उस दिन दुबारा पुस्तक मेले की जानिब चली गयी .घर के कामों से फुर्सत निकाल कर ,कुछ समय अपने लिए चुरा लेना कितना अच्छा लगता है .आदरणीय मुद्रा जी ,शिवमूर्ति जी व मुनव्वर रना साहब को सुनना ,फेसबुक मित्रों से मिलना और किताबों के बीच खुद को खोया हुआ पाना .सच ,आनंद और संतुष्टि दोनों की अनुभूति .राजकमल ,वाणी ,किताबघर ,भारतीय ज्ञानपीठ ,सामयिक प्रकाशनों से अपनी मनपसंद किताबें छांटते खरीदते हुए पुनः मुनव्वर राना साहब से मुलाकात और उनसे उनकी किताब पर आटोग्राफ लेते हुए मीठी सी छेड़ छाड . यूँ ही तमाम स्टाल्स के चक्कर काटते काटते कुलदीप पब्लिकेशन के सामने टेबल पर लगी किताबें जिनके बीच में लगे प्लेकार्ड पर लिखा था ...3books in rs 200/ .अरे वाह !!ये तो अच्छा है ना .. और किताबें जब तक आप खुद ना पढ़ लें तब तक पुरानी कहाँ होती हैं .तीन बेस्ट सेलर्स निकाल लीं .कुछ किताबें छोटी भतीजी के लिए लीं .लौटते हुए सोचा कि माँ पापा से मिलकर और भतीजी को किताबें देते हुए चलूँ .पापा के घर ही पतिदेव को भी बुला लिया कि मुझे वहाँ से ले लें .मेरे पहुँचने के कुछ देर बाद वो भी वहाँ पहुँच गए .हम लोग किताबें देख ही रहे थे कि John Grishams The Client पापा ने उठाई .उसके पहले पन्ने पर ८ दिसम्बर १९९३ की तारिख में एक सन्देश लिखा गया था ..dear daddy ,merry reading यह किताब किसी पिता को उसके बेटे की तरफ से भेंट थी . पापा ने कहा देखो ! जाने कैसा पिता है बेटे की गिफ्ट की हुई किताब रद्दी में बेंच दी .ये भी नहीं सोचा होगा बेटे ने की बाप उसकी दी हुई भेंट का इतना अनादर करेगा . पापा की बात सुनकर उनके दामाद जी ने कहा अरे पापा !ये भी तो हो सकता है कि पिता अब ना हों और बेटे ने ही बेंच दी हो फिलहाल एक लंबी बहस इस विषय पर दोनों ससुर दामाद में होती रही .किताब के कंटेंट या लेखक के बारे में या उसे खरीदने के पीछे मेरी क्या मंशा रही होगी इस बारे में दोनों ने कोई बात नहीं की और ना ही ये पूछा कि और कौन कौन सी किताब खरीदी ना ही दूसरे बैग्स को खोलकर देखा .ऐसे महाशयों को मेरा शत शत नमन :( :( ....विजय
Posted on: Sat, 19 Oct 2013 04:17:18 +0000
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