देवभूमि मे बरसो से चली आ - TopicsExpress



          

देवभूमि मे बरसो से चली आ रही जागर परंपरा अब बिलुप्ति के कगार पर है, भले ही मेरी बात आप को अटपटी और गलत लगे मगर ये सत्य है, इसके जिमेदार वो धरम के ठेकेदार हैं जो आस्था और देवी देवताओ के नाम पर ढोंग रच कर सीधी शादी जनता को बेवकूफ बनाकर अपना ऊलू सीधा करते हैं, तरह तरह के तंत्र मन्त्र और भूत और ना जाने कैसे कैसे ढोंग रच कर ठगते हैं, और इसी वजह से लोगो का ध्यान जागर से हट सा गया, जागर और हम, हमारे कुल देवी देवता बरसो से चली आ रही ये परंपरा को सही तरह से नहीं निभा पा रहे हैं, कुछ स्वार्थी लोगो के कारण इस स्तिथि तक पहुच गयी है! मेरी कबिता से किसी को आपति हो तो मुझे फ़ोन करना मेरे पास कुछ आंकड़े हैं मे दिखा सकता हूँ, कभी जागर कभी जात्रा, हरिद्वार जान्द-जान्द! थकी गेनि गात, बरसो बिटी से भूत मनान्द-मनान्द! कभी नवरा कभी घंडड्याली,घरभूत नचान्द-नचान्द! भारी मुंड मा कर्जा थुपूडू, डौरी थाली बजान्द-बजान्द! पूछ बक्या एक ही बात, बल पांच साकी पैलि छायी! तब ना येकी अन्क्वे गत, ना डांडी ना शांकी ह्वाई! मेरु दिल झुराणु या आत्मा, किले अब यी साकी,किले प्रकट ह्वाई! कज्याण थै खटुली पकड़े, कूड़ी छानी घंटे ग्याई! इना लमडै, ऊना अकडै,खूब करी हिलै ग्याई! जरा-जरा करी छीनी ज्वानी, आस तलक छीनी ग्याई! जीवन भर की कमै धमै, मंडाण मा खै गे! मिल बोली जगरी बुलाओ, धूमधाम से जागर लगाओ! सालो बिटी यो कलंकी, येकी छाल छांट कै जाओ! झट झटाग मा वो प्रकट ह्व़े, दे चाल दे-दे चाल ब्वनु छाई ! झट निकाल मिल जुत्तू अर बीच कछडी मा जुते दे! हकचक वो हकचक जनता, हुर्त-हुर्त कनु रै गे! बस दिदा वे दिन बिटी, झणी कख वो हरची गे!
Posted on: Mon, 22 Jul 2013 10:01:52 +0000

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