ख्वाब देखा था। उन्होंने 450 मिलियन की फिल्म बनाई। लोगों ने कहा कि अभी तक हॉलीवुड की सबसे बड़ी फिल्म की कमाई 500 मिलियन रही है। इसमें कमाई कैसे होगी? कैमरून का जवाब था - मैं तो बिलियन की बात सोच रहा हूं। मैं भी यही कहता हूं कि चांद पर छलांग मारो। चांद न मिला तो सितारे तो मिल ही जाएंगे। ख्वाब ही देखना है तो 100 करोड़ की बात क्या करें? ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ से कमाई की उम्मीद पूछें तो मैं दस लाख करोड़ की बात करूंगा। आप ही देखें कि तीन साल पहले तक किसी को मालूम नहीं था कि कोई पिक्चर 100 करोड़ का बिजनेस कर सकती है। पहली फिल्म ने जब 100 करोड़ किया तो किसी को यकीन नहीं हुआ। ‘3 इडियट’ ने 300 करोड़ से अधिक की कमाई की। तब भी लोगों ने कहा कि छोड़ो यार यों ही फेंक रहे हैं। माफ करें मैं दुकानदारी नहीं कर रहा हूं। कमाई की बात कोई पूछता है तो मुझे शर्मिंदगी होती है। हां बिजनेस की बात करनी है तो वह जरूरी है। ‘पहेली’ मैंने अष्टविनायक को दी थी। फिल्म नहीं चली तो मैंने पैसे वापस कर दिए। हो सकता है कि 100 करोड़ के बाद भी किसी वितरक को नुकसान हो। - रेड चिलीज के लिए जो फिल्में आप चुनते और बनाते हैं उसके पीछे किस तरह की सोच है? 0 अभी तक मैंने बतौर एक्टर ही फिल्में चुनी हैं। निर्माता के तौर पर अभी तक कुछ नहीं चुना है। सोचता हूं कई बार कि बतौर निर्माता भी कोई फिल्म कर लूं। कई लोग आते हैं शाहरुख एक छोटी फिल्म बनाते हैं। टेबल पर ही फायदा हो जाएगा। मैं ऐसे फिल्में नहीं करता। मुझे अच्छी लगेगी तो छोटी भी कर लूंगा। ‘चक दे’ की थी। समस्या यह भी है कि शुरुआत छोटी से होती है और फ्लोर पर जाते ही फिल्म बड़ी हो जाती है। - एक सवाल है कि अनुराग कश्यप और तिग्मांशु धूलिया जैसे न्यू एज डायरेक्टर के साथ आप कब फिल्में करेंगे? 0 जरूर करूंगा। सब से मिलता रहता हूं। दोस्त हैं सब मेरे दिल्ली के दिनों के। कश्यप तो मुझे डांटता रहता है। बार-बार कहता है कि फिल्म कर लो। फिल्म ही नहीं तय हो पा रही है। तिग्मांशु के साथ मैंने ‘दिल से’ की थी। मैं उन्हें तिशु बुलाता हूं। उन्होंने एक बार कहानी भी सुनाई थी। मैं यों ही उनके साथ कोई फिल्म नहीं करना चाहता। उनके साथ स्टारडम वाली बात ही नहीं है। एक चीज तय है कि मजा आएगा तो करूंगा। यह जरूरी नहीं है कि मैं एक ऑफ बीट करूं और वे एक कमर्शियल हीरो ले आएं और हम दोनों एक फिल्म कर लें। विशाल भारद्वाज से भी बात चल रही है। उनके साथ पहले ‘टू स्टेट्स’ कर रहा था। हम दोनों को लगा कि उस फिल्म के लिए मेरी उम्र ज्यादा है। अभी तक केवल फराह खान की फिल्म के लिए ही हां कहा है। तीन-चार छोटी फिल्मों के प्रस्ताव हैं। हो सकता है उनमें से कोई एक फिल्म कर लूं। मैं धंधे में नहीं हूं। मर्जी होगी तो कर लूंगा। फिल्म चली तो सभी का फायदा। नहीं चली तो मैं राजा हूं। - लोग कहते हैं कि आप फिल्मों में काम करने के पैसे नहीं लेते हैं? अगर यह सच है तो आपका कारोबार कैसे चलता है? इस सिस्टम की थोड़ी जानकारी दें। 0 मैं अवॉर्ड फंक्शन और शादियों में नाचता हूं। आगे भी नाचता रहूंगा। एड फिल्में करता हूं। यकीन करें फिल्में अभी तक मेरा धंधा नहीं है। कैसी भी फिल्म हो उसे दिल से करता हूं। सिंपल सी बात बताता हूं। मैं 300 दिन काम करता हूं। रोजाना 18 घंटे। ये जो घर है, गाड़ी है, नाम है यह सब तो हो गया। पुरानी कहावत है कि - चांदी की थाली में खाने से खाने का स्वाद नहीं बढ़ जाता है। मेहनत करता हूं। चोट भी लगती है। अभी हाथ का ऑपरेशन करा कर बैठा हूं। चोट लगने पर ही छुट्टी मिलती है। घर में इतनी चीजें हैं। उन्हें ही ठीक से नहीं देख पाता। 