पीड़ पराई जाणे - TopicsExpress



          

पीड़ पराई जाणे रे..... मणिनगर (अहमदाबाद) में एक बालक रहता था। वह खूब निष्ठा से ध्यान-भजन एवं सेवा- पूजा करता था और शिवजी को जल चढ़ाने के बाद ही जल पीता था। एक दिन वह नित्य की नाईं शिवजी को जल चढ़ाने जा रहा था। रास्ते में उसे एक व्यक्ति बेहोश पड़ा हुआ मिला। रास्ते चलते लोग बोल रहे थेः शराब पी होगी, यह होगा, वह होगा.... हमें क्या ! कोई उसे जूता सुँघा रहा था तो कोई कुछ कर रहा था। उसकी दयनीय स्थिति देखकर उस बालक का हृदय करूणा से पसीज उठा। अपनी पूजा- अर्चना छोड़कर वह उस गरीब की सेवा में लग गया। पुण्य किये हुए हों तो प्रेरणा भी अच्छी मिलती है। शुभ कर्मों से शुभ प्रेरणा मिलती है। अपनी पूजा की सामग्री एक ओर रखकर बालक ने उस युवक को उठाया ! बड़ी मुश्किल से उसकी आँखें खुलीं। वह धीरे से बोलाः पानी..... पानी.... बालक ने महादेवजी के लिए लाया हुआ जल उसे पिला दिया। फिर दौड़कर घर गया और अपने हिस्से का दूध लाकर उसे दिया। युवक की जान-में- जान आयी। उस युवक ने अपनी व्यथा सुनाते हुए कहाः बाबू जी ! मैं बिहार से आया हूँ। मेरे पिता गुजर गये हैं और काका दिन- रात टोकते रहते थे कि कुछ कमाओगे नहीं तो खाओगे क्या ! नौकरी- धंधा मिल नहीं रहा था। भटकते-भटकते अहमदाबाद रेलवे स्टेशन पर पहुँचा और कुली का काम करने का प्रयत्न किया। अपनी रोजी-रोटी में नया हिस्सादार मानकर कुलियों ने मुझे खूब मारा। पैदल चलते-चलते मणिनगर स्टेशन की ओर आ रहा था कि तीन दिन की भूख व मार के कारण चक्कर आया और यहाँ गिर गया। बालक ने उसे खाना खिलाया, फिर अपना इकट्ठा किया हुआ जेबखर्च का पैसा दिया। उस युवक को जहाँ जाना था वहाँ भेजने की व्यवस्था की। इससे बालक के हृदय में आनंद की वृद्धि हुई, अंदर से आवाज आयीः बेटा ! अब मैं तुझे जल्दी मिलूँगा.... बहुत जल्दी मिलूँगा। बालक ने प्रश्न कियाः अंदर से कौन बोल रहा है ? उत्तर आयाः जिस शिव की तू पूजा करता है वह तेरा आत्मशिव। अब मैं तेरे हृदय में प्रकट होऊँगा। सेवा के अधिकारी की सेवा मुझ शिव की ही सेवा है। उस दिन बालक के अंतर्यामी ने उसे अनोखी प्रेरणा और प्रोत्साहन दिया। कुछ वर्षों के बाद वह तो घर छोड़कर निकल पड़ा उस अंतर्यामी ईश्वर का साक्षात्कार करने के लिए। केदारनाथ, वृंदावन होते हुए वह नैनीताल के अरण्य में पहुँचा। केदानराथ के दर्शन पाये, लक्षाधिपति आशीष पाये। इस आशीर्वाद को वापस कर ईश्वरप्राप्ति के लिए फिर पूजा की। उसके पास जो कुछ रूपये-पैसे थे, उनसे वृंदावन में साधु-संतों एवं गरीबों के लिए भंडारा कर दिया और थोड़े-से पैसे लेकर नैनीताल के अरण्य में पहुँचा। लाखों हृदयों को हरिरस से सींचने वाले लोकलाडले परम पूज्य सदगुरू स्वामी श्री लीलाशाहजी बापू की राह देखते हुए उसने वहाँ चालीस दिन बिताये। गुरुवर लीलाशाहजी बापू को अब पूर्ण समर्पित शिष्य मिला..... पूर्ण खजाना प्राप्त करने की क्षमतावाला पवित्रात्मा मिला.... पूर्ण गुरु को पूर्ण शिष्य मिला....। स्वामी लीलाशाह जी बापू के श्रीचरणों में बहुत लोग आते थे, परंतु सबमें अपने आत्मशिव को ही देखने वाले, छोटी उम्र में ही जाने- अनजाने आत्मविचार का आश्रय लेने वाले इस युवक ने उनकी पूर्ण कृपा प्राप्त कर आत्मज्ञान प्राप्त किया। जानते हो वह युवक कौन था ? पूर्ण गुरु किरपा मिली, पूर्ण गुरु का ज्ञान। आसुमल से हो गये, साँईं आसाराम।। लाखों- करोड़ों लोगों के इष्ट-आराध्य प्रातः स्मरणीय जग वंदनीय पूज्य संत श्री आसारामजी बापू !
Posted on: Sat, 12 Oct 2013 09:29:54 +0000

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