माँ के गर्भ में बच्चा - TopicsExpress



          

माँ के गर्भ में बच्चा साँस लेना और भूख को महसूस करना भर ही सीख कर आता है, वह वैचारिक सक्षम होकर जन्म नहीं लेता है। अगर ऐसा होता तो समय-समय पर मानवों के बीच नया दर्शन और नए विचार देने वाले विचारको का उदगम न हुआ होता और मानव सभ्यता में परिवर्तन भी न हुए होते क्योकि वह भी उन्हीं विचारों का अनुसरण करते, जो वह अपनी माता के गर्भ में सीखे। जन्म लेकर स्वस्थ बच्चा- देखना, सुनना और गंध पहचानना और ताप को महसूस करना शुरू करता है लेकिन क्या तीखा है, क्या खट्टा है, क्या मीठा और क्या कड़वा है, वह तब तक नहीं समझता जबतक जीभ से चखे न। हम पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मिर्च को तेज़ या तीखी कहते है और वही पूर्वी उत्तर प्रदेश में कडवी या कर्री कहते है तो मिर्ची का स्वाद एक है लेकिन नाम परिवर्तित हो गए। जन्म के बाद धीरे-धीरे हमको केवल जानकारी या सूचनाये दी जाती है और उन सूचनाओ को हम अपनी बाल्य अवस्था में भी तभी स्वीकार करते है जब तक कि प्रयोग कर अनुभव न लें। जब हमसे से ज्यादातर जले होंगे तो जाना आग या गर्म वस्तु को छूना खतरनाक है, करंट लगा तो बिजली से डरे। ऐसे जाने कितने अनुभव लेकर हमने जाने कितनी बाते सीखी होती है पर जाने को भूल जाते है कि प्रयोग से अनुभव लेना, सीखना और आवश्यकता पड़ने पर परिवर्तन करना हमारी जन्मजात मूल प्रवृति है।
Posted on: Sun, 11 Aug 2013 10:39:05 +0000

Trending Topics



Recently Viewed Topics




© 2015