18 घंटे काम कर लौटता हूं तो बीवी-बच्चों से बात करता हूं और सो जाता हूं। जहां 18 घंटे काम करता हूं, वहां दिल से काम करता हूं। कभी यह कोशिश नहीं रही कि एक और चांदी की थाली खरीद लूं। 22 सालों के करिअर में एक भी फिल्म किसी और वजह से नहीं की। बहुत पहले देवेन वर्मा मिले थे। उन्होंने सलाह दी थी कि बेटे तीन वजहों से फिल्में करना। उन्होंने कहा था - कोई भी कुछ भी कहे एक फिल्म धन के लिए जरूर करना। वक्त बदल जाता है। मैं अनुभव की बात बता रहा हूं। एक पिक्चर मन के लिए करना। उन दिनों लोग दस-दस फिल्में एक साथ करते थे। और तीसरा ऐसे ही कर लेना। किसी भी वजह से। मैंने उनकी बात हमेशा ध्यान में रखी। मैंने कमाई की वैकल्पिक रास्ता बना लिया है। पहले एडवर्टाजिंग कोई नहीं करता था। शादियों में कोई डांस नहीं करता था। अवॉर्ड फंक्शन में कोई रेगुलरली एंकरिंग नहीं करता था। यह सब करने का पैसा लेता हूं और मांग कर लेता हूं। - लेकिन इनकी वजह से आपकी बदनामी भी हुई कि शाहरुख लोगों की शादी में नाचते हैं। 0 मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं यह कह सकता हूं न कि फिल्मों में कभी चोरी नहीं की। मेरी आत्मा सच्ची है। जब मैंने शुरुआत की थी तो मैं कुछ नहीं था। मैं जो हूं वह फिल्मों ने बनाया। एक्टिंग, एक्टर ये सब बातें बाद में आती हैं। फिल्मों में मैं कभी समझौता नहीं कर सकता। चले नहीं चले क्या फर्क पड़ता है? कई बार घरवाले भी समझाते हैं कि सोच-समझ कर फिल्में करो। मुझे तो दिल में लगता है कि मेरी इज्जत इसी वजह से है कि मैंने फिल्मों को धंधा नहीं बनाया। स्टार तो बहुत हैं। मेरा दिल ऐसे ख्यालों से बहलता है। यह बताने के बावजूद ऐसा नहीं है कि लोग मुझे पैसे नहीं देते। ‘डॉन’ में उन्होंने मुझे पार्टनर बना दिया। मैंने पैसे नहीं लिए। अभी तक उसके पैसे आते रहते हैं। ‘स्वदेस’ के समय आशुतोष को बोला था कि पैसे बच जाएं तो मुझे दे देना। उनके पैसे नहीं बचे। फिल्म नहीं चली तो भी मेरा धंधा तो चल ही रहा है। आप निर्माता-निर्देशक हैं। दो साल में एक फिल्म बनाते हैं। फिल्म नहीं चली तो मेरा क्या दायित्व बनता है? मैं आप से पैसे वसूल लूं क्या? अरे भाई मेरे तो 21 धंधे चल रहे हैं। मेरे पास पैसे आ रहे हैं। आप से कुछ करोड़ ले लूंगा तो क्या हो जाएगा? मैं किसी अहंकार से यह नहीं बोल रहा हूं। लोग मुझे किंग खान कहते हैं तो सच है न कि राजा कुछ मांगेगा नहीं। अगर आप कमाओगे तो खुद ही दे दोगे। मुझे एक भी निर्माता ने कम पैसे नहीं दिए। हां, दूसरे स्टार के जितने पैसे सुनता हूं। उतने पैसे मुझे कभी नहीं मिले। अभी ‘जब तक है जान’ चली तो आदित्य चोपड़ा पैसे दे कर गए। उन्होंने बहुत पैसे दिए। इतने पैसे मैंने अपनी जिंदगी में नहीं देखे थे। उसके आधार पर मैंने अपनी कीमत नहीं बढ़ा ली कि आदित्य ने इतना दिया तो आप इतना दीजिए। ‘रा.