तो हिन्दू क्यो नही बन - TopicsExpress



          

तो हिन्दू क्यो नही बन जाते तुम्हारे पूर्वज भी तो हिन्दू थे अक्सर आप लोगो ने हिन्दू भाइयो से ये कहते लिए सुना होगा | हम पूछते है कि . हिन्दू धर्म में अगर कोई खूबी है तो मुझे बताओ मैनें देखा है की किसी परिवार में अगर पाँच मेंबर हैं मगर उनमें एक मत नहीं है हर वयक्ति सिर्फ अपनें मतलब की बात करता है एक से पूछो किसकी पूजा करते हो वह कहता है मै हनुमान जी की पूजा करता हूँ कयुंकी वह पहलवानी करता है दूसरा कहता है मैं लक्ष्मी जी का पुजारी हूँ वह धन जुटाना चाहता है तीसरा कहता है मैं सरस्वती जी को मानता हूँ वह संगीतकार या डांसर बनना चाहता है चौथा कहता है मैं भोले शंकर जी को पूजता हूँ वह शराब का शौकीन है पांचवा कहे मैं तो कन्हिया जी का भक्त हूँ वह आशिक मिजाज है इसलिए हर शख्स का अलग मिजाज ही सिर्फ अपनें मतलब की ही बात करते हैं एरिया बदलते ही देवता बदल जाता है कहीं राम सीता की पूजा होती है कहीं गणपति बाप्पा कहीं काली माता तो कहीं वान्केश्व्रम अगर संसार के दो खुदा भी होते तो दुनियां में बड़ा ही बिगाड़ होता एक कहता सूरज पूरब से निकलेगा दूसरा कहता पश्चिम से एक कुछ कहता दूसरा कुछ दोनों में झगडा होता दुनिया धडाम भड़ाम हो जाती अगर किसी स्कूल या कौलेज के दो प्रिंसपल हों या किसी गांव के दो पर्धान या किसी देश के दो हाकिम हो जाएँ तब सिस्टम नहीं चल पाएगा जहाँ उंच नीच की वजह से एक दुसरे का सम्मान न किया जाता हो एक कहता है मैं ऊँचा जाती का हूँ तुन हमारे साथ उठनें बेठनें के काबिल नहीं है सोचनें का विषय है इसमें तेरे बाप का क्या कमाल और और दुसरे के बाप का क्या कुसूर . अगर एक के कुंवे का पानीं भी दुसरे नें पि लिया तो उससे मर पिटाई की जाती है कयुंकी वह नीची जाती का है क्या उसके हाँथ में टट्टी लगी होती है जहाँ पर इतनीं घटिया सोच रखी जाती हो उस धर्म में तो सिवाय घुटन के और क्या मिलेगा तब कयूँ बनूँ मैं हिन्दू हमारे यहाँ सिर्फ एक खुदा की ही इबादत होती है चाहें राज्य कोई हो देश कोई हो इन्सान का रंग किसी तरह का भी हो सिर्फ एक ही खुदा की परस्तिश करते हैं साथ में खाते हैं वहां तो एक आदमी खानें की थाली ले के भोजन करता है दूसरा आ जाए उसे साथ में खिला नहीं सकता कयुंकी खानां झूठा हो गया क्या मुह में से निकाल कर थाली में रखा गया जाता है?एक खा खा कर मरे दूसरा भूखा मरे हमारे यहाँ तो एक रोटी है और खानें वाले चार एक एक टुकड़ा सब मिल बाँट के खा लेते हैं और तसल्ली इस बात की होती है के जितना मेनें खाया है मेरे भाई नें उससे जियादा नहीं खाया जो तसल्ली और सुकून मुझे इस्लाम मजहब में है वह संसार के किसी दुसरे धर्म में कभी नहीं मेरी दिली तमन्ना है के जिस रह को मेने चुना है उस पर संसार के हर वयक्ति को विचार करना चाहिए हशमत खान
Posted on: Tue, 22 Oct 2013 05:06:01 +0000

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