दर्पण काफिला पर्वतों के - TopicsExpress



          

दर्पण काफिला पर्वतों के बीच से गुजरा, कुछ पल घने वृक्षों के नीचे विश्राम किया और आगे चल पड़ा । लेकिन जाते-जाते एक यात्री अपना दर्पण वहीँ भूल गया । दर्पण अपनेआप को अकेला महसूस करने लगा । लेकिन थोड़ी ही देर बाद उसने देखा दर्पण में एक खूबसूरत प्रतिबिम्ब नज़र आ रहा था । दर्पण ने देखा पास ही एक चट्टान गर्व से मस्तक उठाए खड़ी थी । उसके सांवले रूप ने दर्पण के ह्रदय में हलचल मचा दी । दर्पण चट्टान के आकर्षण में डूबने से अपनेआप को रोक नहीं पाया । एक दिन जैसे ही सूर्य की किरणें दर्पण पर पड़ीं,दर्पण हवा के झोंके से जरा सा हिला और सूर्य की किरणें परावर्तित हो चट्टान पर गिरने लगीं । चट्टान का ध्यान अनायास ही दर्पण की ओर गया । दर्पण ने चट्टान को अपनी और देखता पा तुरंत चट्टान से कहा - " ऐ प्यारी चट्टान, में अपना ह्रदय तुम्हारे सांवले सलोने सौन्दर्य को अर्पित करना चाहता हूँ । मेरे ह्रदय में केवल तुम्हारी छवि है । " लेकिन चट्टान का ह्रदय तो पत्थर का था । दर्पण के प्रेम निवेदन का उसपर कोई असर नहीं पड़ा । चट्टान बोली - " दर्पण ! तुम कैसे कह सकते हो तुम्हारे ह्रदय के हर हिस्से में केवल मेरा प्रतिरूप है । तुम्हारे तो सामने जो भी आता है उसीकी छवि तुम में नज़र आती है । " दर्पण बोला - " समय बताएगा मेरे ह्रदय के हर हिस्से में केवल तुम्हारी छवि है । " अचानक तूफ़ान उठा,तेज़ हवा के झोंके से दर्पण उछलकर चट्टान से जा टकराया । दर्पण के असंख्य टुकड़े-टुकड़े हो गए । चट्टान यह देख कर हैरान रह गई कि दर्पण के हर टुकड़े में केवल उसीका प्रतिबिम्ब नज़र आ रहा था । चट्टान का प्रस्तर ह्रदय भी दर्पण के अनूठे प्रेम पर समर्पित हो गया था । ****** रंजना फतेपुरकर , इंदौर
Posted on: Sat, 13 Jul 2013 16:10:50 +0000

Trending Topics



Recently Viewed Topics




© 2015