वन’ मैंने 140 करोड़ में बनाई थी। उस में हमें चार-पांच करोड़ का नुकसान हुआ। अब आप ही बताएं कि क्या नुकसान हुआ? उसके लिए मुझे कोई पैसे नहीं मिले। ठीक है। मुझे कहीं और से मिल जाएंगे। मैं ऐसा कर ही नहीं सकता कि निर्माता मर जाए, लेकिन वह मेरे पैसे दे दे। खुदा न खास्ता कभी ऐसे मरने की नौबत आयी जो कि 22 सालों में अभी तक नहीं आयी है तो पैसे मांग लूंगा। - 22 सालों के करिअर में कोई अफसोस... 0 होंगे दो-चार। बड़े ही पर्सनल किस्म के दोस्ती, यारी, प्यार-मोहब्बत, अच्छाई-बुराई। हर किसी की जिंदगी में कुछ अफसोस होते हैं। अच्छाई इस बात की है कि काम की व्यस्तता से अफसोस के बारे में सोचने की फुर्सत नहीं मिलती। - कभी अकेले नहीं होते शाहरुख खान? 0 अगर चोटी पर हूं तो अकेला हूं। अभी बातें चल रही हैं कि नीचे आ गया हूं। यह एक तरह से अच्छा ही है। दो-चार लोग साथ में मिल जाएंगे। मजाक छोड़ें, मैं निहायत अकेला हूं। यह मेरा चुनाव है। फिल्मों में काम करते-करते कहीं पर बेसिक और नॉर्मल जिंदगी से मेरा टच खत्म हो गया है। इसका मतलब यह नहीं है कि मैं सिर्फ अमीरों के बीच रहता हूं। मेरे पास बंगला है। अच्छी गाड़ी है। सच कहूं तो मुझे अच्छा रिश्ता समझ में ही नहीं आता। मैं निभा नहीं सकता। बीवी और बच्चों से रिश्ता है। बाकी मुझे निभाना ही नहीं आता। या शायद वक्त की कमी से रिश्ता बनाने नहीं आता। मेरी धारणाएं बदल गई हैं। मैं सिनिकल, नाराज या क्रोधित नहीं हूं। फिर भी मुझे लगता है कि मेरा एक गाना मेरी जिंदगी का बयान करता है- मुझ से लायी भी नहीं गई और निभायी भी नहीं गयी। मैं तोड़ भी नहीं पाता, जोड़ भी नहीं पाता। फिर सोचता हूं कि फिल्मों में नहीं होता। किसी बैंक में होता तो भी ऐसा ही होता। यही मेरी पर्सनैलिटी है। - पर्सनैलिटी के साथ आपका प्रोफेशन भी तो आपको अकेला करता है? आप ज्यादा लोगों से दोस्ती या रिश्तेदारी नहीं निभा सकते। 0 मुझे यह कला आती ही नहीं है। मेरे दोस्त हैं फिल्म दुनिया के हैं। बाहर के भी हैं। मुझे ऐसा लगता है कि मुझे दोस्ताना नहीं आता। या वक्त नहीं मिलता। पता नहीं। मैं चार दोस्तों के साथ मिल कर हंसता-खेलता नहीं। मैं इन चीजों को मिस करता हूं। शायद मेरी उम्र हो गई है। मैं उस दिन अपनी बीवी से पूछ रहा था कि तुम लोग कैसे इतनी देर तक साथ बैठे रहते हो? गप्पे मारते हो। पार्टी होती है। बच्चों से भी यही सवाल पूछा। मुझे यह अरेंज करना ही नहीं आता। - क्या सोच के स्तर पर आप कहीं और होते हैं? 0 हां, हो सकता है। - क्या आप लतीफों पर हंसते हैं? या लतीफे सुनाते हैं? 0 मुझे कॉमेडी और मजेदार चीजें अच्छी लगती है। शेर-ओ-शायरी अच्छी लगती है। मैं अपनी तरफ से कुछ सुना नहीं सकता, लेकिन देखने-सुनने का मजा लेता हूं। घर पर तो कोई आ नहीं पाता। शूटिंग के दौरान ही लतीफेबाजी होती है। फिल्मों की शूटिंग में सभी से साल भर की दोस्ती हो जाती है। पब्लिक के बीच मैं बहुत हंसमुख हूं। छोटी से छोटी बात पर भी खिलखिलाता हूं। मैं भी हंसाता रहता हूं। ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ के छोटे-छोटे ट्रेलर डाल रहा हूं। इसमें भी सेट पर चल रहे हंसी-मजाक देख सकते हैं। यह सब मेरी ही प्लानिंग है। निजी जिंदगी की बात करें तो यह सब नहीं है मेरी जिंदगी में। (गला रुंध जाता है।) अब तो बच्चों के साथ ही हंसी-मजाक होता है। अभी दो महीने से सोच रहा हूं कि अनुभव सिन्हा के टैरेस पर जा कर बैठूं। मुझे अनुभव से बात करना अच्छा लगता है। एक दिन मैं चला गया था। कुछ घंटे वहीं बैठा रहा। अभी अजीज का टेक्स्ट आया। कल आ जा लंच करते हैं। जूही भी साथ में रहेगी। मेरा दिल तो है जाने का, लेकिन मालूम नहीं कल क्या मशरूफियात हो जाएगी। कहीं बेटी ही कहीं लेकर चली जाए। निजी जिंदगी में बेहद अकेला हूं। - अकेलेपन का साथी क्या है? 