गुरु पूर्णिमा से याद आया - TopicsExpress



          

गुरु पूर्णिमा से याद आया है कि जरुरी नहीं किसी एक विशेष दिन पर ही गुरु को याद किया जाय जब उनकी सीख हमारे साथ हर पल रहती है तो उन्हें सिर्फ एक ही दिन याद न किया जाय! मुझे कई टीचरों ने पढाया, पर अपने सबसे फेवरेट गुरु मुझे आठवी से लेकर दसवी तक गणित पढ़ाने वाले श्री राजेंद्र सिंह लिंग्वान [राजू गुरूजी] [कांडा गावं लोस्तु] थे, जिनका परम प्रिय अस्त्र बैट था! वे उसी बैट से हमारी ठुकाई करते थे जिससे हम इंटरवेल में क्रिकेट खेल करते थे! उस दौर में अगर मोबाइल इतना प्रचलित होता जितना आज है तो कोई न कोई उनकी ठुकाई का वीडियो बना कर मिडिया वालो को दे देता, फिर ये भांड लोग बोलते कि 'देखिये इस क्रूर मास्टर को कैसे बच्चो को पिट रहा है'! खैर उनकी इस कुटाई की वजह से ही हमें 'मनोहर रे' की गणित के सभी सूत्र याद हो पाए और हम दसवी से आगे बढ़ पाए! और वो इसलिए नहीं मारते थे कि हमें कुछ नहीं आता, बल्कि इसलिए मारते थे कि हम उन्हें झूठ बोलते थे कि गुरु देव जो होमवर्क आपने दिया था वो हो गया! पर कॉपी खाली मिलते ही गुरु जी का पारा सातवे आसमान पर और हम मुर्गा बनकर जमीं में! उनके मुह से हमारे लिए 'भूत के बच्चों' और 'कमिनचंद की औलादों' जैसे शब्द निकलते थे! पर स्कूल के बाहर जब भी मिले बच्चों के साथ बच्चे बन जाते थे! दसवी के बाद उनका ट्रांसफर न जाने कहाँ हो गया! वो गुरु मुझे आज तक नहीं मिले, भाई वापस गणित सीखनी है ! एक और गुरु थे पर वो इसलिए याद आते है कि बारहवी में उन्होंने मुझे पूरे कॉलेज के सामने बिना वजह थप्पड़ मारा था [वो इसलिए कि उन्होंने कहा था कि वो पागल है और मै होले से हंस पड़ा]! नाम नहीं बताऊंगा! पर इतना जरुर कहूँगा कि गुरु के तीन बच्चे थे, जिसमे सबसे बड़े वाले की उम्र उस वक्त 27 साल थी और खुद हमारा 40 साल का वो गुरु 25 का लगता था! ऊपर वाले ने उन्हें भरपूर जवानी दी थी! जय गुरुदेव
Posted on: Tue, 23 Jul 2013 03:29:04 +0000

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