Today is the death anniversary of the great poet. His one of the best poems, which we read in school is reproduced. तोड़ती पत्थर(Todti Patthar) by Suryakant Tripathi Nirala तोड़ती पत्थर by Suryakant Tripathi Nirala वह तोड़ती पत्थर देखा मैंने इलाहाबाद के पथ पर -- वह तोड़ती पत्थर । कोई न छायादार पेड़, वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार; श्याम तन, भर बँधा यौवन, गुरु हथौड़ा हाथ करती बार बार प्रहार; सामने तरु - मालिका, अट्टालिका, प्राकार । चड़ रही थी धूप गरमियों के दिन दिवा का तमतमाता रूप; उठी झुलसाती हुई लू रुई ज्यों जलती हुई भू गर्द चिनगी छा गयी प्रायः हुई दुपहर, वह तोड़ती पत्थर । देखते देखा, मुझे तो एक बार उस भवन की ओर देखा छिन्न-तार देखकर कोई नहीं देखा मुझे उस दृष्टि से जो मार खा रोयी नहीं सजा सहज सितार, सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार । एक छन के बाद वह काँपी सुघर, दुलक माथे से गिरे सीकार, लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा -- मैं तोड़ती पत्थर
Posted on: Tue, 15 Oct 2013 03:45:14 +0000