0 मैं किताबें पढ़ता हूं। मूड करता है तो लिखता हूं। मेरी आत्मकथा अभी तक पड़ी हुई है। काफी लिखी जा चुकी है। अभी भी लिख रहा हूं। अभी यही उत्साह है कि चोट लगी है तो इस छुट्टी के दौरान आत्मकथा लिख दूं। हर बार छुट्टी पर लंदन जाने के समय सोचता हूं कि खत्म कर लूंगा। मेरा लिखना भी फिल्मों की तरह है। दिल में आता है तभी लिखता हूं। मेरे ऊपर कोई दबाव नहीं है। लिखना शुरू करता हूं तभी कोई किताब आ जाती है। फिर मुझे लगता है कि अभी क्या लिखूं। अपनी बाद में लिख लूंगा। - अभी तक लिखी किताबों में शाहरुख खान के करीब कौन पहुंच पाया है? 0 सच कहूं, मैंने एक भी किताब नहीं पढ़ी है। बहुत पहले भट्ट साहब ने कहा था कि अपने ऊपर लिखे लेख और किताबें पढऩा सबसे बड़ी गलती है। मैं ऐसी गलती नहीं करता। उन्होंने कहा था कि तुम से बेहतर तुमको कौन जानता है? फिर क्यों मोटी-मोटी किताबें पढ़ूं? अनुपमा चोपड़ा की ‘किंग ऑफ खान’ अच्छी किताब कही जाती है। एक दीपा मेहता ने लिखी थीं। छोटी और पतली सी थी। वह पढ़ ली थी मैंने। - किताबों की बात छोड़ें। शाहरुख खान को अभी तक किन लोगों ने टच किया? आपको ठीक से समझा है? 0 वास्तव में क्या होता है कि आरंभिक दो-चार मुलाकातों में मैं लोगों को बहुत भाता हूं। मैं बहुत शिष्‍ट हूं। बहुत जेंटिल हूं। मैं घटियापन नहीं करता। अमूमन बदतमीजी नहीं करता। बहुत प्यार से मिलता हूं। लोगों को लगता है कि इतना बड़ा स्टार हो कर भी इतना विनम्र है। शायद यह बात लोगों को भाती है। फिर कुछ मुलाकातें हो जाती है तो उन्हें लगने लगता है कि मैं सिर्फ बातें ही करता हूं। मेरे अंदर कोई खास बात नहीं है। तीसरे फेज में मैं लोगों को अनरियल लगने लगता हूं। अब जैसे मैंने आपको कह दिया कि मैं दस लाख करोड़ की फिल्म बनाना चाहता हूं या मैच जीत गया तो उड़ूंगा। आईपीएल में मेरे इस स्टेटमेंट के बाद एक साइकॉलोजिस्ट टीवी पर आई थी। उसने कहा कि शाहरुख पागल हो गया है। सचमुच पागल ही उडऩे की बातें किया करते हैं। अब मेरी फ्लाइट ऑफ फेंटेसी को कोई समझ नहीं पाया। मुझे भी ऐसा लगता है कि जब लोग मेरे बहुत करीब आ जाते हैं तो मेरा और उनका तालमेल नहीं रह जाता। मेरी सोच थोड़ी सी अलग है। आजाद ख्याल हूं। बहुत खुले दिमाग का हूं। अलग किस्म का दिल है मेरा। मैं गलतियां माफ कर देता हूं तो लोग समझते हैं कि मैं डर गया। मैं संवेदनशील होकर बुरा मान जाता हूं तो लोग कहते हैं कि पता नहीं यह अपने आप को क्या समझता है? स्टारडम का एक कवच होता है। वह कवच किसी को भी मेरे करीब नहीं आने देता। मेरे अंदर नहीं झांकता। वह आड़े आ जाता है। बच्चों के साथ मैं बिल्कुल ठीक हूं। उनका तो बाप हूं। लेकिन क्या पता बड़े होते-होते वे भी इस कवच के शिकार हो जाएं। तीसरे फेज पर लोग यही समझ कर दूर होते हैं कि मैं रियल नहीं हूं। लोग मान बैठते हैं कि मैं सही नहीं हूं। सब ऊपर-ऊपर दिखता है। कुछ ज्यादा ही पागल समझ कर दूर हो जाते हैं। एक चौथा फेज भी होगा उसके बारे में मैं खुद भी नहीं जानता। मुझे खुद भी नहीं मालूम कि मुझे क्या चाहिए? मैं बोलता