महंगाई कहाँ हैं ,मुझे तो कहीं नहीं दिखती . पहले मेरी जेब में रखे दस रुपया खर्च होने में पूरे दो दिन लग जाते थे ,चूरन वाला सूरज आता था ,स्कूल के गेट पर भीड़ लगती थी .हम एक दिन में एक रूपया का चूरन ,एक रूपया का अमरुद ,दो रुपए का लाई-चना -नमकीन और ज्यादा हुआ तो एक रुपए वाली आरेंज आइसक्रीम खा कर लंच मस्ती करते थे . अब पचास रुपए लेकर छोटा भाई जाता है ,सब खर्च कर देता है कभी कभार उसको KFC, MACDONALDS में पार्टी करने हेतु या PVR में फिल्म देखने के लिए 300-500 रुपए तक मिलते हैं . मुझे नहीं मिले इतने रुपए जब मैं उसकी उम्र का था ,क्योंकि पिता जी की आमदनी तब कुछ हजार में थी अब लाखों में है .छोटे भाई के पर्स में भी काफी पैसे होते हैं . आपने अपना पर्स कभी गौर से चेक किया या फिर आज से दस साल पहले वाले अपने पर्स की याद आई .याद कीजिए ,बुद्धि हरी हो जाएगी .महंगाई का रोना बेवजह रोया जाता है क्योंकि हम कंजूस हैं ,चाहते हैं सब कुछ मुफ्त में मिल जाए एक पाई खर्च किए बगैर .उल्लू समझो हो का सबको ? सब आपके ही जितने समझदार हैं . ऑटो वाला ,बस वाला ,किचेन की बाई और दूध देने वाली भैंस भी . आपकी आमदनी बढ़ी है गंगा में बाढ़ के जैसी तो खर्च नहीं कीजिएगा का महाराज ?
Posted on: Sat, 30 Nov 2013 14:54:09 +0000
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