मेरा पहाड़ रो रहा है! पर - TopicsExpress



          

मेरा पहाड़ रो रहा है! पर आंसू पोछने वाला है ही कौन? न मै, न आप, न सत्ता, न ही अपने, जो थे वो चले गए जो वहा है उनके आंसू भी सूख चुके है! बाकी बचे हम जिन्दगी की दौड़ में कही पीछे न छूट जाय इसलिए पहाड़ को छोड़ कर आ गए! बस ये कहते हुए कि 'यहाँ कुछ नहीं है', फिर हमें ये हक़ किसने दिया कि हम कहे कि 'मै उत्तराचल का हूँ'! फेसबुक पर बैठ कर लिखना आसान है और हम बस यही कर सकते है! दर्द सिर्फ वही जान पाएगी जिसने जमीं से उगाकर अपने चिराग को खिला पिला कर बड़ा किया और आज अपने पोतो को सँभालने के समय पर उन्हें जमीं में दफन होते देखा! दर्द वो समझेगी जिसने अभी अपने हाथो से 'शादी के चूडे नहीं तक उतारे' और जिसके नाम कि मेहँदी का रंग अभी फीका भी नहीं पड़ा था वो ही उसका छोड़ कर चला गया! दर्द वो समझेगी जो रो भी नहीं सकती और हंस भी नहीं सकती! क्योंकि उसे ये पता ही नहीं है कि जिसकी वो बाट जोह रही है वो जिन्दा भी है या नहीं! वो उसके लिए रोये या नहीं! मेरा पहाड़ रो रहा है! दर्द वो समझेगा जो ये वादा देकर गया था कि 'कमाकर लाऊंगा', पर उसे क्या पता था कि इस बार जिसके लिए कमाया है वो ये देख भी नहीं पाएगी कि उसकी 'समुँण' अटेची में ही बंद रह गयी! दर्द वो समझेगा जो खुद सरहदों पर सबकी सुरक्षा के लिए अडिग खड़ा है और ये सोच रहा है कि अब वो उन दो बूढों को सहारा देने के तत्पर है! पर उसे क्या पता कि उसे वो 'दानी [बूढी] आखें' हमेशा के लिए उसे सरहद से लौटा हुआ दुबारा नहीं देख पाएंगी! दर्द बहुत है! पर फुर्सत किसे है दर्द को बाटने की या दर्द की दास्ताँ सुनने की! My mountain is crying! पहाड़ रो रहा ह
Posted on: Wed, 03 Jul 2013 07:47:14 +0000

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