मुजफ्फरनगर के दंगों के - TopicsExpress



          

मुजफ्फरनगर के दंगों के बारे में कई तरह की बातें हो रही है लेकिन कोई असल समस्या पर बात नहीं कर रहा है. दंगो का मूल कारण जो है उस पर कोई बात नहीं हो रही है. दंगों के पीछे जो मूल घटना रही वो पूरी तरह से विधि-व्यवस्था सम्बंधित घटना थी- छेड़खानी की. लेकिन एक विधि- व्यवस्था की सामान्य सी घटना ने भयावह साम्प्रदायिकता का रूप ले लिया और ऐसा क्यूँ हुआ इसके पीछे का कारण आज़म खान प्रोत्साहित यूपी पुलिस के बीच प्रसारित मौखिक लेकिन बाध्यकारी वो निर्देश है जिसमे पूरे यूपी में थाना-प्रभारियों को सख्त ताकीद है की मुसलमानों के खिलाफ कोई रिपोर्ट किसी भी हालत में नहीं ली जाये. इसकी पुष्टि यूपी पुलिस का छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा अधिकारी करता है. ये बात मीडिया में भी आई लेकिन सांकेतिक और दबे-छुपे रूप में. मुजफ्फरनगर में भी छेड़खानी की घटना के बाद इस घटना की थाने में रिपोर्ट करने की कोशिश हुई। थाना-प्रभारी ने इस आदेश का हवाला देते हुए रिपोर्ट दर्ज करने से साफ़ मना कर दिया। यंही से विधि- व्यवस्था की एक घटना ने सांप्रदायिक रंग लेना शुरू किया। छेड़खानी की जो घटना हुई थी वो कोई सामान्य छेड़खानी नहीं थी। ये "attemp to rape" सरीखी ही थी। लिहाज़ा पुलिस के इस रवैये से पहले से गुस्से में दहक रहे लोग और भड़क गये। लोगों ने कानून अपने हाथों में ले लिया और मुख्य आरोपी को स्वयं पीटने लगे. इसी में उसकी मौत हो गयी। अगले दिन उस युवती के दोनों भाइयों की हत्या कर दी गयी। पुलिस ने इस सम्बन्ध में भी कोई मामला दर्ज करने से मना कर दिया क्यूंकि आरोपी इस बार भी मुस्लिम थे. लेकिन पुलिस ने भीड़ द्वारा मारे गए आरोपी मुस्लिम युवक के सिलसिले में पीड़ित युवती के परिज़नों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया था। पुलिस के खुलेआम इस भेदभाव पूर्ण रवैये ने जो सांप्रदायिक चिंगारी भड़काई उसका परिणाम आज सबके सामने है। इस देश में धर्म- निरपेक्षता की परिभाषा तुरंत बदलने की आवशयकता है वरना सिर्फ साम्प्रदायिकता ही शेष रहेगी। लेखक अभिनव शंकर एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत हैं
Posted on: Tue, 10 Sep 2013 17:39:33 +0000

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