परिंदों जागते रहना - TopicsExpress



          

परिंदों जागते रहना शिकारी आने वाले हैं एक जमाना था अटल बिहारी वाजपेयी बराबर संघ के अग्रणी पंक्ति के नेता होते थे बाकायदा चडढी पहन कर प्रचार करते थे, और उसकी शाखाओं में हिस्सा लेते थे, उनमें वही रूप देखा जाता था जो आज मोहन भागवत में देखा जाता है, फिर 90 के दशक में एलके आडवाणी ने अपनी एक अलग छवी देश के सामने पेश की जो इस देश और समाज के साथ – साथ संविधान से मजाक, अल्पसंख्यकों से दुश्मनी वाली छवी थी उन्होंने पूरे देश में रथ यात्रा करके देश में सांप्रदायिक रूपी जहर को बाहर ला कर रख दिया उसी दौरान डीडी नेशनल पर आने वाले प्रोग्राम महाभारत और रामायण में प्रदर्शित शस्त्र जैसे त्रिशूल, बल्लम, तलवार, गदा अब रील से निकलकर संघ की शाखाओं में आ गये उनसे संघ के सदस्य प्रशिक्षण लेने लगे। ये सब हो रहा था राष्ट्र के नाम पर लेकिन इसके अंदर पकने वाला लावा 1993 में से लेकर अब तक जारी है संघ के कार्यकर्ता आज भी किसी भी सांप्रदायिक दंगे में इन हथियारों का प्रयोग करते रहे हैं, और गुजरात में इन्होंने बच्चों तक को त्रिशूलों पर टांग दिया था। ये सब महाभारत नाम के काल्पनिक सीरियल की बदौलत ही तो हुआ था। खैर उसी दौरान एलके आडवाणी की छवी एक कट्टर हिंदुत्तवादी बनी और वह भी आज के नरेंद्र मोदी की तरह हिंदुत्तवादी कट्टरपंथियों के हीरो बन गये ठीक उसी तरह जिस तरह आज गुजरात के मुखिया नरेंद्र मोदी बन हुऐ हैं। रथ यात्रा और बाबरी विध्वंस के बाद आडवाणी सांप्रदायिक हो गये और अटल की छवी सैक्यूलर बनती चली गई जबकि वह भी वही चाहते थे और चाहते हैं जो आडवाणी चाहते थे। और हुआ भी वही आखिर गुजरात दंगा हो गया जिसमें हर खास ओ आम को सबक सिखा दिया गया, अब चाहे वह सांसद ही क्यों न हो सबक तो सबको सिखा ही दिया. फिर वह स्थान जो आडवाणी का हुआ करता था वह नरेंद्र मोदी का हो गया और नरेंद्र मोदी को हिंदू हद्य सम्राट जैसे उपलब्धियों से नवाजा जाने लगा. दंगों के बाग लगातार दो जीत से नरेंद्र मोदी का कद और पद दोनों ही बढ़ गये। मीडिया भी नरेंद्र मोदी का राग अलापने लगी. अब पिछले कुछ समय से देखा जा रहा है कि सोशल नेटवर्किंग साईट पर हिंदुत्तववादी जो पेज हैं वे आडवाणी की बुराई और नरेंद्र मोदी की तारीफों के पुल बांधे जा रहे हैं। मकसद कुछ और नहीं बस इतना सा है किसी भी तरह आडवाणी की छवी को अटल की छवी तरह सैक्यूलर छवी बनाई जाये ताकी अगले चुनाव में आडवाणी को सैक्यूलर नेता के रूप में प्रधानमंत्री पद के लिये पेश किया जा सके। लेकिन क्या ऐसा करने से आडवाणी के गुनाह माफ हो जायेगे उनके दामन पर लगे सापंप्रदायिकता के वे दाग धुल जायेंगे जिनकी वजह से लाखों लोग प्रभावित हुऐ और हजारों की जान गईं थी। और वहीं से राजनीति ने धर्म, जातीय रूप ले लिया था कोई हिंदुत्व वादियों का हीरो बना और किसी ने असहाय मुस्लिमों का हित खुद की पार्टी बनाकर उसमें बताय। क्या ये सही नहीं है कि आडवाणी और मोदी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं दोनों को पीएम बनने की चाह है। दोनों ही कट्टरवादी ताकतों के हीरो हैं. एक रथ यात्रा और बाबरी के विध्वंस की वजह से अपनी पहचान बनाने में सफल हुआ तो दूसरा गुजरात जनसंहार कराकर, तो फिर आडवाणी कैसे सैक्यूलर हो सकते हैं ? जैसा कि भगवा ब्रिगेड Read More On This Link... internationalnewsandviews/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%A4%E0%A5%87-%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0/
Posted on: Wed, 05 Jun 2013 14:44:37 +0000

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