.विश्व के प्रत्येक धर्म - TopicsExpress



          

.विश्व के प्रत्येक धर्म में लगभग आधी बातें एक-दुसरे के समान सिद्धांतों पर आधारित हैं,सभी धर्म-ग्रंथों में कुछ मूलभूत विचार समान हैं,जैसे- १- प्रत्येक धर्म और धर्म ग्रन्थ कहता है,कि सृष्टि के कण-कण में भगवान् विराजमान हैं. २-सृष्टि कि रचना भगवान् ने कि है.पाप-पुन्य का निर्धारण भगवान् करेगा, ३-उसी के आधार पर वो दंड और पुरूस्कार देगा. ४- भगवान् की इच्छा के विरुद्ध एक पत्ता भी नहीं हिलता.आदि अब मैं पूछना चाहता हूँ,समस्त धर्मों के अनुयायियों,मौलवी और मुल्लाओं से,पंडों और पंडितों से,धर्म के ठेकेदारों से,कि जब कण-कण में भगवान् विराजमान है,तो फिर ये वितृष्णा,ये नफरत कैसी……. ये हिन्दू है,ये मुसलमान है,ये काफिर है,ये विधर्मी है……………………. जब कण-कण में भगवान् विराजमान है,तो क्या हिन्दू का शरीर या मुसलमान का शरीर कणों से नहीं बना,क्या मंदिर या मस्जिद के निर्माण में प्रयुक्तपत्थरों के कण किसी और सृष्टि से आये हैं,या उनका सृष्टा कोई अन्य भगवान् है,आपका भगवान् नहीं. सिद्धान्त्ता जब कण-कण में भगवान् हैं,तो भगवान् हिन्दू के शरीर में भी विराजमान है,और मुसलमान कि काया में भी ……………. जो भगवान् मस्जिद के प्रत्येक कण में है,वो भगवान् मंदिर के कण-कण में भी है…………… तो फिर ये मेरा…. ये तेरा…… ये अधर्मी ये विधर्मी …… ये काफिर….. ये मुनाफिक……. ये नफरतकैसी. यदि धर्मों के प्रति आपमें कोई विरोधाभास है,या आप मानते हैं कि आपका धर्म सर्वश्रेष्ठ है,तो सबसे पहले आप अपने ही धर्मग्रन्थ की बात को,अपने धर्म की विचारधारा को पूर्णतय: खंडित कर रहे है……………… आप दुसरे धर्म के प्रति नफरत या वैमनस्य प्रदर्शित कर रहे है….. तो इसका सीधा सा एक ही अर्थ है,कि आप चीख-चीख कर घोषणा कर रहे हैं,कि ” मेरा धर्म झूठा है,मई अपने धर्म ग्रथ की बातों को नहीं मानता,वो असत्य हैं और भावहीन हैं…… मै अपने धर्मग्रन्थ में ,धर्म में आस्था नहीं रखता…. और उनकी बातों को खंडित करता हूँ. या तो आप ये माने कि सभी कणों में भगवान् विराजमान नहीं है,जैसा आपके धर्म ग्रन्थ में लिखा गया है,तब ही आप किसी अन्य धर्म के प्रति घृणा-भाव रख सकते है,और आप कह सकते हैं,कि हमारा भगवान् सर्वश्रेष्ठ है…………….. और विधर्मी,विधर्मी का भगवान् ,विधर्मी का पूजा स्थल,उसका धर्म ग्रन्थ घृणित है और तुच्छ है…………………. पहले आपको अपने धर्म के सिद्धांतों को खंडित करना ही पड़ेगा. और दूसरी बात ये कि जब आपके भगवान् ने ही सृष्टि कि रचना की है,तो निश्चित ही मुसलमान को जिसने बनाया,उसी ने हिन्दू को भी बनाया……….. सब उसी की रचना है…………….. जब मंदिर उस भगवान् की इच्छा से बना तो इसमें लेश मात्र भी संशय नहीं कि मस्जिद भी उसी भगवान् कि सहमति से बनी है,येही आपका धर्म ग्रन्थ आपकी धार्मिक पुस्तक अर्थात आपका भगवान् आपसे कहना चाहता है,तो फिर एक दुसरे के प्रति नफरत कैसी……………….. यदि नफरत है,आपके विचारों में,आपकी सोच में……. तनिक भी …… ज़रा सी भी….. तो आप अपने ही धर्म-ग्रन्थ पर लात मार रहे हैं. आप अपनी हिंसा के आंकड़े देखिये महाभारत युद्ध क
Posted on: Fri, 22 Nov 2013 11:23:16 +0000

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