कल "स्ट्रिंग ऑपरेशन" में एक पुलिसवाले ने कहा की "आज़म खान का फ़ोन आया,उन्होंने पकडे गये 7 आरोपियो को छोड़ने के लिए कहा और उन्होंने कहा की जो हो रहा है,होने दो।। कल मुझे उस पुलिसवाले की ये बात सुनकर अनिल कपूर की फिल्म "नायक" का एक सीन याद आ गया जिसमे दंगे होने पर अमरीश पूरी पुलिसवाले से कहता है की " कुछ गाड़ियाँ जलती हैं तो जलने दो,दुकाने लुटती है तो लुटने दो..... पहले लोग चिल्लायेंगे फिर थक कर शांत हो जायेंगे..... मैं दो-एक को पकड़कर एक कमेटी बना दूंगा"।। गुजरात #दंगो को लेकर जिंदगी भर छाती कूटने वाले लोग आज " #मुज़फ्फरनगर " दंगो में आज़म खान का नाम आने के बाद चुप क्यूँ हैं? कहाँ है वो तीस्ता सीतलवाड़, शबनम हाशमी,जावेद अख्तर,मुकुल सिन्हा,जस्टिस काटजू, विजय "देशद्रोही",रविश कुमार,आशुतोष और "खाजदीप" सरदेसाई जैसे लोग ? आज सबकी बोलती बंद क्यों है? इन लोगों को गाली देना भी शब्दों का अपमान है...............
Posted on: Thu, 19 Sep 2013 10:19:55 +0000
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