नहीं हूं। इमोशन मुझसे बोले नहीं जाते। फिल्मों में अच्छी तरह दिखा देता हूं। अगर आप से प्रॉब्लम हो जाए तो मैं बोलूंगा नहीं। आपको लगेगा कि मुझे फर्क नहीं पड़ा है। सच्चाई यह है कि मुझे फर्क पड़ा है। दिल में मेरी बात दबी रहती है। मेरे कई सारे दोस्त हैं वे आमने-सामने बात कर लेते हैं। तू ने ये कहा था मुझे अच्छा नहीं लगा। तूने वो कहा था बात मुझे जमी नहीं। मुझे इस तरह की बातें बहुत ओछी लगती है। छोटी बातें लगती हैं। मैं क्लियर नहीं करता हूं। अगर आप नाराज हैं तो मैं आपको भी क्लियर नहीं कहूंगा। मुझे लगता है कि मेरी नाराजगी आपने नहीं समझी। और अब आप नाराज हो तो मैं क्यों समझाऊं? - क्या बचपन से आप ऐसे ही हैं? 0 नहीं। स्कूल के दोस्त तो आज भी मिलते हैं। वे मुझे जज नहीं करते। उनके लिए शाहरुख खान तो वही स्कूल वाला है। मेरे बच्चे भी नहीं करते हैं। बीस से पच्चीस साल के बच्चे मुझे ठीक से नहीं समझ पाते। उनके लिए मैं अजूबा हूं। - आप की पूरी मेहनत, काबिलियत, उपलब्धियों और कामयाबी का हासिल क्या है? 0 (ठहर कर) मुझे नहीं मालूम। शुरू में मैंने आप से कहा कि अब मैं सिर्फ उन लोगों से मिलूं या उनके साथ काम करूं, जिनसे मिल कर खुशी होती है। काम तो भांडगिरी का ही है। सभी प्रशंसकों से मिल लूं। वे ट्विटर, फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया नेटवर्क पर इतना प्यार जताते हैं। रियल लाइफ में दुनियाबी तरीके से देखें तो माशाअल्लाह घर अच्छा है। पैसे अच्छे हैं। बच्चों को अच्छी पढ़ाई मिल जाएगी। मेरे मां-बाप ने मेरे लिए घर नहीं छोड़ा था। वे बहुत सारी सीख छोड़ कर गए थे। उसकी वजह से मैं कुछ बन गया। मुझे एक कदम आगे चलना है। मैंने अपने बच्चों को सीख के साथ एक घर भी दे दिया। उनके सिर पर छत रहेगी। उम्मीद है कि वे मुझे से ज्‍यादा कमाएंगे। उम्मीद है मैं उनके साथ ज्‍यादा रहूंगा। मेरे मां-बाप मेरे साथ नहीं रहे। मन दुखी होता है तो कमी महसूस होती है - मम्मी-डैडी होते? जाकर उनके पास बैठ जाता। मां बूढ़ी हो गई होती। मैं उसकी गोद में सो जाता। दरअसल, अपने हमउम्रों के मां-बाप को देख कर ईर्ष्‍यालु हो जाता हूं। लगता है कि कैसे झेलता होगा सब कुछ...समझ में आता है कि मां-बाप के पास जाकर बैठ जाता होगा। -कैसे याद किया जाना पसंद करेंगे? 0 कहीं भी मेरा नाम आए तो मैं चाहूंगा कि लोग मुझे इस बात के लिए याद रखें कि शाहरुख ने कोशिश बहुत की थी। मेरी कब्र पर लिखा हो – हियर लाइज शाहरूख खान एंड ही ट्रायड। (यहां शाहरुख खान लेटे हैं। इन्होंने बहुत कोशिशें की थीं।) मेरी कामयाबी मत गिनो, कोशिशें गिनो। मेरी कोशिशें ही मेरा हासिल हैं। कामयाबी गिनना आसान है। नाकामयाबी गिनना उस से भी आसान है। कोशिशें लोग नहीं गिनते। आरंभ से अंत तक का जो हासिल होता है उसे नंबर दे सकते हैं। अवार्ड, सुपर हिट, आदि की गिनती से उनकी संख्‍या बता सकते हैं। कोशिशों का कोई मापदंड नहीं है। जिस छिछोरेपन से हम ने कामयाबी पर नंबर लगा दिया है, मैं उम्मीद करता हूं कि कोशिश पर कोई नंबर न लगाए। - अपने मां-पिता के सबक बता सकेंगे क्या? उनमें से अपने बच्चों को क्या दिया? 