नई हुई फिर रस्म पुरानी - TopicsExpress



          

नई हुई फिर रस्म पुरानी दीवाली के दीप जले शाम सुहानी रात सुहानी दीवाली के दीप जले । नर्म लबों ने ज़बानें खोलीं फिर दुनिया से कहन को बेवतनों की राम कहानी दीवाली के दीप जले। लाखों आंसू में डूबा हुआ खुशहाली का त्योहार कहता है दुःखभरी कहानी दीवाली के दीप जले। कितनी मंहगी हैं सब चीज़ें कितने सस्ते हैं आंसू उफ़ ये गरानी ये अरजानी दीवाली के दीप जले। जलते चराग़ों में सज उठती भूके-नंगे भारत की ये दुनिया जानी-पहचानी दीवाली के दीप जले। भारत की किस्मत सोती है झिलमिल-झिलमिल आंसुओं की नील गगन ने चादर तानी दीवाली के दीप जले। जुग-जुग से इस दुःखी देश में बन जाता है हर त्योहार रंजोख़ुशी की खींचा-तानी दीवाली के दीप जले। सभी दोस्तों को दीपावली की शुभकामनाएं..
Posted on: Sat, 02 Nov 2013 18:27:07 +0000

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