देश की 4.5% आबादी अपने - TopicsExpress



          

देश की 4.5% आबादी अपने मौज-मस्ती और 95% आबादी अपने रोजी-रोटी के चक्कर मे साल भर इस कदर घिरी रहती है की उनके लिए ये सम्भव ही नहीं हो पाता है की देश के एक नागरिक के रूप में देश की समस्याओं पर तनिक विचार सके। और ऐसा भी नहीं है की ये समस्याएं उसकी अपनी नहीं हैं, उससे अछूती हैं- देश की समस्याएं देश के नागरिकों से अछूती कैसे हो सकती हैं ?? ये समस्या हमसे सीधी जुड़ी हैं, हम पर सीधी असर डालती हैं बस हम रोजी-रोटी के उद्धम में ही इतने मगन हो गए हैं की इन समस्याओं के खुद पर विस्तृत और व्यापक प्रभाव को देख नहीं पाते। और जब बोध ही नहीं हो पाता तो शोध की और कैसे बढ़ेंगे ?? कुल मिलाकर दो दिन आते है (15 अगस्त और 26 जनवरी) जब देश के नाम पर हमें अपने कामों से अवकाश मिलता है। यदि हम इन दिनों में भी देश के जनमानस को देश के समस्याओं पर व्यापक विमर्श से जिसमे आलोचना भी शामिल है और किसी स्वप्न-भ्रम से इतर यथार्थ पर आधारित कटु आकलन भी; को उत्सवधर्मिता के नाम पर रोक देंगे तो ये देश के साथ अन्याय होगा। 15 अगस्त के दिन को आलोचनाओं और कटु यथार्थो के साक्षात्कार से परे रखने की वकालत करने वाले ये लोग शायद ये चाहते हैं की देश का व्यापक जनमानस देश की समस्याओं के बोध और शोध दोनों के निमित्त सदैव अनुपलब्ध रहे- 363 दिन अपनी रोजी-रोटी की समस्याओं में और दो दिन कृत्रिम उत्सवधर्मिता में मगन रहे, व्यस्त रहे या कहें अस्त-व्यस्त रहे। ताकि देश को ये मुट्ठि भर लोग जिधर चांहे हांक सके और इनकी साल भर की उत्सवधर्मिता बनी रहे। स्वतान्त्र्य मात्र उत्सव की वस्तु नहीं है, मात्र कर्मकांड की वस्तु नहीं है। ये तो वो भाव है जो चरित्र में निहित हो कर कर्म में फलित होते हुए व्यक्ति को, देश को स्वावलंबी, सच्चरित्र और स्वयंसेवी बनाती है। दिनकर के शब्दों में - स्वातंत्र्य गर्व उनका जो नर फाको में प्राण गवाते हैं, पर नहीं बेच मन का प्रकाश रोटी का मोल चुकाते हैं। स्वातंत्र्य गर्व उनका जिनपर संकट की घात न चलती है, तूफानों में जिनकी मशाल कुछ और तेज़ हो जलती है। स्वातंत्र्य उमंगो की तरंग नर में गौरव की ज्वाला है, स्वातंत्र्य रूह की ग्रीवा में अनमोल विजय की माला है। स्वातंत्र्य भाव नर का अदम्य, वह जो चाहे कर सकता है, शाशन की क्या बिसात, पाँव विधि की लिपि पर धर सकता है। -Abhinav Shankar
Posted on: Thu, 15 Aug 2013 10:47:56 +0000

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