0 मैं पूरी तरह से नहीं दे सका हूं। एक्सेपटेंस और पेशेंस (स्वीकार और धैर्य) मेरे पिता की विशेषताएं थीं। उनमें बहुत धैर्य था। मेरे बच्चे और दोस्त मेरे धैर्य को बुरी आदत मानते हैं। मेरे धैर्य को वे मेरी कमजोरी समझते हैं। अमूमन लोग धैर्य को कमजोरी समझते हैं। मेरे पिता अत्यंत धैर्यवान थे। स्वीकार करने की उनकी क्षमता अद्भुत थी। वे जज नहीं करते थे। आप जैसे भी हो, रहो। वे लक्षण, चरित्र, स्वभाव, मिजाज की बातें ही नहीं करते थे। अच्छाई-बुराई, दोस्ती-पार्टनरशिप सब हमी ने बनाया है। शादी की संस्था हमारी बनाई हुई है। सही-गलत भी हम तय करते हैं। किसीी को हक नहीं कि किसी की जिंदगी ले, लेकिन हम ने कैपिटल पनीशमेंट तय कर दी है। आंख के बदले आंख निकालने में हम यकीन करते हैं। इंसान की कैफियत यही है कि वह जैसा है, वैसा रहे। बच्चों को मैंने ‘सेंस ऑफ कंपीटिशन’ दिया है। कुछ करो तो उसमें श्रेष्ठ हाने की कोशिश करो। नहीं तो मत करो। मेरे बच्चे मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं। 13 साल की बेटी और 15 साल के बेटे के साथ मेरे जो संबंध है, वह किसी इंसान का अपने बच्चों के साथ नहीं होगा। वे कुछ भी बोल देते हैं। वानखेड़े में झगड़ा होने पर उन्होंने सबसे अधिक डांटा था। बेटे ने कहा, ‘आप सिली पर्सन हो। नाउ शटअप, नानसेंस करते हो। ह्वाट एवर ही सेड... जाने दो।’ तब लडक़ा 12 का था और लडक़ी 11 की थी। फिल्म देख कर सुहाना कहती है ‘तुम ने मेहनत की है। अच्छी थी।’ मैंने उनसे यही कहा कि कभी कुछ नहीं छिपाना। बुरा काम करना हो तो भी बताना... मैं उसकी बुराइयां भी बता दूंगा। गाली देनी हो तो दो-चार मैं सिखला दूंगा। बच्चों के साथ खुलापन है। वे भोले, सिंपल, हार्ड वर्किंग, कंपीटिटिव, एक्सेप्टिंग हैं। बस, उनमें पेशेंस नहीं है। सबसे बड़ी बात उनका ट्रस्ट। घर में मम्मी मम्मी नहीं है, डैडी डैडी नहीं है। उनकी बुआ भी रहती हैं। हम सभी पागल हैं। कभी भी किसी को डांट सकते हैं। सभी दोस्त हैं। कोई जोर-जबरदस्ती नहीं है। हासिल की बात आप ने पूछी तो वे बच्चे ही हैं। आर्यन और सुहाना। - अल्कोहल का ऐडोर्समेंट क्यों किया आप ने? 0 एक जमाने में किया था। अब तो सरोगेट एड होता है। मेरा एक ही सवाल है कि अगर लीगल है तो क्या फर्क पड़ता है। कभी किसी ने आईआईपीएम की बात उठाई कि शाहरुख ने क्यों किया? केबीसी के जमाने में उनके लिए क्विज किया था। क्विज करना अच्छा लगता है। बेंगलोर और दिल्ली में किया था और उसके पैसे लिए थे। कोई कांट्रेक्ट नहीं है और न मैं उनका एंबैसडर हूं। मैं तो यह सवाल करूंगा कि कोई भी चैनल या अखबार उनके एड क्यों लेता है? तुम सबसे पवित्र कैसे? तुम्हारा धंधा है और मेरा नहीं। हां मैंने फेयर हैंडसम या अल्कोहल का एड किया। क्या आप बताएंगे कि अल्कोहल का एड अखबार में क्यों आता है? नैतिकता सिर्फ मेरी जिम्मेदारी है क्या? ड्रग्स का एड नहीं करता। सिगरेट का नहीं करता। बच्चों ने मना कर दिया था। अब तो अल्कोहल कंपनियां सीडी बेच रही हैं। हां, मुझे नहीं करना चाहिए था, लेकिन एड नहीं करूंगा तो निर्माताओं से पैसे मांगने लगूंगा। गंदी-गंदी फिल्में करने लगूंगा। देख लो आप? - कौन सा रील पेरेंट्स आप के रियल पेरेंट्स के करीब लगा? 0 ऐसा नहीं है कि मेरी मां वैसे ही थी, लेकिन ‘ओम शांति ओम’ की मां। बुद्धू और प्यारी। पिता में ‘दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे’ के पिता, वे बोलते हैं - यार तूने तो कमाल किया। मैं नौवीं में तीन बार फेल हो गया था। दसवीं में पहुंचा ही नहीं। सेंस ऑफ ह्यूमर और बच्चे की नाकामयाबी को स्वीकार करना। उन्हें बगैर शर्त के प्यार करना। किरण खेर और अनुपम खेर। अरे यह अजीब संयोग है। - किस फिल्म की अभिनेत्री की भूमिका में गौरी को ला सकते हैं? 