सुबह उठकर श्रीवास्तव जी - TopicsExpress



          

सुबह उठकर श्रीवास्तव जी ने अंगड़ाई ली, तो मैंने चुटकी लेते हुए कहा, ‘भाई साहब! आपकी अंगड़ाई लेने की अदा देखकर मुझे एक शेर याद आ रहा है, अगर इजाजत हो, तो पेश करूं।’ श्रीवास्तव जी ने मुझे पहले तो घूरकर देखा। उनके घूरते ही मैं सकपका गया। मुझे सकपकाते देखकर उन्होंने दरियादिली दिखाई और किसी शहंशाह की तरह बोले, ‘अब जब दिमाग में आ ही गया है, तो सुना भी डालो।’ उनकी इस दरियादिली पर मैं खुश हो गया। मैंने अर्ज किया, ‘उनसे छींके से कोई चीज उतरवाई है/काम का काम है, अंगड़ाई की अंगड़ाई है।’ मेरे इतना कहते ही वे कविवर बिहारी लाल के किसी परकीया नायक की तरह शर्मा गए और बोले, ‘मैं एक बात बताऊं। जब मैं गोरखपुर यूनिवर्सिटी में पढ़ता था, तो मैं कई लड़कियों को अपनी अंगड़ाई से बेहोश कर चुका हूं। मेरी अंगड़ाइयों के बारे में लड़कियां शेर कहा करती थीं, ‘कहां पे बर्क (बिजली) चमकती है ऐ सानिया देख!कोई मरदूद हॉस्टल के आस-पास अंगड़ाइयां लेता है।’ और यह कहते-कहते श्रीवास्तव जी खिलखिलाकर हंस पड़े। तभी रामभूल ने किचन से निकल कर कहा, ‘सर जी! भोजन तैयार हो गया है, तैयार हो जाइए।’ katarbyont.blogspot.in/search?updated-min=2012-01-01T00:00:00-08:00&updated-max=2013-01-01T00:00:00-08:00&max-results=50
Posted on: Fri, 28 Jun 2013 09:21:07 +0000

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