नारी अजादी की असलियत 1- - TopicsExpress



          

नारी अजादी की असलियत 1- पुत्री, पत्नी, माता या कन्या, युवा, व्रुद्धा किसी भी स्वरुप में नारी स्वतंत्र नही होनी चाहिए. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-२ से ६ तक.... २- पति पत्नी को छोड सकता हैं, सुद(गिरवी) पर रख सकता हैं, बेच सकता हैं, लेकिन स्त्री को इस प्रकार के अधिकार नही हैं. किसी भी स्थिती में, विवाह के बाद, पत्नी सदैव पत्नी ही रहती हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४५ ३- संपति और मिलकियत के अधिकार और दावो के लिए, शूद्र की स्त्रिया भी दास हैं, स्त्री को संपति रखने का अधिकार नही हैं, स्त्री की संपति का मलिक उसका पति,पूत्र, या पिता हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४१६. ४- ढोर, गंवार, शूद्र और नारी, ये सब ताडन के अधिकारी हैं, यानी नारी को ढोर की तरह मार सकते हैं.... तुलसी दास पर भी इसका प्रभाव दिखने को मिलता हैं, वह लिखते हैं- ढोर, चमार और नारी, ताडन के अधिकारी. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-८ श्लोक-२९९ ५- असत्य जिस तरह अपवित्र हैं, उसी भांति स्त्रियां भी अपवित्र हैं, यानी पढने का, पढाने का, वेद-मंत्र बोलने का या उपनयन का स्त्रियो को अधिकार नही हैं. -मनुस्मुर्तिःअध्याय-२ श्लोक-६६ और अध्याय-९ श्लोक-१८. ६- स्त्रियां नर्कगामीनी होने के कारण वह यग्यकार्य या दैनिक अग्निहोत्र भी नही कर सकती. (इसी लिए कहा जाता है-नारी नर्क का द्वार) - मनुस्मुर्तिःअध्याय-११ श्लोक-३६ और ३७ . ७- यग्यकार्य करने वाली या वेद मंत्र बोलने वाली स्त्रियो से किसी ब्राह्मण भी ने भोजन नही लेना चाहिए, स्त्रियो ने किए हुए सभी यग्य कार्य अशुभ होने से देवो को स्वीकार्य नही हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-४ श्लोक-२०५ और २०६ . ८- - मनुस्मुर्ति के मुताबिक तो , स्त्री पुरुष को मोहित करने वाली - अध्याय-२ श्लोक-२१४ . ९ - स्त्री पुरुष को दास बनाकर पदभ्रष्ट करने वाली हैं. अध्याय-२ श्लोक-२१४ १० - स्त्री एकांत का दुरुप्योग करने वाली. अध्याय-२ श्लोक-२१५. ११. - स्त्री संभोग के लिए उमर या कुरुपताको नही देखती. अध्याय-९ श्लोक-११४. १२- स्त्री चंचल और हदयहीन,पति की ओर निष्ठारहित होती हैं. अध्याय-२ श्लोक-११५. १३.- केवल शैया, आभुषण और वस्त्रो को ही प्रेम करने वाली, वासनायुक्त, बेईमान, इर्षाखोर,दुराचारी हैं . अध्याय-९ श्लोक-१७. १४.- सुखी संसार के लिए स्त्रीओ को कैसे रहना चाहिए ? इस प्रश्न के उतर में मनु कहते हैं- (१). स्त्रीओ को जीवन भर पति की आग्या पुत्री,पत्नी,मा ता या कन्या,युवा,व्रु द्धा किसी भी स्वरुप में नारी स्वतंत्र नही होनी चाहिए. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-२ से ६ तक. ... २- पति पत्नी को छोड सकता हैं, सुद(गिरवी) पर रख सकता हैं, बेच सकता हैं, लेकिन स्त्री को इस प्रकार के अधिकार नही हैं. किसी भी स्थिती में, विवाह के बाद, पत्नी सदैव पत्नी ही रहती हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४५ ३- संपति और मिलकियत के अधिकार और दावो के लिए, शूद्र की स्त्रिया भी दास हैं, स्त्री को संपति रखने का अधिकार नही हैं, स्त्री की संपति का मलिक उसका पति,पूत्र, या पिता हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४१६. ४- ढोर, गंवार, शूद्र और नारी, ये सब ताडन के अधिकारी हैं, यानी नारी को ढोर की तरह मार सकते हैं.... तुलसी दास पर भी इसका प्रभाव दिखने को मिलता हैं, वह लिखते हैं-ढोर,चमार और नारी, ताडन के अधिकारी. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-८ श्लोक-२९९ ५- असत्य जिस तरह अपवित्र हैं, उसी भांति स्त्रियां भी अपवित्र हैं, यानी पढने का, पढाने का, वेद-मंत्र बोलने का या उपनयन का स्त्रियो को अधिकार नही हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-२ श्लोक-६६ और अध्याय-९ श्लोक-१८. ६- स्त्रियां नर्कगामीनी होने के कारण वह यग्यकार्य या दैनिक अग्निहोत्र भी नही कर सकती. (इसी लिए कहा जाता है-नारी नर्क का द्वार) - मनुस्मुर्तिःअध्याय-११ श्लोक-३६ और ३७ . ७- यग्यकार्य करने वाली या वेद मंत्र बोलने वाली स्त्रियो से किसी ब्राह्मण भी ने भोजन नही लेना चाहिए, स्त्रियो ने किए हुए सभी यग्य कार्य अशुभ होने से देवो को स्वीकार्य नही हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-४ श्लोक-२०५ और २०६ . ८- - मनुस्मुर्ति के मुताबिक तो , स्त्री पुरुष को मोहित करने वाली -अध्याय-२ श्लोक-२१४ . ९ - स्त्री पुरुष को दास बनाकर पदभ्रष्ट करने वाली हैं. अध्याय-२ श्लोक-२१४ १० - स्त्री एकांत का दुरुप्योग करने वाली. अध्याय-२ श्लोक-२१५. ११. - स्त्री संभोग के लिए उमर या कुरुपताको नही देखती. अध्याय-९ श्लोक-११४. १२- स्त्री चंचल और हदयहीन,पति की ओर निष्ठारहित होती हैं. अध्याय-२ श्लोक-११५. १३.- केवल शैया, आभुषण और वस्त्रो को ही प्रेम करने वाली, वासनायुक्त, बेईमान, इर्षाखोर,दुराचारी हैं . अध्याय-९ श्लोक-१७. १४.- पति सदाचारहीन हो, अन्य स्त्रीओ में आसक्त हो, दुर्गुणो से भरा हुआ हो, नंपुसंक हो, जैसा भी हो फ़िर भी स्त्री को पतिव्रता बनकर उसे देव की तरह पूजना चाहिए. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-१५४) @ 01
Posted on: Tue, 15 Oct 2013 08:21:38 +0000

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