0 गौरी एक्ट्रेस है ही नहीं। वह सिंपल हाउस वाइफ है। कपड़े अच्छे पहनती है। थोड़ी मॉडर्न है तो पता नहीं लोग उसे क्या समझते हैं। बीवी का तो छोड़ो, बच्चों के बारे में भी कभी नहीं सोचा। मैं कभी सोचा ही नहीं सकता कि फिल्मों में ले आऊं। - पुरानी फिल्मों में कौन सी करना चाहेंगे? 0 ‘डॉन’ कर ली, ‘देवदास’ कर ली। ‘राजू बन गया जेंटलमैन’ भी ‘श्री 420’ से प्रेरित थी। अगर और मौका मिले तो ‘चुपके चुपके’, ‘अंगूर’ जरूर करूंगा। अमित जी की कई फिल्में करना चाहूंगा। उनकी फिल्में देख कर ही बड़ा हुआ हूं। ‘रफूचक्कर’ करना चाहूंगा। दिलीप कुमार की ‘आन’ करना चाहूंगा। ‘परवाना’ कर सकता हूं। ‘बाजीगर’ में उस से प्रेरणा ली थी। - नमक हलाल? 0 मैं थोड़ा शहरी हूं। हरियाणवी बोल सकता हूं, लेकिन जमूंगा नहीं। दर्शक स्वीकार नहीं करेंगे। - समाज को बेहतर बनाने के लिए कुछ क्यों नहीं करते? 0 दो बातें हैं - पहली बात समझ लें कि मैं समाज को बेहतर नहीं बना सकता। दूसरी बात अपने दिल से लोगों की मदद करना मुझे आता है। मैं उसे मदद नहीं मानता। इस्लाम में इसकी अनुमति नहीं है। इस्लाम में अल्लाह की राह में किया गया काम चैरिटी नहीं होती। मैं उसकी बात नहीं करता। मैंने हिदायत दे रखी है कि कभी भी आर्थिक मदद करते समय यह न बताओ कि कौन कर रहा है। बस यह पता करना कि सही जगह पर मदद पहुंचे। एक आदमी ने पता कर लिया था। वह अपनी बेटी के लिए थैंक्यू कहने आ गया था। मुझे बहुत शर्मिंदगी हुई थी। हफ्ते में एक-दो बार अखबार या कहीं और से पता चलने पर मैं अपने ऑफिस को मदद करने का निर्देश देता हूं। हां हमारे अकाउंट में जरूर होता है। समाज सेवा मैं अपने बलबूते पर करना चाहता हूं। न किसी से मांगना चाहता हूं और न वितरकों से पैसा लेना चाहता हूं। अभी मैंने इतना नहीं कमाया है कि अपनी हैसियत से समाज के लिए वह कर सकूं जो चाहता हूं। मेरी मां सोशल वर्कर थीं और मेरे पिता फ्रीडम फाइटर थे। मैं जरूर करूंगा। स्पष्ट कर दूं कि यह मेरा दायित्व नहीं है। फिर भी मेरी जिंदगी का यह सबसे अहम काम है। मैं फिल्में अपने पैसे से बनाता हूं। आईपीएल अपने पैसे से करता हूं। ऑफिस चला रहा हूं। नुकसान जरूर होता है, लेकिन वह मेरा होता है। मैं किसी से कर्ज नहीं लेता। बैंक से पैसे नहीं लेता। यही वजह है कि पूरे गर्व से शादियों में नाचता हूं। सारी कमाई फिल्म और आईपीएल में नहीं लगती। जो मेरे दिल में आता है। वहां भी जाता है। कई बार अपनी बीवी को बताता हूं मैंने इतने करोड़ कमाए और उन्हें बांट दिया। बीवी खुश होती है। पहले मैं उसे बताता नहीं था। यही कारण है कि कहीं भी नाचते समय मैं बहुत खुश रहता हूं। मैं दूसरों को खुश करना और देखना चाहता हूं। मैं अभी बता दूं कि भविष्य में और ज्यादा नाचूंगा। और ज्यादा पैसे कमाऊंगा। चैरिटी का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं करता। मैं फिल्मों के अच्छे मार्केटिंग कर लेता। चैरिटी की मार्केटिंग नहीं आती और न ही सीखना चाहता। प्लीज चैरिटी पर नंबर मत लगाइए। कुछ भी करने का एहसास खुद को होने लगे तो वह खुदा की राह में नहीं रहेगा। - फिर सफलता क्या चीज है? 