लातों के भूतों पर बातों - TopicsExpress



          

लातों के भूतों पर बातों का असर नहीं कीन्या और पाकिस्तान में इस्लामी आतंकवादियों ने जो कहर ढाया है, वह भयंकर है। मॉल में गए बेकसूर लोग और गिरजे में प्रार्थना करने वालों पर बम बरसाने वाले लोगों से ज्यादा कायर कौन होगा? यदि वे लोग बहादुर होते तो उन पर हमला करते, जो लोग हथियार बंद होते हैं। या जो सुरक्षा के घेरे में चलते हैं। हमला करके भागने वाले लोग अगर अपने आप को इस्लामी कहते हैं तो वे इस्लाम का अपमान करते हैं। कोई भी सच्चा धार्मिक मौलवी ऐसे राक्षसों को मुसलमान कहने की बजाय हैवान ही कहेगा। इस्लाम के नाम पर आतंकवाद फैलाने वाले इन दरिन्दों का इस्लाम से क्या लेना-देना है? पहले कीन्या के नैरोबी में हुए हमले को लें। इस हमले की जिम्मेदारी ‘अल-शबाब’ नामक संगठन ने ली है। ‘अल-शबाब’ के प्रवक्ता ने इस हमले का कारण कीन्या की विदेशी नीति को बतलाया है। सोमालिया नामक एक पड़ोसी अफ्रीकी देश में कीन्या के पांच-छह हजार सैनिक शांति –स्थापना में लगे हैं। वे अफ्रीकी यूनियन का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। वे वहाँ अल-कायदा की गुंडागर्दी के खिलाफ जूझ रहे हैं। ‘अल-शबाब’ ने जिस ‘वेस्टगेट’ नामक मॉल पर हमला किया है, वह एक यहूदी का है। लेकिन मरने वाले 60 और घायल होने वाले 200 लोगों में ईसाई, मुसलमान और हिन्दू सभी हैं। दो भारतीय नागरिक भी हैं। घाना के राष्ट्र-कवि और लोक नेता कोफी अवनूर भी है। इन लोगों का सोमालिया में कार्यरत कीन्याई फौज से क्या संबंध है? इन बेकसूर लोगों की हत्या करके अल-कायदा के लोगों को क्या फायदा हुआ हैं? इस हत्याकांड के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए अब इस्राइली फौजी कीन्या पहुंच गए हैं। अब ‘अल-शबाब’ के आतंकवादियों को आटे-दाल के भावों का पता चलेगा। क्या उन्हें याद नहीं कि इसी कीन्या में एक यात्री विमान को किस जांबाजी से इस्राइली फौजीयों ने छुड़वाया था? कीन्या के राष्ट्रपति उहरु केन्याटा ने आतंकवादियों के विरुद्ध वज्र प्रहार की घोषणा की है। कितने शर्म की बात है कि पाकिस्तान के नागरिक अबू मूसा मोंबासा का हाथ इस हमले में बताया जा रहा है। खुद पाकिस्तान में रविवार को एक गिरजे पर आंतकवादियों ने बम बरसा दिए। पेशावर के इस पुराने गिरजाघर में 600-700 लोग प्रार्थना करके ज्यों ही बाहर निकलने वाले थे, उन पर आतंकवादियों ने हमला बोल दिया। हमलावरों का कहना है कि उन्होंने अमेरिका के द्रोन-हमलों का बदला लिया है। उनसे कोई पूछे कि उन हमलों से पाकिस्तान के ईसाइयों का क्या लेना देना है? क्या इसका कारण सिर्फ यह है कि अमेरिका भी ईसाई देश है? पाकिस्तान के ईसाई तो अमेरिकी नीति का निर्धारण नहीं करते हैं और न ही वे अमेरिकी हितों के प्रवक्ता हैं। वे तो सब दलित हिंदू हैं, जो विभाजन के बाद अपनी खाल बचाने के लिए ईसाई बन गए। वे सबसे ज्यादा गरीब और सबसे ज्यादा असुरक्षित लोग हैं। इन डरे हुए लोगों पर इतना, क्रुरतापूर्ण हमला शुद्ध कायरता का प्रतिक है। plz share-
Posted on: Wed, 25 Sep 2013 05:34:39 +0000

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