ख्याली दुनिया में रहने - TopicsExpress



          

ख्याली दुनिया में रहने वाले सबसे ज्यादा नफरत हकीकत से करते हैं। मेरे भाजपाई मित्र मुझे समझा समझा कर इनबॉक्स भर देते हैं। कहते हैं भाजपा ही कांग्रेस का एकमात्र विकल्प है। मगर मै कैसे यकीन करूँ इन मुंगेरी लालों पर? यूँ ही नही ये पिछले दस साल से भ्रष्ट कांग्रेसियों को वाकओवर देते आ रहे हैं। आइये देश में भाजपा की राजनैतिक पकड़ पर एक नजर डालते हैं। शुरुआत दक्षिण से: बीजेपी को दक्षिण शब्द से प्यार है। वैचारिक बहसों में इसे कहते भी दक्षिणपंथी यानी राइट विंग पार्टी हैं। मगर देश के दक्षिण में बीजेपी के लिए कुछ भी राइट नहीं है। केरल में कभी खाता ही नहीं खुला। कर्नाटक में हुई छीछालेदर पूरे देश ने देखी। आंध्र प्रदेश में बंडारू दत्तात्रेय जैसे जमीनी नेताओं को किनारे लगा वेंकैया नायडू जैसे दिल्ली ब्रांड नेता बढ़ाए गए। टीडीपी सा साथी गया और सीटें गईं सो ब्याज में। तमिलनाडु में जब भी पनपी, साझेदार के कंधे पर नसैनी टिकाकर। फिलहाल यहां भी पार्टी खाली हाथ है। इस ब्लैंक के चलते बीजेपी उत्तर भारत के राज्यों में कितना भी अच्छा प्रदर्शन कर ले, न तो पैन इंडिया पार्टी बन पाएगी और न ही अपने दम पर दिल्ली में दस्तक दे पाएगी। पूरब के सात राज्यों से इनका जन्म जन्मान्तर से कोई नाता नही है। क्यूंकि अगर ये वहां जायेंगे और अपना एकमात्र मुद्दा सामने रखेंगे की हम अगली बार मंदिर बनवा देंगे तो वो कहेंगे जाकर बनवा लो ..हमें क्यूँ बता रहे हो! यहाँ से इनकी एक सीट नही निकलनी। यूपी में बीजेपी की लुटिया डूबनी शुरू हुई 1998 के बाद. कल्याण सिंह सीएम थे और राजनाथ सिंह उनकी राह में हर मुमकिन कांटा बो रहे थे। कल्याण इतने अलग थलग पड़ गए कि एक साल बाद ही अपनी पार्टी को सीएम रहते हुए हराने में लग गए. नतीजनत पार्टी के 58 सांसद घटकर 38 रह गए. इसके बाद कल्याण पार्टी से निकाल दिए गए और रामप्रकाश गुप्ता के बाद राजनाथ सीएम बने. खूब ऐलान किए, दावे किए मगर यूपी विधानसभा में पार्टी की सीटें घटकर 88 रह गईं. राजनाथ केंद्र में मंत्री बनकर आ गए और 2004 के चुनाव में बीजेपी की और भी कलई पुत गई. अब हाल ये है कि पार्टी दहाड़ के आंकड़े तक पहुंचने के लिए तरसती है यूपी में. 80 सीटों वाला ये सूबा कभी दावा करता था कि हम देश चलाते हैं, इसको दम मिलता था इन अंकों से. मगर यूपी में बीजेपी अभी भी खस्ताहाल है. यहां बूढ़े हो चुके नेताओं की भरमार है, जो अपनी सीट जीत लें, तो बहुत है. सब एक दूसरे को सेट करने में लगे रहते हैं. ऐसे में जब उत्तर प्रदेश की सियासत का उत्तर ही नहीं है, तो दिल्ली दरबार तो बस ख्वाब ही बना रहेगा. राजस्थान, हरियाणा और एच पी में इनका प्रतिद्वंदी इनसे कमजोर नही। अभी भी यहाँ पर कांग्रेस की ही सरकार है। बिहार का अभी हाल ताज का किस्सा आपने देखा ही होगा। वहां इनके 17 साल पुराने लंगोटिया यार नितीश जी भी बिरादरी बदल लिए। कश्मीर का तो जिक्र करना भी बेवकूफी होगी। तो महोदय, क्या अकेले गुजरात के दम पर 272 सीट निकालोगे ..?? Admin 02
Posted on: Sun, 14 Jul 2013 20:56:10 +0000

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