0 सफलता के मायने सभी के लिए अलग है। किसी के होठों पर हंसी और पांव में छाले हों तो सफल है। बाहर से देखने पर भले ही वह दुखी लग सकता है। जिंदगी के हर क्षेत्र में वही करें जिसमें यकीन करते हैं। दो बातें याद रखें कि सफलता स्थायी नहीं होती, लेकिन असफलता भी स्थाय नहीं होती। कुछ बुरा हो जाए या असफल हो जाएं तो भी आत्महत्या न करें। वह बिल्कुल गलत है। मां-बाप को बहुत दुख होता है। याद रखो कि जिंदगी में नाकामयाब भी हुए तो मां-बाप का प्यार कम नहीं होगा। उनके लिए तुम्हारी पैदाइश ही कामयाबी है। जिंदगी में पैसा कमाना जरूरी है। कोई अगर कहे कि पहाड़ पर जाकर संत बन जाओ तो यह गलत है। आज के जमाने में यह नहीं हो सकता। फिर अगर खुशी मिलती है तो बन जाओ। सच्चाई यही है कि पैसे कमाओ, खुश और सम्पन्न रहो। खुद को चुनाव करने लायक स्थिति में ले आओ। वह पोजीशन हासिल कर सको कि सही चुनाव कर सको। अंगूर खट्टे हैं या हारे को हरिनाम को जीवन में मत अपनाओ। अगर आपको मिल ही नहीं रहा तो आपकी न करने की बात झूठी है। असफल होने पर भी कोशिश करते रहो। मेहनत के साथ यकीन रखो। सफलता में देर हो सकती है। मेरी फिल्म में कहा गया है कि अंत में सब ठीक हो जाता है। अगर ठीक नहीं हुआ है तो समझो को अंत नहीं हुआ है। नाकामयाबी से घृणा करो। आप किसी भी चीज से घृणा करोगे तो निजात पा लोगे। सीधे मत टकराओ। एक कदम पीछे लो, सोचो और फिर आगे बढ़ो। अपनी काबिलियत को पहचानो और उस पर अमल करो। किसी ने कहा है कुछ लोग जन्मजात बड़े होते हैं। कुछ लोग जिंदगी में महानता हासिल करते हैं और कुछ लोगों के पास अच्छे पीआर मैनेजर रहते हैं। मैं तो यही कहूंगा कि तीसरे पर मत जाना। धारणाओं पर मत जीओ। सुबह शीशे में खुद को देख कर सच्चाई टटोल लो। कई बार मेरी फिल्में नहीं चलती हैं। अखबारों में कुछ-कुछ लिख दिया जाता है, लेकिन सुबह आईना देखता हूं तो खुद को ठीक ही पाता हूं। लोग मुझ से कहते हैं कि तुम बड़े यंग दिखते हो। दरअसल मैं सोचता ही नहीं हूं। मेरा मन साफ है तो कोई कुछ भी कहे। अभी तो पंद्रह मिनट की प्रसिद्धि सब को मिल जाती है। 22 साल की प्रसिद्धि सभी को नहीं मिलती। कुछ लोग पंद्रह मिनट की प्रसिद्धि को पंद्रह साल खींचना चाहते हैं। इंसान जब दूसरे इंसान को देखता है तो उसकी शक्ल और अक्ल की इज्जत नहीं करता। हूनर की इज्जत सभी करते हैं। सुराही बनाने वाले कुम्हार को काम करते हुए देखने के लिए आप रुक जाते हैं। हूनर हर कोई पहचान लेता है। योग्यता है तो मेहनत करो। अपनी क्षमता बढ़ाओ। यकीन करो। आपको सभी देखेंगे। खूबसूरती, स्टाइल, लुक का असर व्यक्ति और व्यक्ति के बीच बदलता है। हूनर का प्रभाव एक जैसा होता है। लता मंगेशकर यहां गाएं या माइकल जैक्सन वहां गाएं। अभी इकॉन ‘छम्मक छल्लो’ गा कर गए। दस बार असफल होने के बाद भी ग्यारहवीं बार आप पहचाने जाएंगे। मेरा मामला अलग था। टीवी पर आया तो सभी ने पहचान ली। फिल्मों में आया तो स्टार बन गया। फिर भी इसके पीछे मैंने बहुत पापड़ बेले हैं। सब कुछ यों ही नहीं मिल गया। मेरे डैडी कहते थे कि वक्त औरत होती है और उसकी चोटी आगे रहती है। हिम्मत कर आगे से चोटी पकडऩी होती है। पीछे से चोटी नहीं पकड़ सकते हैं। काम से बड़ा कोई धर्म नहीं होता।
Posted on: Mon, 01 Jul 2013 03:13:54 +0000

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