मैं नाराज़ था और मेरी - TopicsExpress



          

मैं नाराज़ था और मेरी नाराज़गी तब और बढ़ जाती जब साल-दर-साल ये हिंदुत्ववादी ताकतें हर 6 दिसंबर को शौर्य दिवस के तौर पर मनातीं, अपने इस काम को बहादुरी बतातीं। आज भी कई जगहों पर शौर्य दिवस मनाया गया होगा। लेकिन मैं सोचता हूं कि अपनी सरकार और अपनी पुलिस के खुले संरक्षण में एक वीरान और अरक्षित इमारत को ध्वस्त कर देना यदि शौर्य का काम है तो बामयान में तालिबानियों ने बुद्ध की जो मूर्तियां तोड़ीं, वह भी कम बहादुरी का काम नहीं था। तब तो कश्मीर के आतंकवादी जिन्होंने बंदूकों के बल पर हज़ारों पंडितों को राज्य से बाहर जाने पर मजबूर कर दिया है, वे भी बहादुरी ही दिखा रहे हैं। इसी तरह नक्सलवादियों द्वारा बारूदी सुरंग लगाकर या फिशप्लेट हटाकर लोगों की जान लेना भी शौर्य का काम है। तब तो कसाब और उसके बाकी साथी भी शूरवीर हैं जिन्होंने सैकड़ों निहत्थे मासूमों को गोलियों से भून डाला था। अगर कमज़ोर पर अपनी ताकत दिखाना और अपनी मनमानी करना ही वीरता की निशानी तो पिछले दिनों धौलाकुआं में जिन 5 लोगों ने कॉल सेंटर की एक लड़की से गैंगरेप किया, वे भी कम शूरवीर नहीं थे। शूरवीरता कमज़ोर पर ताकत दिखाने में नहीं, शक्तिशाली से लड़ने में है चाहे उसमें जय मिले या पराजय। करगिल में हमारे सैनिकों ने पाक सैनिकों को खदेड़ा तो इसे शौर्य कहा जाएगा क्योंकि उनका मुकाबला हथियारों लैस दुश्मन सैनिकों से था। हमारे साथी शिवेंद्र सिंह चौहान ने जब चलती बस में लड़कियों को छेड़ रहे गुंडों से मुकाबला किया था तो वह शूरवीरता थी। हिंदुत्ववादियों के आराध्य राम ने भी जब रावण की सेना को पराजित करके अपनी पत्नी को उसकी कैद से छुड़ाया तो वह शूरवीरता थी। हिंदुत्ववादियों को मेरी बातें खराब लग सकती हैं लेकिन 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में जो हुआ, वह वीरता नहीं, गुंडागर्दी थी, दादागिरी थी। मुझे नहीं पता कि बाबर ने राम मंदिर या कोई भी मंदिर तोड़ा था या नहीं। लेकिन अगर उसने या किसी ने भी किसी भी धर्मस्थल को तोडा़ तो वह भी वीरता की निशानी नहीं थी और कट्टर हिंदुओं ने बाबरी मस्जिद तोड़ी तो वह भी वीरता का सबूत नहीं था। 1992 में आज के दिन मैं नाराज़ भी था और उदास भी। वह उदासी कई महीनों तक रही। लेकिन जब अगले साल उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में चुनाव हुए और ‘जो कहते हैं, वह करते हैं’ का नारा देने वाली बीजेपी यूपी में ही हार गई तो मेरा इस लोकतंत्र पर विश्वास फिर से कायम हो गया। उसके बाद और भी चुनाव हुए, खुद बीजेपी भी साथी दलों के सहयोग से दो बार केंद्र में सत्तारूढ़ हुई लेकिन लोगों ने पूरा बहुमत इस पार्टी को कभी नहीं दिया। मतलब साफ है - हिंदुत्ववादी ताकतें लाख कोशिशों के बावजूद आम जनता को कम्यूनल नहीं बना पाईं। और यही बात आज की उदास शाम में उम्मीद का चिराग जला देती है। अंग्रेज़ी की कहावत याद आती है – You can fool SOME people for ALL time and ALL people for SOME time. But you can’t fool ALL people for ALL time. आप कुछ व्यक्तियों को हर वक्त के लिए और हर व्यक्ति को कुछ वक्त के लिए मूर्ख बना सकते हैं। लेकिन हर व्यक्ति को हर वक्त के लिए मूर्ख नहीं बना सकते। admin 1.2
Posted on: Wed, 07 Aug 2013 00:32:09 +0000

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